मुद्रा पहलू

IMF Report: भारत की रैंकिंग नहीं सुधरी, दुनिया धीमी पड़ गई है! सिक्के का दूसरा पहलू देखिए
IMF World Economic Outlook, October 2022: इंटरनैशनल मॉनेटरी फंड (IMF) का अनुमान है कि भारत 2022-23 में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली टॉप 3 अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा।
2001-11 में 3.7 गुना बढ़ी भारतीय अर्थव्यवस्था, अगले 10 साल में सिर्फ 1.7 गुना।
हाइलाइट्स
- 2001-11 के बीच सबसे तेजी से बढ़ी थी भारत की अर्थव्यवस्था
- उस वक्त की उभरती अर्थव्यवस्थाओं मुकाबले धीमी रही रफ्तार
- 2011-21 में भारत की रफ्तार घटी, बाकी दुनिया और सुस्त हुई
- 2023 में 6.8 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी भारत की इकॉनमी: IMF
यह वही दशक था जब भारत की अर्थव्यवस्था सबसे तेजी से बढ़ी। यह बात अलग है कि उस दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार दुनिया की बाकी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले धीमी थी। उससे पहले के दशकों, 1991-2001 और 1981-91 के बीच भारत की रफ्तार बाकी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के औसत से बेहतर रही या फिर थोड़ी सी कम।
धीमी पड़ी दुनिया के आर्थिक विकास की रफ्तार
ध्यान रहे कि यह रिलेटिव ग्रोथ रैंकिंग्स हैं, एब्सॉल्यूट ग्रोथ फिगर्स नहीं। यानी 2011-21 के बीच भारत का बेहतर प्रदर्शन रहना लेकिन 2001-11 में नहीं, इसमें तारतम्य नहीं है क्योंकि आर्थिक विकास की रफ्तार पिछले दशक में धीमी पड़ी है। भारत की रैंकिंग में सुधार के पीछे दुनिया की रफ्तार धीमी होना प्रमुख फैक्टर है। डॉलर्स के लिहाज से देखें तो 2001-11 के बीच भारत की अर्थव्यवस्था का आकार 3.7 गुना बढ़ा जबकि 2011-21 के के बीच केवल 1.7 गुना।
पिछले दशक में धीमी रही अर्थव्यवस्था की रफ्तार
IMF के आंकड़ों में छिपा है इशारा
2022 में (भारत के लिए 2022-23) अर्थव्यवस्था के 6.8 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है। इसी दौरान, बाकी उभरती अर्थव्यवस्थाएं 3.7% की औसत रफ्तार से बढ़ेंगी। 3 प्रतिशत से ज्यादा का यह अंतर 2023 में 2.4 पर्सेंटेज पॉइंट्स रह सकता है। ऐसा होना लगभग तय है क्योंकि चीन की आर्थिक रफ्तार तेजी से मंदी पड़ रही है जिसका असर उभरती अर्थव्यवस्थाओं के औसत पर पड़ेगा। ऐडवांस्ड मुद्रा पहलू अर्थव्यवस्थाओं की रफ्तार की 3.4% से घटकर अगले साल 1.1 प्रतिशत रहे जाने का अनुमान है। एक तरह से, बिना कहे IMF 'डीकपलिंग' जैसे हालात की ओर इशारा कर रहा है। अगर आंशिक रूप से ऐसा होता है और भारत की वृद्धि का आंकड़ा अनुमानों से थोड़ा कम भी रहता है तो भी भारत का 'अंधकार से घिरे क्षितिज में एक उज्ज्वल स्थान' (IMF ने यही कहा है) लंबे वक्त तक बरकरार रह सकता है।
आर्थिक अनुमानों पर IMF की ताजा रिपोर्ट
तेल से संपन्न सऊदी अरब को किनारे कर दें तो भारत के साथ-साथ बांग्लादेश और वियतनाम सही दिशा में बढ़ते नजर आ रहे हैं। कहना गलत नहीं होगा कि देर से ही सही, ये देश वही करने की कोशिश कर रहे हैं जो पूर्वी एशियाई देश पहले के दशकों में करके दिखा चुके हैं। फिर चाहे वह साउथ कोरिया हो या फिर ताइवान। वियतनाम की प्रति व्यक्ति आय भारत से 60% ज्यादा है और फिलीपींस से भी। 2022 के अनुमानों में फिलीपींस का नंबर टॉप 3 के ठीक बाद है। ये चारों देश उन अंतरराष्ट्रीय कारोबारों की निगाह में रहे हैं जो चीन+1 रणनीति के तहत अपने प्रॉडक्शन बेसेज को चीन से दूर ले जाना चाहते हैं।
IMF के चार दशकों का डेटा क्या बताता है?
सभी चार दशकों (1981-2021) को साथ देखें तो IMF के आंकड़े बताते हैं कि केवल तीन देश ही भारत से बेहतर कर पाए। चीन अलग लीग में है, उसकी अर्थव्यवस्था इस दौरान 62 गुना बड़ी (वर्तमान डॉलर रेट के हिसाब से) हो गई। साउथ कोरिया की अर्थव्यवस्था का आकार 25 गुना बढ़ा और फिर वियतनाम का नंबर आता है। भारत, इजिप्ट, श्रीलंका, बांग्लादेश और ताइवान की अर्थव्यवस्था में इन दौरान 16 गुना का इजाफा हुआ। थाइलैंड और मलेशिया ज्यादा पीछे नहीं हैं। मतलब यह कि हमारा आर्थिक रिकॉर्ड अच्छा भले रहा हो, यह उतना शानदार नहीं है। फिर भी एक पॉजिटिव आंकड़ा जेहन में बैठाते जाइए। दुनिया की GDP में भारत की हिस्सेदारी 1981-91 वाले दशक में 1.7 से घटकर 1.1 प्रतिशत पर आ गई थी। 2011 तक यह बढ़कर 2.5 प्रतिशत हो गई और 2021 में 3.3 प्रतिशत। संकेत यही हैं कि यह आंकड़ा और ऊपर चढ़ेगा।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के केंद्रीय बोर्ड ने डिजिटल मुद्रा के पहलुओं पर चर्चा, जल्द शुरू हो सकता है पायलट प्रोजेक्ट
आरबीआइ के केंद्रीय बोर्ड ने शुक्रवार को केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा की स्थिति सहित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। आरबीआई के अधिकारियों ने बोर्ड को सूचित किया कि सीबीडीसी की शुरुआत के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट जल्द ही शुरू किया जाएगा।
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के केंद्रीय बोर्ड ने शुक्रवार को केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC) की स्थिति सहित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। आरबीआई के अधिकारियों ने बोर्ड को सूचित किया कि सीबीडीसी की शुरुआत के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट जल्द ही शुरू किया जाएगा। आरबीआई निजी क्रिप्टोकरेंसी के खिलाफ रहा है, केंद्रीय बैंक का मानना है कि, क्रिप्टोकरेंसी व्यापक आर्थिक और वित्तीय स्थिरता के दृष्टिकोण से एक गंभीर चिंता का विषय हैं।
इससे पहले रिजर्व मुद्रा पहलू बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव भी क्रिप्टोकरेंसी को लेकर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर कर चुके हैं। पिछले दिनों क्रिप्टोकरेंसी के मुद्दे पर एक बयान देते हुए केंद्रीय बैंक के पूर्व गवर्नर ने यह कहा था कि, "अगर देश में क्रिप्टोकरेंसी की अनुमति दी जाती है तो केंद्रीय बैंक मुद्रा आपूर्ति और मुद्रास्फीति प्रबंधन पर नियंत्रण खो सकता है। भारत के मामले में केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (सीबीडीसी) जारी करना ठोस कदम नहीं हो सकता, क्योंकि पूंजी नियंत्रित है। क्रिप्टो एल्गोरिदम द्वारा समर्थित है और डर है कि केंद्रीय बैंक पैसे की आपूर्ति और मुद्रास्फीति प्रबंधन पर नियंत्रण खो सकता है। ऐसी भी चिंताएं हैं कि क्रिप्टो मौद्रिक नीति को बाधित करेगा। क्रिप्टो पूंजी नियंत्रण से जंप कर सकता है, क्योंकि फिएट मुद्रा आरक्षित मुद्रा से जुड़ी हुई मुद्रा पहलू है।" साल 2008 से 2013 तक आरबीआई के गवर्नर रहे राव के मुताबिक, "सीबीडीसी को भी मजबूत डेटा संरक्षण कानूनों की जरूरत है। भारत में नकदी की निकासी हो रही है और डिजिटल भुगतान लोकप्रिय हो रहे हैं। महामारी के कारण, मुद्रा प्रचलन में वृद्धि हुई है, क्योंकि लॉकडाउन के कारण लोगों के पास नकदी थी। मुद्रा पहलू अंतिम उपाय बैंक के रूप में आरबीआइ की भूमिका में बाधा नहीं आनी चाहिए।"
आपको बताते चलें कि सरकार पहले ही क्रिप्टोकरेंसी को लेकर अपना रुख साफ कर चुकी है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस मामले पर पिछले महीने एय बयान देते हुए यह कहा था कि, क्रिप्टोकरेंसी को भारत में प्रोत्साहित करने की सरकार की कोई योजना नहीं है। कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद क्रिप्टोकरेंसी नियामक व डिजिटल करेंसी बिल 2021 पेश किया जाएगा। संसद के चालू सत्र में पेश होने के लिए क्रिप्टोकरेंसी बिल को सूचीबद्ध किया गया है जिसके तहत निजी क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। ऐसी उम्मीद है कि, चुनिंदा क्रिप्टोकरेंसी को संपदा के रूप में इजाजत दी जा सकती है।
रुपये में कमजोरी से गिरा विदेशी मुद्रा भंडार, एक्सचेंज रेट से 67 प्रतिशत तक आई गिरावट: RBI
रिजर्व दो अप्रैल को 606.47 अरब अमेरिकी डॉलर था, जबकि 23 सितंबर को यह घटकर 537.5 अरब अमेरिकी डॉलर रह गया. यह लगातार आठवां सप्ताह था, जब विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट हुई.
चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से विदेशी मुद्रा भंडार में हुई आई कमी की मुख्य वजह एक्सचेंज रेट में हुआ बदलाव है. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने पॉलिसी समीक्षा में कहा कि रिजर्व में आई कुल गिरावट का 67 प्रतिशत, एक्सचेंज रेट में हुए बदलाव से देखने को मिला है. उन्होंने कहा कि अमेरिकी मुद्रा के मजबूत होने तथा अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल के बढ़ने से एक्सचेंज रेट में बदलाव देखने को मिला. गौरतलब है कि चालू वित्त वर्ष में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में तेज गिरावट हुई है. वहीं इस दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में तेज गिरावट देखने को मिली है. भंडार दो अप्रैल को 606.475 अरब अमेरिकी डॉलर था, जबकि 23 सितंबर को यह घटकर 537.5 अरब मुद्रा पहलू अमेरिकी डॉलर रह गया. यह लगातार आठवां सप्ताह था, जब विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट हुई.
14 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ा डॉलर इंडेक्स
चालू वित्त वर्ष में 28 सितंबर तक छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर में 14.5 प्रतिशत की तेजी आई है. ऐसे में दुनिया भर के करंसी मार्केट में भारी उथल-पुथल मची हुई है. दास ने द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा जारी करते हुए कहा कि ज्यादातर दूसरे देशों की तुलना में भारतीय रुपये की गति व्यवस्थित रही है. उन्होंने कहा कि समीक्षाधीन अवधि में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में 7.4 प्रतिशत की गिरावट आई, जो अन्य करंसी के मुकाबले काफी बेहतर है.दास ने यह भी मुद्रा पहलू कहा कि एक स्थिर विनिमय दर वित्तीय और व्यापक आर्थिक स्थिरता तथा बाजार के विश्वास का प्रतीक है. उन्होंने कहा कि रुपया एक स्वतंत्र रूप से छोड़ी गई मुद्रा है और इसकी विनिमय दर बाजार द्वारा निर्धारित होती है. उन्होंने कहा, ”आरबीआई ने (रुपये के लिए) कोई निश्चित विनिमय दर तय नहीं की है. वह अत्यधिक अस्थिरता को रोकने के लिए बाजार में हस्तक्षेप करता है.” दास ने कहा कि विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता के पहलू को हमेशा ध्यान में रखा जाता है और यह मजबूत बना हुआ है. उनके अनुसार 23 सितंबर, 2022 तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 537.5 अरब डॉलर था.
एक्सचेंज रेट से तय नहीं होती पॉलिसी
हालांकि गवर्नर ने कहा है कि मौद्रिक नीति के फैसले करंसी में आए के उतार-चढ़ाव से प्रभावित नहीं होते. दास ने शुक्रवार को द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा के बाद संवाददाता सम्मेलन में कहा कि मुद्रा का प्रबंधन रिजर्व बैंक के दायरे में है और केंद्रीय बैंक इसके लिए सभी उचित उपाय करेगा. उन्होने कहा कि केंद्रीय बैंक दरों पर रणनीति मुद्रास्फीति और वृद्धि से जुड़े घरेलू कारकों के आधार पर तय करता है। उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा प्राथमिकता मुद्रास्फीति को दी जाती है। हम वृद्धि के पहलू पर भी गौर करते हैं।दास ने यह भी कहा कि बैंकों में नकदी को लेकर चिंता की कोई बात नहीं है। व्यापक रूप से प्रणाली में पांच लाख करोड़ रुपये से अधिक का कोष उपलब्ध है।
ई-रुपये की शुरुआत देश में मुद्रा के इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण था
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि ई-रुपये की शुरुआत देश में मुद्रा के इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण था क्योंकि इससे यह व्यापार करने और लेनदेन का तरीका बदल जाएगा। उन्होंने मुंबई में फिक्की और बैंकिंग संगठनों द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित कार्यक्रम में कहा कि रिजर्व बैंक, डिजिटल करेंसी की शुरूआत से पहले सभी पहलुओं का समाधान कर लेना चाहता है। उन्होंने कहा कि बैंक को आशा है कि कैलेंडर वर्ष 2023 तक डिजिटीकृत किसान क्रेडिट कार्ड ऋण पूरी तरह से शुरू हो जाएगा। केन्द्रीय बेंक के गवर्नर ने बताया कि पिछले महीने किसान क्रेडिट कार्ड ऋण पर शुरू से अंत तक डिजिटीकरण के साथ प्रायोगिक परियोजना शुरू की गई थी। इस प्रक्रिया में किसानों को ऋण की मंजूरी के लिए बार-बार बैंकों में जाने की आवश्यकता नहीं है। मुद्रास्फीति के बारे में श्री शक्तिकांत दास ने कहा कि केन्द्रीय बैंक मुद्रास्फीति के रुझान और पिछले कार्यों के प्रभाव की बारीकी से निगरानी कर रहा है।