तरलता क्या है?

मुद्रा का प्रसार एवं मापन
मुद्रा का प्रसार एवं मापन :- किसी भी समय अर्थव्यवस्था में कुल मुद्रा को मापने के लिए केन्द्रीय बैंक कुछ मापक का प्रयोग करते हैं। भारत के संदर्भ में रिजर्व बैंक द्वारा 1977 में एक वर्क फोर्स का गठन किया गया, जिसके द्वारा बाजार में किसी समय पर कितनी मुद्रा उपलब्ध है, मापने के लिए 4 मापक तय किये गए जिन्हें M1, M2, M3 एवं M4 नाम से जाना जाता है। मुद्रा के मापन को समझने से पहले अर्थव्यवस्था में तरलता शब्द को समझना आवश्यक है।
अर्थव्यवस्था में तरलता (Liquidity) – अर्थव्यवस्था में तरलता दो प्रकार से हो सकती है –
1. बाजार की तरलता – किसी भी समय अर्थव्यवस्था में उपलब्ध मुद्रा की कुल मात्रा को तरलता कहा जाता है। यदि तरलता अधिक है तो मुद्रास्फीति की स्थित उत्पन्न हो सकती हैं जबकि तरलता कम होने की स्थिति में अपस्फीति या मंदी आ सकती है।
2. मुद्रा की तरलता – मुद्रा की तरलता से संदर्भ मुद्रा के व्यय होने में लगने वाले समय से है। यदि समय कम लग रहा है तो वह मुद्रा अधिक तरल है। उदाहरण के लिए यदि एक व्यक्ति के पास नगद, क्रेडिट कार्ड एवं सोने के रूप में परिसंपत्तियां (मुद्रा) उपलब्ध हैं तो नगद सबसे अधिक तरल (क्योंकि नगद सबसे जल्दी और आसानी से खर्ची जा सकती है), क्रेडिट कार्ड कुछ कम तरल और सोने की तरलता सबसे कम मानी जाएगी।
मुद्रा का मापन
1. M1= CU (Coins and Currency) + DD (Demand and Deposit)
CU अर्थात लोगों के पास उपलब्ध नगद (नोट एवं सिक्के), DD अर्थात व्यावसायिक बैंकों के पास कुल निवल जमा एवं रिजर्व बैंक के पास अन्य जमाये। निवल शब्द से बैंक के द्वारा रखी गयी लोगों की जमा का ही तरलता क्या है? बोध होता है और इसलिए यह मुद्रा की पूर्ति में शामिल हैं। अंतर बैंक जमा, जो एक व्यावसायिक तरलता क्या है? बैंक दूसरे व्यावसायिक बैंक में रखते हैं, को मुद्रा की पूर्ति के भाग के रूप में नहीं जाना जाता है।
2. M2= M1 + डाकघर बचत बैंकों की बचत जमांए
3. M3= M1 + बैंक की सावधि तरलता क्या है? जमाये(FD)
4. M4= M3 + डाकघर बचत संस्थाओं में कुल जमा राशि (राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्रों को छोड़कर)
M1 से M4 की तरफ जाने पर मुद्रा की तरलता घटती है, परन्तु बाजार की तरलता बढ़ती जाती है।
M1>M2>M3>M4
संकुचित मुद्रा (Narrow Money)= M1 को संकुचित मुद्रा भी कहते है क्योंकि मात्रा में ये अन्य सभी से सबसे कम होती है, अर्थात इसमें पैसा सबसे कम होता है।
वृहद/बड़ी मुद्रा (Broad Money)= M3 को वृहद मुद्रा कहते है। सामान्यतः वृहद मुद्रा M4 को होना चाहिए परन्तु M1 से M4 तक जाते जाते उसे प्रयोग करना कठिन हो जाता है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि उसकी (M4) की तरलता इतनी कम है कि उसे प्रयोग नहीं किया जा सकता अतः M3 को ही वृहद मुद्रा कहा जाता है।
मुद्रा के प्रकार- मुद्रा को कई आधारों पर कई वर्गों में बाँटा जा सकता है। यहां पर हम मुद्रा की भौतिक स्थिति एवं मांग के आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण बता रहें हैं-
- धात्विक – इसमें सभी सिक्के आते हैं।
- कागजी – सभी नोट आते हैं।
- प्लास्टिक – क्रेडिट एवं डेबिट कार्ड आते हैं।
- बुरी मुद्रा – इसमें सभी कटे फटे नोट आते हैं।
- अच्छी मुद्रा – इसके अंतर्गत नये नोट आते हैं।
अच्छी और बुरी मुद्रा के सम्बन्ध में अर्थशास्त्री ग्रेसम्स ने एक नियम बताया था। जिसे ग्रेसम्स के नियम के नाम से जाना जाता है।
ग्रेसम्स का नियम- किसी भी अर्थव्यवस्था में बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर निकाल देती है तथा उसका स्थान ले लेती है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति के पास पुरानी कटी-फटी मुद्रा (बुरी मुद्रा) है तो वह उसे ही पहले प्रयोग में लाने का प्रयास करेगा न की नई मुद्रा (अच्छी मुद्रा) को, इस प्रकार बुरी मुद्रा, अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है। - गर्म मुद्रा – जिस मुद्रा की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मांग अधिक हो उसे गर्म मुद्रा कहा जाता है। उदाहरण के लिए डॉलर। तरलता क्या है?
- ठण्डी मुद्रा – जिस मुद्रा की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मांग कम हो उसे ठण्डी मुद्रा कहा जाता है।
विदेशी मुद्रा
हर देश की मुद्रा का अलग मूल्य होता है जोकि उस देश के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उसके उत्पादन हिस्से के आधार पर तय होता है। सामान्य भाषा में जब किसी देश की मुद्रा का हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अधिक होगा तो उसका मूल्य भी अधिक होगा जैसे अमेरिका जिसकी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 20% हिस्सेदारी है, जबकि भारत की कुल 2% है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा का मूल्य निर्धारण
1. बाजार द्वारा मुद्रा का मूल्य निर्धारण – अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में किसी देश की मुद्रा की मांग के आधार पर उसके मूल्य का निर्धारण किया जाता है। इसे प्रवाही विनिमय दर(Floating exchange rate) कहते हैं। प्रवाही इसलिए क्योंकि यह दर कम ज्यादा होते रहती है। किसी भी देश की मुद्रा का मूल्य निरपेक्ष(अकेले) नहीं होता वो हमेशा दूसरी मुद्रा के सापेक्ष होता है, अर्थात एक देश की मुद्रा की दूसरे देश के मुद्रा के साथ तुलना की जाती है इसे विनिमय दर(Exchange rate) कहते हैं। जैसे 1$=74रू0
2. सरकार द्वारा मुद्रा का मूल्य निर्धारण – कभी-कभी सरकारें भी जानबूझकर अपने देश की मुद्रा का मूल्य कम या ज्यादा कर देती है। ऐसा उस देश की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर किया जाता है –
तरलता का मापन और तरलता मापन का अनुपात - Measurement of Liquidity and Ratios of Measuring Liquidity
तरलता का मापन और तरलता मापन का अनुपात - Measurement of Liquidity and Ratios of Measuring Liquidity
तरलता अनुपातः यह क्या है? तरलता अनुपात, एक कंपनी की अल्पकालिक ऋण दायित्वों के भुगतान करने की क्षमता को मापते हैं। तरलता अनुपात अल्पकालिक उधार और वर्तमान देनदारियों द्वारा नकदी और अन्य तरल परिसंपत्तियों को विभाजित करने का परिणाम है। वे नकद और तरल परिसंपत्तियों द्वारा अल्पकालिक ऋण दायित्वों को कवर करने की संख्या दिखाते हैं। यदि मान से बड़ा है, तो इसका मतलब है कि अल्पकालिक दायित्व पूरी तरह से कवर किए गए हैं।
आम तौर पर, तरलता अनुपात जितना अधिक होता है, उतना अधिक सुरक्षा का मार्जिन जितना अधिक कंपनी को अपनी वर्तमान देनदारियों को पूरा करना पड़ता है। से अधिक तरलता अनुपात इंगित करता है कि कंपनी अच्छी वित्तीय स्वास्थ्य में है और वित्तीय कठिनाइयों में कम संभावना है।
तरलता अनुपात के सबसे आम उदाहरणों में वर्तमान अनुपात, एसिड परीक्षण अनुपात (त्वरित अनुपात के रूप में भी जाना जाता है), नकदी अनुपात और कार्यशील पूंजी अनुपात शामिल हैं। विभिन्न विश्लेषकों द्वारा विभिन्न संपत्तियों को प्रासंगिक माना जाता है। कुछ विश्लेषकों को केवल तरलता क्या है? नकदी और नकद समकक्षों को प्रासंगिक संपत्ति के रूप में माना जाता है क्योंकि आपातकालीन स्थिति में अल्पकालिक तरलता क्या है? देनदारियों को पूरा करने के लिए उपयोग की जाने वाली सबसे अधिक संभावना है। कुछ विश्लेषकों को नकदी और नकद समकक्षों के अलावा देनदार और व्यापार प्राप्तियां प्रासंगिक संपत्ति के रूप में मानती हैं। कुछ विश्लेषकों द्वारा तरलता अनुपात की गणना के लिए वास्तुसूची का मूल्य प्रासंगिक संपत्ति भी माना जाता है।
तरलता अनुपात की बेहतर समझ के लिए नकदी चक्र की अवधारणा भी महत्वपूर्ण है। एक कंपनी के संचालन के माध्यम से लगातार चक्र नकदा एक कंपनी की नकदी आमतौर पर तैयार माल, कच्चे माल और व्यापार देनदारों में बंधी जाती है। यह तब तक नहीं है जब तक सूची बेची जाती है, बिक्री चालान उठाए जाते हैं, और देनदार भुगतान करते हैं कि कंपनी को नकदी मिलती है। नकदी चक्र में बंधे नकदी को कार्यशील पूंजी के रूप में जाना जाता है, और तरलता अनुपात मौजूदा संपत्तियों और वर्तमान देनदारियों के बीच संतुलन को मापने का प्रयास करता है।
लेनदारों को भुगतान की मांग करते समय एक कंपनी को अपने वित्तीय दायित्वों को पूरा करने के लिए नकदी चक्र से नकदी जारी करने की क्षमता होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में, एक कंपनी को अपनी अल्पकालिक परिसंपत्तियों को नकद में अनुवाद करने की क्षमता होनी चाहिए। तरलता अनुपात एक कंपनी की इस क्षमता को मापने का प्रयास करता है।
तरलता प्रबंधन, विनिमय तरलता क्या है? दर के बीच संबंध नहीं
चेन्नई। भारतीय रिजर्व बैंक [आरबीआई] के तरलता प्रबंधन कार्य का संबंध विनिमय दर से नहीं है और न ही रुपये में होने वाले उतार-चढ़ाव का प्रत्यक्ष संबंध खुला बाजार संचालन से तरलता क्या है? है। यह बात एक अधिकारी ने बुधवार को कही। रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर सुबीर गोकर्ण ने यहां संवाददाताओं से कहा कि मुझे नहीं लगता कि रुपये म
चेन्नई। भारतीय रिजर्व बैंक [आरबीआई] के तरलता प्रबंधन कार्य का संबंध विनिमय दर से नहीं है और न ही रुपये में होने वाले उतार-चढ़ाव का प्रत्यक्ष संबंध खुला बाजार संचालन से है। यह बात एक अधिकारी ने बुधवार को कही।
रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर सुबीर गोकर्ण ने यहां संवाददाताओं से कहा कि मुझे नहीं लगता कि रुपये में होने वाले उतार-चढ़ाव का संबंध खुला बाजार संचालन से है। तरलता प्रबंधन कार्य का विनिमय दर से कोई सम्बंध नहीं है।
गोकर्ण ने यहां 'विजन तमिलनाडु बिल्डिंग सस्टेनेबल टुमारो' सेमिनार से इतर यह बात कही। सेमिनार का आयोजन एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया ने किया था।
गोकर्ण ने साथ ही कहा कि चालू खाता घाटे का असर रुपये पर पड़ता है और चालू खाता घाटा में सुधार करने से मुद्रा में स्थिरता आ सकती है। मानसून में हो रही देरी पर उन्होंने कहा कि बैंक उसी तरह मानसून का इंतजार तरलता क्या है? कर रहा है, जिस तरह दूसरे लोग।
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तरलता की कमी दूर करने के उपाय करेगा आरबीआई
उन्होंने कहा कि आमतौर पर रिजर्व बैंक इस स्थिति से निबटने के लिए ओपन मार्केट ऑपरेशन (ओएमओ) का सहारा लेता है। यदि हमें लगता है कि बैंकिंग सिस्टम में दबाव लगातार बना हुआ है, तो निश्चित रूप से हमारे पास स्थिति को संभालने की क्षमता है।
बैंकिंग सिस्टम में गैर निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) के बारे में गोकर्ण ने कहा कि कुछ आर्थिक व्यवस्थाओं के चलते एनपीए का दबाव बढ़ रहा है। लेकिन एक बार एनपीए का घटना शुरू हो गया तो यह कारोबारी तंत्र में एक सुधार होगा।
रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर सुबीर गोकर्ण ने कहा कि यदि जरूरत पड़ी तो केंद्रीय बैंक बैंकिंग सिस्टम में तरलता की कमी को दूर करने के लिए कदम उठाएगा।
यहां एक सेमीनार के दौरान गोकर्ण ने कहा कि हालांकि बैंकिंग सिस्टम में तरलता की कमी की स्थिति अभी नियंत्रण में है, यदि जरूरत पड़ी तो रिजर्व बैंक आवश्यक कदम उठाएगा।
उन्होंने कहा कि आमतौर पर रिजर्व बैंक इस स्थिति से निबटने के लिए ओपन मार्केट ऑपरेशन (ओएमओ) का सहारा लेता है। यदि हमें लगता है कि बैंकिंग सिस्टम में दबाव लगातार बना हुआ है, तो निश्चित रूप से हमारे पास स्थिति को संभालने की क्षमता है।
बैंकिंग सिस्टम में गैर निष्पादित संपत्तियों (तरलता क्या है? एनपीए) के बारे में गोकर्ण ने कहा कि कुछ आर्थिक व्यवस्थाओं के चलते एनपीए का दबाव बढ़ रहा है। लेकिन एक बार एनपीए का घटना शुरू हो गया तो यह कारोबारी तंत्र में एक सुधार होगा।