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क्या आप जानते हैं हिंदुस्तानी संगीत और कर्नाटक संगीत में क्या अंतर हैं?

सुव्यवस्थित ध्वनि, जो रस की सृष्टि करे, संगीत कहलाती है। गायन, वादन व नृत्य ये तीनों ही संगीत हैं।हाल में, पॉप, जैज आदि जैसे संगीत के नये रूपों के साथ शास्त्रीय विराशत का फ्यूज़न करने की ओर रुझान बढ़ा रहा है और लोगो का ध्यान भी आकर्षित कर रहा है। भारतीय शास्त्रीय संगीत को दो प्रकार से बाटा गया है- हिंदुस्तानी शैली और कर्नाटक शैली। इस लेख में हमने, हिंदुस्तान संगीत और कर्नाटक संगीत के बारे में बताया है, जो UPSC, SSC, State Services, NDA, CDS और Railways जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए बहुत ही उपयोगी है।

Difference between Hindustani Music and Carnatic music HN

सुव्यवस्थित ध्वनि, जो रस की सृष्टि करे, संगीत कहलाती है। गायन, वादन व नृत्य ये तीनों ही संगीत हैं। भारतीय उप-महाद्वीप में प्रचलित संगीत के कई प्रकार हैं। ये विभिन्य श्रेणियों के अंतर्गत आते हैं, कुछ का झुकाव शास्त्रीय संगीत की ओर है तथा कुछ का प्रयोग वैश्विक संगीत के साथ भी किया जाता है। हाल में, पॉप, जैज आदि जैसे संगीत के नये रूपों के साथ शास्त्रीय विराशत का फ्यूज़न करने की ओर रुझान बढ़ा रहा है और लोगो का ध्यान भी आकर्षित कर रहा है। भारतीय शास्त्रीय संगीत को दो प्रकार से बाटा गया है- हिंदुस्तानी शैली और कर्नाटक शैली।

हिंदुस्तानी संगीत शैली (हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत)

यह भारतीय शास्त्रीय संगीत के दो प्रमुख शैली में से एक है। इस शैली में संगीत संरचना और उसमें तत्वकालिकता की संभावनाओं पर अधीक केन्द्रित होती है। इस शैली में “शुद्ध स्वर सप्तक या प्राकृतिक स्वरों के सप्तक” के पैमाने को अपनाया गया है। 11वीं और 12वीं शताब्दी में मुस्लिम सभ्यता के प्रसार ने भारतीय संगीत की दिशा को नया आयाम दिया। "मध्यकालीन मुसलमान गायकों और नायकों ने भारतीय संस्कारों को बनाए रखा। " ध्रुपद, धमर, होरी, ख्याल, टप्पा, चतुरंग, रससागर, तराना, सरगम और ठुमरी” जैसी हिंदुस्तानी संगीत शैली में गायन की दस मुख्य शैलियाँ हैं। ध्रुपद को हिंदुस्तान शास्त्रीय संगीत का सबसे पुराना गायन शैली माना जाता है, जिसके निर्माता स्वामी हरिदास को माना जाता है।

हिंदुस्तानी संगीत शैली की विशेषताएं

1. गीत के नैतिक निर्माण (नदी और सांवादी स्वर) पर जोर दिया जाता है।

2. गायक तेजी से ताली के साथ गायन करता है, जिसे 'जोदा' कहा जाता है।

3. पूर्ण स्वरों को पूरा माना जाता है जब विकृत स्वर के साथ गायन होता है।

4. शुद्ध स्वरों की ठाट को 'तिलवाल' कहा जाता है।

5. स्वरों में रेंज और लचीलापन होता है।

6. समय सीमा का पालन किया जाता है। सुबह और शाम के लिए अलग-अलग राग होता हैं।

7. ताल सामान्य होता हैं।

8. राग लिंग भिन्नता पर आधारित होता हैं।

9. इसके प्रमुख 6 राग हैं।

कर्नाटक संगीत शैली

यह शैली उस संगीत का सृजन करती है जिसे परम्परिक सप्तक में बनाया जाता है। यह भारत के शास्त्रीय संगीत की दक्षिण भारतीय शैली का नाम है, जो उत्तरी भारत की शैली हिन्दुस्तानी संगीत से काफी अलग है। इस शैली में ज्यादातर भक्ति संगीत के रूप में होता है और ज्यादातर रचनाएँ हिन्दू देवी देवताओं को संबोधित होता है। इसके अलावा कुछ हिस्सा प्रेम और अन्य सामाजिक मुद्दों को भी समर्पित होता है।

इस शैली के संगीत में कई तरह के घटक हैं- जैसे मध्यम और तीव्र गति से ढोलकिया के साथ प्रदर्शन किय जाने वाला तत्वकालिक अनुभाग स्वर-कल्पना। इस शैली में सामान्यतः मृद्गम के साथ गया जाता है। मृद्गम के साथ मुक्त लय में मधुर तत्वकालिक का खण्ड ‘थानम’ कहलाता है। लेकिन वे खंड जिनमें मृद्गम की आवश्यकता नहीं होती है उन्हें ‘रागम’ बोला जाता है।

त्यागराज, मुथुस्वामी दीक्षितार और श्यामा शास्त्री को कर्नाटक संगीत शैली की 'त्रिमूर्ति' कहा जाता है, जबकि पुरंदर दास को अक्सर कर्नाटक शैली का पिता कहा जाता है। इस शैली के विषयों में पूजा-अर्चना, मंदिरों का वर्णन, दार्शनिक चिंतन, नायक-नायिका वर्णन और देशभक्ति भी शामिल हैं। वर्णम, जावाली और तिल्लाना इस संगीत शैली के गायन शैली के प्रमुख रूप हैं।

कर्नाटक संगीत शैली की विशेषताएं

1. इस शैली में ध्वनि की तीव्रता नियंत्रित की जाती है।

2. हेलीकल (कुंडली) स्वरों का उपयोग किया जाता है।

3. कंठ संगीत पर ज्यादा बल दिया जाता है।

4. इस शैली में 72 प्रकार के राग होता है।

5. तत्वकालिकता के लिए कोई स्वतंत्रता नहीं होती है और गायन शैली की केवल एक विशेष निर्धारित शैली होती है।

6. स्वरों की शुद्धता, श्रुतियों से ज्यादा उच्च शुद्धता पर आधारित होती है।

7. शुद्ध स्वरों की ठाट को 'मुखरी' कहा जाता है।

8. समय अवधि कर्नाटक संगीत में अच्छी तरह से परिभाषित हैं। मध्य 'विलाम्बा' से दो बार और 'ध्रुता' मध्य में से दो बार है।

भारत में शिक्षक शिक्षा नीति को समय के हिसाब से निरूपित किया गया है और यह शिक्षा समितियों/आयोगों की विभिन्‍न रिपोर्टों में निहित सिफारिशों पर आधारित है, जिनमें से रुझान प्रकार महत्‍वपूर्ण हैं : कोठारी आयोग (1966), चट्टोपाध्‍याय समिति (1985), राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति (एन पी ई 1986/92), आचार्य राममूर्ति समिति (1990), यशपाल समिति (1993) एवं राष्‍ट्रीय पाठ्यचर्या ढॉंचा (एन सी एफ, 2005)। नि:शुल्‍क और अनिवार्य बाल रुझान प्रकार शिक्षा अधिकार (आर टी ई) अधिनियम, 2009, जो 1 अप्रैल, 2010 से लागू हुआ, का देश में शिक्षक शिक्षा के लिए महत्‍वपूर्ण निहितार्थ है।

विधिक और सांस्‍थानिक ढांचा

देश की संघीय ढांचे में हालांकि शिक्षक शिक्षा पर विस्‍तृत नीतिगत और विधिक ढांचा केन्‍द्र सरकार द्वारा प्रदान किया जाता है, फिर भी विभिन्‍न कार्यक्रमों और स्‍कीमों का कार्यान्‍वयन प्रमुखत: राज्‍य सरकारों द्वारा किया जाता है। स्‍कूली बच्‍चों की शिक्षा उपलब्धियों के सुधार के विस्‍तृत उद्देश्‍य की दोहरी कार्यनीति है : (क) स्‍कूल प्रणाली के लिए अध्‍यापकों को तैयार करना (सेवा पूर्व प्रशिक्षण); और (ख) मौजूदा स्‍कूल अध्‍यापकों की क्षमता में सुधार करना (सेवाकालीन प्रशिक्षण)।

सेवा पूर्व प्रशिक्षण के लिए राष्‍ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एन सी टी ई), जो केन्‍द्र सरकार का सांविधिक निकाय है, देश में शिक्षक शिक्षा के नियोजित और समन्वित विकास का जिम्‍मेदार है। एन सी टी ई विभिन्‍न शिक्षक शिक्षा पाठ्यक्रमों के मानक एवं मानदंड, शिक्षक शिक्षकों के लिए न्‍यूनतम योग्‍यताएं, विभिन्‍न पाठ्यक्रमों के लिए छात्र-अध्‍यापकों के प्रवेश के लिए पाठ्यक्रम एवं घटक तथा अवधि एवं न्‍यूनतम योग्‍यता निर्धारित करती है। यह ऐसे पाठ्यक्रम शुरू करने की इच्‍छुक संस्‍थाओं (सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्‍त और स्‍व-वित्तपोषित) को मान्‍यता भी प्रदान करता है और उनके मानदंड और गुणवत्ता विनियमित करने और उन पर निगरानी के निमित्‍त व्‍यवस्‍था है।

सेवाकालीन प्रशिक्षण के लिए देश में सरकारी स्‍वामित्‍व वाली शिक्षक प्रशिक्षण संस्‍थाओं (टी टी आई) का बड़ा नेटवर्क है, जो स्‍कूल अध्‍यापकों को सेवाकालीन प्रशिक्षण प्रदान करता है। इन टी टी आई का फैलाव रैखिक एवं क्षैतिज दोनों है। राष्‍ट्रीय स्‍तर पर छह क्षेत्रीय शिक्षा संस्‍थाओं (आर ई ए) के साथ राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद विभिन्‍न शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों के लिए मॉड्यूलों का समूह तैयार करता है और अध्‍यापकों तथा शिक्षक शिक्षकों के प्रशिक्षण के विशिष्‍ट कार्यक्रम भी शुरू करता है। राष्‍ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन विश्‍वविद्यालय (एनयूईपीए) द्वारा संस्‍थानिक सहायता भी दी जाती है। एन सी ई आर टी और एन यू ई पी ए दोनों राष्‍ट्रीय स्‍तर के स्‍वायत्तशासी निकाय हैं। राज्‍य स्‍तर पर राज्‍य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषदें (एस सी ई आर टी), शिक्षक प्रशिक्षण के मॉड्यूल तैयार करती हैं और शिक्षक शिक्षकों और स्‍कूल शिक्षकों के लिए विशिष्‍ट पाठ्यक्रमों का संचालन करती हैं। शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय (सी टी ई) और उन्‍नत शिक्षा विद्या संस्‍थान (आई ए एस ई), माध्‍यमिक और वरिष्‍ठ माध्‍यमिक स्‍कूल अध्‍यापकों और शिक्षक शिक्षकों को सेवाकालीन प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। जिला स्‍तर पर सेवाकालीन प्रशिक्षण जिला रुझान प्रकार शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्‍थानों (डी आई ई टी) द्वारा प्रदान किया जाता है। स्‍कूल अध्‍यापकों को सेवाकालीन प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए प्रखंड संसाधन केन्‍द्र (बी आर सी) और समूह संसाधन केन्‍द्र (सी आर सी) रैखिक सोपान में सबसे निचले सोपान के संस्‍थान हैं। इनके अलावा सिविल सोसायटी, गैर सहायता प्राप्‍त स्‍कूलों और अन्‍य स्‍थापनाओं की सक्रिय भूमिका के साथ भी सेवाकालीन प्रशिक्षण प्रदान किए जाते हैं।

कार्यक्रमों और कार्यकलापों का वित्तपोषण

सेवा-पूर्व प्रशिक्षण के लिए सरकारी और सरकार सहाय्यित शिक्षक शिक्षा संस्‍थाओं को संबंधित राज्‍य सरकारों द्वारा वित्तीय सहायता दी जाती है। इसके अलावा शिक्षक शिक्षा की केन्‍द्र प्रायोजित स्‍कीम के अंतर्गत केन्‍द्र सरकार भी डी आई रुझान प्रकार ई टी, सी टी ई और आई ए सी ई सहित 650 से अधिक संस्‍थाओं को सहायता करती है।

सेवाकालीन प्रशिक्षण के लिए केन्‍द्र सरकार द्वारा वित्तीय सहायता मुख्‍यत: सर्व शिक्षा अभियान (एस एस ए) के अंतर्गत दी जाती है, जो आर टी ई अधिनियम के कार्यान्‍वयन के लिए मुख्‍य साधन है। एस एस ए के अंतर्गत स्‍कूल अध्‍यापकों को 20 दिन का सेवाकालीन प्रशिक्षण, अप्रशिक्षित अध्‍यापकों को 60 दिन का पुनश्‍चर्या पाठ्यक्रम और नव नियुक्‍त प्रशिक्षित व्‍यक्तियों को 30 दिन का अभिमुखन प्रदान किया जाता है। शिक्षक शिक्षा की केन्‍द्र प्रायोजित स्‍कीम के अंतर्गत जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्‍थानों (डी आई ई टी), शिक्षक शिक्षा महाविद्यालयों (रुझान प्रकार सी टी ई) और उन्‍नत शिक्षा अध्‍ययन संस्‍थानों (आई ए एस ई) को भी सेवाकालीन प्रशिक्षण के लिए केन्‍द्रीय सहायता प्रदान की जाती है। राज्‍य सरकारें भी सेवाकालीन कार्यक्रमों को वित्तीय सहायता देती है। बहु-पक्षीय संगठनों सहित विभिन्‍न एन जी ओ सेवाकालीन प्रशिक्षण कार्यकलापों सहित विभिन्‍न हस्‍तक्षेपों की सहायता करता है।

नि:शुल्‍क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 में शिक्षक शिक्षा का निहितार्थ

नि:शुल्‍क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 का वर्तमान शिक्षक शिक्षा प्रणाली और शिक्षक शिक्षा पर केन्‍द्र प्रायोजित स्‍कीम का निहितार्थ है। अधिनियम में अन्‍य बातों के साथ-साथ ये प्रावधान हैं कि :

  • केन्‍द्र सरकार अध्‍यापकों के प्रशिक्षण के मानकों का विकास और उनका प्रवर्तन करेगा।
  • केन्‍द्र सरकार द्वारा प्राधिकृत अकादमिक प्राधिकरण द्वारा यथा निर्धारित न्‍यूनतम योग्‍यता रखने वाले व्‍यक्ति शिक्षक के रूप में नियोजित किए जाने के पात्र होंगे।
  • ऐसी निर्धारित योग्‍यताएं नहीं रखने वाले मौजूदा अध्‍यापकों को 5 वर्ष की अवधि में उक्‍त योग्‍यता अर्जित करना अपेक्षित होगा।
  • सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि अनुसूची में विहित छात्र-शिक्षक अनुपात प्रत्‍येक स्‍कूल में बनाए रखा जाए।
  • सरकार द्वारा स्‍थापित, स्‍वामित्‍व, नियंत्रित और पर्याप्‍त रूप से वित्तपोषित स्‍कूल में शिक्षक की रिक्ति संस्‍वीकृत क्षमता के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।

शिक्षक शिक्षा का राष्‍ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा

राष्‍ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एन सी टी ई) ने शिक्षक शिक्षा पर राष्‍ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा तैयार किया है, जिसे मार्च 2009 में परिचालित किया गया था। यह ढांचा एन सी एफ, 2005 की पृष्‍ठभूमि में तैयार किया गया है और नि:शुल्‍क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 में निर्धारित सिद्धांतों ने शिक्षक शिक्षा पर परिवर्तित ढांचा अनिवार्य कर दिया है, जो एन सी एफ, 2005 में संस्‍तुत स्‍कूल पाठ्यचर्या के परिवर्तित दर्शन के अनुकूल हो। शिक्षक शिक्षा का दर्शन स्‍पष्‍ट करते हुए इस ढांचे में नए दृष्टिकोण के कुछ महत्‍वपूर्ण आयाम हैं :

  • परावर्ती प्रचलन, शिक्षक शिक्षा का केन्‍द्रीय लक्ष्‍य;;
  • छात्र-अध्‍यापकों को स्‍व-शिक्षा परावर्तन नए विचारों के आत्‍मसातकरण और अभिव्‍यक्ति का अवसर होगा
  • स्‍व-निर्देशित शिक्षा की क्षमता और सोचने की योग्‍यता का विकास और समूहों में कार्य महत्‍वपूर्ण।
  • बच्‍चों के पर्यवेक्षण एवं शामिल करने, बच्‍चों से संवाद करने और उनसे जुड़ने का अवसर। इस ढांचे ने फोकस, विशिष्‍ट उद्देश्‍यों, सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक शिक्षा के अनुकूल विस्‍तृत अध्‍ययन क्षेत्र और पाठ्यचर्या अंतरण और विभिन्‍न प्रारंभिक शिक्षक शिक्षा कार्यक्रमों के लिए मूल्‍यांकन कार्यनीति उजागर की हैं। मसौदा आधारभूत मुद्दों को भी रेखांकित करता है, जो इन पाठ्यक्रमों के सभी कार्यक्रमों का निरूपण निदेशित करेगा। इस ढांचे ने सेवाकालीन शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के दृष्टिकोण और रीति विधान पर अनेक सिफारिशें भी की हैं और इसकी कार्यान्‍वयन कार्यनीति भी रेखांकित की गई है। एन सी एफ टी ई के स्‍वाभाविक परिणाम के रूप में एन सी टी ई ने विभिन्‍न शिक्षक शिक्षा पाठ्यक्रमों का 'आदर्श' पाठ्यक्रम भी तैयार किया है।

विनियामक ढांचे में सुधार

राष्‍ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद का गठन देश में शिक्षक शिक्षा के नियोजन एवं समन्वित विकास की प्राप्ति, शिक्षक शिक्षा प्रणाली के मानकों एवं मानदंडों के विनियमन और उपयुक्‍त अनुरक्षण के लिए राष्‍ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद अधिनियम, 1993 के अंतर्गत किया गया था। पिछले दिनों में एन सी टी ई ने अपने कार्यकरण में क्रमिक सुधार और शिक्षक शिक्षा प्रणाली में सुधार के विभिन्‍न उपाय किए हैं, जो इस प्रकार हैं :

राजस्थान में देसी पर्यटकों की संख्या 90 प्रतिशत बढ़ी

Jaipur: कोरोना महामारी के बाद लोगों का पर्यटन की ओर एक बार फिर रुझान बढ़ने के बीच राजस्थान में देशी पर्यटकों की संख्या में इस साल अब तक 90.4 प्रतिशत बढ़ोतरी देखने को मिली है. पर्यटन विभाग के अधिकारियों ने यह जानकारी दी. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अध्यक्षता में बृहस्पतिवार को आयोजित पर्यटन विभाग की समीक्षा बैठक में बताया गया कि वर्ष 2022 में राजस्थान में पर्यटकों के आगमन में अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई है. राज्य में देसी पर्यटकों की संख्या में इस वर्ष 90.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इसके अलावा इस वर्ष सितम्बर तक 1.64 लाख विदेशी सैलानी राजस्थान घूमने आए हैं.

अधिकारियों के अनुसार राज्य सरकार द्वारा पर्यटन के क्षेत्र में लिए जा रहे विभिन्न निर्णयों से राज्य देश-विदेश के पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बना है. एक सरकारी प्रवक्ता के अनुसार बैठक में मुख्यमंत्री गहलोत ने कहा कि पर्यटन क्षेत्र राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है. इससे बड़े स्तर पर रोजगार सृजित होता है. वहीं इससे प्राप्त होने वाली आय से राज्य के विकास को गति मिलती है. उन्होंने कहा कि राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों की विशिष्ट लोक कलाओं और संस्कृति के संरक्षण तथा उत्थान के लिए राज्य सरकार जल्द ही राजस्थान लोक कला उत्सव का आयोजन करने जा रही है. बैठक में बताया गया कि राजस्थान में लगभग 22 प्रकार के लोक उत्सव आयोजित किए जा रहे हैं. इन उत्सवों के माध्यम से सैलानी स्थानीय संस्कृति एवं लोक कलाओं का आनंद उठा रहे हैं.

मुख्यमंत्री ने कहा कि जयपुर के टाउन हॉल रुझान प्रकार को एक म्यूजियम के रूप में विकसित किया जाएगा. इसके लिए राज्य सरकार ने 96 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया है. यहां राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों का इतिहास पर्यटकों को दिखाया जाएगा. इसमें यह भी बताया गया कि जैसलमेर में ढोला-मारू टुरिज्म कॉम्पलेक्स के निर्माण के लिए रिपोर्ट तैयार कर 865 एकड़ भूमि आवंटित कर दी गई है. जल्द ही टूरिज्म कॉम्पलेक्स का निर्माण पूरा किया जाएगा. इसमें राजस्थान की लोक कला के प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन की व्यवस्था के साथ-साथ पर्यटकों के रूकने का उत्कृष्ट प्रबंध होगा. यहां राजस्थान के हस्तनिर्मित उत्पादों के अलावा राजस्थान के परम्परागत व्यंजनों का स्वाद सैलानी ले सकेंगे.

निम्नलिखित में से किस संगठन द्वारा निवेश रुझान मॉनिटर रिपोर्ट जारी किया जाता है?

Important Points

  • UNCTAD
    • विश्व अर्थव्यवस्था में विकासशील देशों के विकास के अनुकूल एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए 1964 में व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) की स्थापना की गई थी।
    • UNCTAD एक स्थायी अंतरसरकारी निकाय है जिसका मुख्यालय जिनेवा, स्विटजरलैंड में है
    • इसके द्वारा प्रकाशित कुछ रिपोर्ट्स इस प्रकार हैं:
      • व्यापार और विकास रिपोर्ट
      • विश्व निवेश रिपोर्ट
      • सबसे कम विकसित देशों की रिपोर्ट
      • सूचना और अर्थव्यवस्था रिपोर्ट
      • प्रौद्योगिकी और नवाचार रिपोर्ट
      • जिंसों और विकास रिपोर्ट

      Additional Information

      संगठन पूर्ण रूप स्थापना वर्ष मुख्यालय अध्यक्ष
      विश्व बैंक - जुलाई 1944, वाशिंगटन, डीसी, संयुक्त राज्य अमेरिका डेविड मालपास
      UNCTAD व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र का सम्मेलन 1964 जिनेवा, स्विट्जरलैंड। महासचिव; (रेबेका ग्रिनस्पैन)
      IMF अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष 27 दिसंबर 1945 वाशिंगटन, डीसी, यूएस‎ प्रबंध निदेशक: (क्रिस्टालिना जॉर्जीवा)
      WEF विश्व आर्थिक मंच जनवरी 1971 कोलोनी, स्विट्ज़रलैंड कार्यकारी अध्यक्ष (क्लॉस श्वाब)

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      Last updated on Sep 22, 2022

      The Staff Selection Commission (SSC) has released the admit card for all regions for Paper I of the SSC JE ME 2022 exam on 9th November 2022. The Paper I of the SSC JE ME is scheduled to be conducted from 14th November 2022 to 16th November 2022. Candidates can check out SSC JE ME Admit Cards here. The candidates who will clear the exam will get a salary as per the Rs. 35,400/- to Rs. 1,12,400/- payscale. Candidates can prepare in the best way by following the SSC JE ME Best Books to crack the exam.

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