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क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा

क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा
विकसित देशों ने किसानों को बाजार के रहमो-करम पर छोड़ने की तरकीब अपनाई थी, जो नाकाम रही। कमोडिटी फ्यूचर्स ट्रेडिंग से भी कुछ खास मदद नहीं मिली है। 103 अरब डॉलर के चॉकलेट उद्योग पर नजर डालने पर पता क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा चलता है कि कोको बीन्स की कीमतें काफी हद तक कमोडिटी फ्यूचर्स से निर्धारित होती हैं। अफ्रीका अकेले दुनिया में कोको का लगभग 75 प्रतिशत उत्पादन करता है लेकिन इस अनुपात में किसानों क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा का फायदा नहीं मिलता है। कोको किसानों का बमुश्किल 2 प्रतिशत रेवेन्यू मिलता है जिसकी वजह से लाखों किसान भारी गरीबी में जी रहे हैं।

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ईरान ने अपनी मुद्रा रियाल को तोमन में बदला, देश की आर्थिक स्थिति में होगा सुधार

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तेहराना। ईरान (Iran) अपनी मुद्रा को मौजूदा रियाल से तोमन में बदलने जा रहा है। ईरानी सांसदों ने परिवर्तन करने के लिए ईरान के मौद्रिक और बैंकिंग अधिनियम में संशोधन को मंजूरी देने के लिए 4 मई, 2020 को मतदान किया। संशोधन बिल ईरान की मुद्रा से चार शून्य काट देगा। एक तोमन (Toman) के मुकाबले मुद्रा 10,000 रियाल (Riyal) के क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा बराबर है। अमरीकी प्रतिबंधों के कारण यह कदम क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा रियाल के मूल्य में भारी गिरावट का कारण है। हालांकि, नए विधेयक को लिपिक निकाय द्वारा अनुमोदित करने की आवश्यकता होगी जो कानून के प्रभावी होने से पहले ही लागू हो जाती है।

दरअसल क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा रियाल से 4 जीरो हटाने की बातें साल 2008 से चल रही हैं। लेकिन इसको मजबूती साल 2018 से मिली। 2018 में अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर बेहद सख्त प्रतिबंध लगा दिए थे। अमरीका ने 2015 में ईरान के साथ हुई न्यूक्लियर डील को निरस्त कर दिया था। इसके बाद रियाल अपनी 60 प्रतिशत से ज्यादा की कीमत खो चुका है। फॉरेन एक्सचेंज की की रिपोर्ट के अनुसार बीते सोमवार तक रियाल की हालत इतनी खराब हो चुकी थी कि क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा एक डॉलर के मुकाबले एक लाख 56 रियाल का स्तर आ गया था।

मुद्रा और चालू खाते को लेकर भारत की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत 3.5 फीसदी के काफी उच्च स्तर के चालू खाते के घाटे की संभावना से दो-चार है. एक अनुमान के मुताबिक़, भारत का चालू खाते का घाटा 100 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर हो सकता क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा है. सरकार के सामने इस बढ़ रहे चालू खाते के घाटे की भरपाई पूंजी प्रवाह से करने की चुनौती है. The post मुद्रा और चालू खाते को लेकर भारत की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है appeared first on The Wire - Hindi.

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत 3.5 फीसदी के काफी उच्च स्तर के चालू खाते के घाटे की संभावना से दो-चार है. एक अनुमान के मुताबिक़, भारत का चालू खाते का घाटा 100 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर हो सकता है. सरकार के सामने इस बढ़ रहे चालू खाते के घाटे की भरपाई पूंजी प्रवाह से करने की चुनौती है.

पिछले कुछ हफ्तों से, जब विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) द्वारा लगातार बाजार में बिकवाली का दौर जारी रहा, भारतीय रिजर्व बैंक भारतीय मुद्रा रुपये की विनिमयय दर को थामने की एक हारी हुई लड़ाई लड़ता दिखा.

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने मुख्य तौर पर भारतीय ब्लूचिप कंपनियों के शेयरों की बिक्री है और भारतीय बाजार से 2.3 लाख करोड़ रुपये (लगभग 30 अरब अमेरिकी डॉलर) की बड़ी रकम निकाल ली है. इसने भारतीय रुपये पर और नीचे गिरने का भीषण दबाव बनाने का काम किया है.

क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा

पूरी दुनिया में किसानों को उनकी फसल का वाजिब मूल्य देना अभी भी सबसे बड़ी चुनौती है। विकसित देशों में आजमाए गए सभी प्रयास किसी भी वादे को पूरा करने में विफल रहे हैं। इससे किसानों की मुश्किल में इजाफा ही हुआ है। - देविन्दर शर्मा


“1980 के दशक में किसान प्रत्येक डॉलर में से 37 सेंट घर ले जाते थे। वहीं आज उन्हें हर डॉलर पर 15 सेंट से कम मिलते हैं“, यह बात ओपन मार्केट इंस्टीट्यूट के निदेशक ऑस्टिन फ्रेरिक ने कंजर्वेटिव अमेरिकन में लिखी है। उन्होंने इस तथ्य के जरिये इशारा किया कि पिछले कुछ दशक में किसानों की आमदनी घटने की प्रमुख वजह चुनिंदा बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बढ़ती आर्थिक ताकत है। फ्रेरिक ने खाद्य व्यवस्था की खामियों को दुरुस्त करने की जरूरत बताई।

दिग्गज आर्थिक अखबार फाइनेंशियल टाइम्स ने पिछले हफ्ते एक अन्य आर्टिकल में लिखा था, ’क्या हमारी खाद्य व्यवस्था चरमरा गई है? गूगल पर ’ब्रोकेन फूड सिस्टम्स’ सर्च करते ही सैकड़ों आर्टिकल, रिपोर्ट और स्टडीज आ जाती हैं। इनसे साफ संकेत मिलता है कि वैश्विक कृषि के ढांचे को नए सिरे से बनाने की सख्त जरूरत है जिसका मुख्य उद्देश्य कामकाज के टिकाऊ तरीके अपनाना और खेती-बाड़ी को आर्थिक तौर पर फायदेमंद बनाना हो।’

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