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तरलता क्या है

तरलता क्या है
लिक्विडिटी क्या है Liquidity in Hindi.

तरलता पसन्दगी फलन | तरलता पसन्दगी के उद्देश्य | ब्याज निर्धारण

प्रो० कीन्स ने 1936 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘The General तरलता क्या है Theory of Employment, Interest and Money’ में इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। कीन्स के अनुसार, “ब्याज एक निश्चित अवधि के लिए तरलता के परित्याग का पुरस्कार है।” (Interest is the reward paid for parting with liquidity for a specified period.)

इस सिद्धान्त के अनुसार, ब्याज का निर्धारण तरलता पसन्दगी (मुद्रा की माँग) व मुद्रा की पूर्ति द्वारा होता है। इसमें मुद्रा की पूर्ति की अपेक्षा मुद्रा की माँग को अधिक महत्त्व दिया गया है। मुद्रा की पूर्ति को एक निश्चित अवधि में स्थिर माना गया है।

मुद्रा की माँगः तरलता पसन्दगी (Demand for Money: Liquidity Preference)- कीन्स के अनुसार, मुद्रा की माँग से अभिप्राय मुद्रा की उस राशि से है जो लोग अपने पास तरल अथवा नकद रूप में रखना चाहते हैं। धन को नकद रूप में रखने की सुविधा ही तरलता पसन्दगी कहलाती है। यदि मुद्रा की माँग अधिक है तो तरलता पसन्दगी भी अधिक होगी और यदि मुद्रा की माँग कम है तो तरलता पसन्दगी भी कम होगी। लोग अपने पास धन तरलता क्या है को तरल रूप में इसलिए रखना चाहते हैं कि वे ब्याज की दर में होने वाले परिवर्तनों का लाभ उठा सकें। ब्याज की ऊँची दर पर तरलता पसन्दगी कम होती है और ब्याज की नीची दर पर तरलता पसन्दगी अधिक होती है।

कीन्स के शब्दों में- “ब्याज की दर वह पुरस्कार है जो व्यक्तियों को अपने धन को संचित मुद्रा के अतिरिक्त अन्य किसी रूप में रखने के लिये आकर्षित करने के लिये चुकाया जाता है।”

मेयर्स के शब्दों में- “तरलता पसन्दगी धन की एक-समान मात्रा को दूसरों को ऋण के रूप में देने की अपेक्षा नकदी के रूप में रखने का अभिमान है।”

तरलता पसन्दगी के उद्देश्य

(Motives of Liquidity Preference)-

मुद्रा की माँग (तरलता पसन्दगी) के मुख्य उद्देश्य निम्न प्रकार हैं-

(1) लेन-देन का उद्देश्य (Transaction Motive)- इसे ‘कार्य सम्पादन’ अथवा ‘सौदा उद्देश्य’ भी कहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति, व्यापारी अथवा उत्पादक अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु कुछ न कुछ मुद्रा नकद रूप में अपने पास अवश्य रखता है। इसका कारण यह है कि आय की प्राप्ति एवं व्यय की अवधि में काफी अन्तर पाया जाता है। इस उद्देश्य के लिए नकद रूप में रखी जाने वाली मुद्रा की मात्रा आय का आकार, रोजगार स्तर, आय की प्राप्ति व व्यय की अवधि में अन्तर आदि पर निर्भर करती है। यह माँग आय सापेक्ष होती है अर्थात् आय के ऊँचे स्तर पर यह माँग अधिक होती है और नीचे स्तर पर कम।

(2) दूरदर्शिता का उद्देश्य (Precautionary Motive)- भविष्य अनिश्चित होता है। भविष्य में उत्पन्न होने वाली समस्याओं- दुर्घटना, बीमारी, विवाह, शिक्षा, बेकारी आदि का सामना करने के लिए वह अपनी आय का कुछ भाग अवश्य बचाकर रखता है। सावधानी उद्देश्य के लिए नकदी की माँग भी आय सापेक्ष होती है अर्थात् अधिक आय स्तर पर नकदी की मांग अधिक तथा कम आय स्तर पर नकदी की माँग की जाती है।

(3) सट्टा का उद्देश्य (Speculative Motive)- सट्टे का अर्थ है- ‘ब्याज की दर में अनिश्चितता के कारण लाभ उठाना’। कुछ लोग अपनी आय का एक निश्चित भाग नकद रूप में इसलिए रखना पसन्द करते हैं ताकि वे ब्याज की दरों में परिवर्तनों का लाभ उठा सकें। यदि उन्हें यह आशा है कि भविष्य में ब्याज की दर ऊँची होगी तो वे वर्तमान में अपने पास अधिक धन नकद रूप में रखेंगे ताकि भविष्य में ऊँची ब्याज दर पर धन उधार देकर अधिक लाभ उठा सकें। इसके विपरीत यदि भविष्य में ब्याज की दर नीची होने की सम्भावना है तो वे वर्तमान में कम राशि अपने पास नकद में रखेंगे।

सट्टा उद्देश्य के लिए नकदी की माँग ब्याज सापेक्ष होती है अर्थात् यदि ब्याज दर कम है तो नकदी की माँग अधिक होगी और यदि ब्याज दर अधिक है तो नकदी की माँग कम होगी।

मुद्रा की पूर्ति (Supply of Money)- समाज में कुल मुद्रा की पूर्ति = करेन्सी नोट , सिक्के + बैंक साख । समाज में कुल मुद्रा-पूर्ति का निर्धारण तथा नियंत्रण मुद्रा अधिकारी अथवा केन्द्रीय बैंक द्वारा किया जाता है। अतः उसे स्थिर मान लिया गया है।

समीकरण- इस सिद्धान्त को निम्न समीकरणों के रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-

(i) मुद्रा की कुल माँग (L) = L1 + L2 तथा

(ii) मुद्रा की कुल पूर्ति (M) = M1 + M2

इनमें L1 कार्य सम्पादनं व सतर्कता उद्देश्य के लिए उत्पन्न होने वाली मुद्रा की माँग तथा L2 सट्टा उद्देश्य के लिए माँग है। L1 आय का तथा L2 ब्याज-दर का फलन है। M1 मुद्रा की पूर्ति का वह भाग है जो L1 के लिए तथा M2 मुद्रा की पूर्ति का वह भाग है जो L2 के लिए माँगा जाता है। सूत्र रूप में,

समीकरण (iii) व (iv) को संयुक्त कर देने पर (vi) M= L (rY)

अत: ब्याज-दर उस बिन्दु पर निर्धारित होगी जहाँ, M = L (rY)

ब्याज निर्धारण

(Interest Determination)-

प्रो० कीन्स के अनुसार ब्याज नकदी की माँग व पूर्ति के द्वारा निर्धारित होता है। साम्य की स्थिति में ब्याज की दर वह होगी जिसमें लोगों के द्वारा नकदी की माँग समाज में उसकी पूर्ति के बराबर होगी। समाज में मुद्रा की पूर्ति सरकार द्वारा निश्चित की जाती है। अत: वह प्रायः स्थिर रहती है, परन्तु नकदी की माँग बदलती रहती है। यही कारण है कि ब्याज-दर पर मुद्रा की पूर्ति की अपेक्षा मुद्रा की माँग की प्रमुख प्रभाव पड़ता है।

चित्र द्वारा निरूपण – चित्र में L (Y1) वक्र नकदी की कुल माँग तथा SS वक्र नकदी की कुल पूर्ति को दिखलाते हैं। E1 सन्तुलन बिन्दु है तो OR1 ब्याज की सन्तुलन दर है। अब यदि नकदी की माँग बढ़ जाती है तो माँग वक्र L (Y2) हो जाता है और ब्याज-दर बढ़कर OR2 हो जायेगी। मुद्रा पूर्ति की S1 तथा S1 दशाओं के मध्य बढ़ी हुई मुद्रा पूर्ति तरलता के अनन्त होने के कारण ब्याज दर को शून्य नहीं होने देते। कीन्स ने इस दशा को तरलता जाल (Liquidity Trap) की संज्ञा दी है।

आलोचना (Criticism)तरलता क्या है

(1) यह सिद्धान्त पूँजी की उत्पादकता पर अधिक ध्यान नहीं देता।

(2) यह सिद्धान्त असन्तुलित है, क्योंकि यह ब्याज निर्धारण के मौद्रिक पक्ष पर ध्यान देता है।

(3) यह एकपक्षीय, अधूरा और अपर्याप्त है, क्योंकि यह सिद्धान्त ब्याज-दर के निर्धारण में केवल तरलता पसन्दगी को ही प्रमुखता देता है।

(4) यह सिद्धान्त अल्पकालीन है और ब्याज को प्रभावित करने वाली दीर्घकालीन शक्तियों पर कोई प्रकाश नहीं डालता है।

(5) इस सिद्धान्त के अनुसार ब्याज की दर अनिर्धारणीय है।

(6) प्रो० हैन्सन के अनुसार यह सिद्धान्त प्रतिष्ठित सिद्धान्त की भाँति अनिश्चित है।

(7) प्रो० नाइट (Knight) के अनुसार कीन्स का सिद्धान्त अपेक्षित तत्त्वों के एकदम असंगत है। उदाहरण के लिए, कीन्स के अनुसार मन्दी के निम्न तल पर ब्याज की दर अधिकतम होनी चाहिए परन्तु मन्दी काल में अल्पकालीन ब्याज-दरें निम्नतम होती हैं।

(8) कीन्स का ‘तरलता जाल’ का विचार सैद्धान्तिक है और दीर्घकाल में यह महत्त्वहीन हो जाता है।

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तरलता जोखिम

तरलता जोखिम में परिसंपत्ति तरलता जोखिम और परिचालन निधि तरलता जोखिम शामिल है। अचानक और महत्वपूर्ण अतिरिक्त नकदी प्रवाह की आवश्यकता के मामले में एसेट लिक्विडिटी जोखिम अपनी संपत्ति को नकदी में परिवर्तित करने में एक उद्यम की सुविधा को संदर्भित करता है। परिचालन निधि तरलता जोखिम दैनिक नकदी प्रवाह को संदर्भित करता है।

तरलता जोखिम

दूसरे शब्दों में, तरलता जोखिम वह जोखिम है जो एक उद्यम अपनी अल्पकालिक वित्तीय मांगों को पूरा नहीं कर सकता है। यह जोखिम अक्सर तब होता है जब पूंजी या राजस्व की हानि के बिना सुरक्षा या अचल संपत्ति का परिसमापन नहीं किया जा सकता है।

तरलता जोखिम मुख्य रूप से तब होता है जब नकदी की तत्काल आवश्यकता में एक व्यवसाय के पास एक मूल्यवान संपत्ति होती है जिसे खरीदार खोजने में असमर्थता या अक्षम बाजार स्थितियों के कारण नहीं खरीदा जा सकता है जहां खरीदार को ढूंढना मुश्किल होता है। उदाहरण के लिए, एक मूल्यवान संपत्ति में उस समय बाजार की स्थितियों के कारण कोई दिलचस्पी खरीदार नहीं हो सकता है। जबकि अन्य बार संपत्ति को बेहतर कीमत पर बेचा जा सकता है, व्यवसाय के पास उस क्षण इंतजार करने और बेचने के अलावा कोई विकल्प नहीं हो सकता है। यह एसेट रखने का लिक्विडिटी रिस्क है।

तरलता जोखिम से बचने के लिए, लंबी अवधि के संपत्ति वाले व्यवसायों को अपनी अल्पकालिक नकदी जरूरतों को देखते हुए परिसंपत्तियों की सामर्थ्य पर विचार करना होगा। ऐसे एसेट्स जिन्हें किसी अवैध मार्केट में बेचना मुश्किल है, लिक्विडिटी रिस्क लेते हैं। क्योंकि जरूरत पड़ने पर इसे आसानी से नकदी में बदलना संभव नहीं है। तरलता जोखिम कुछ परिसंपत्तियों या व्यवसायों के मूल्य को कम कर देता है क्योंकि पूंजी हानि की संभावना बढ़ जाती है।

संक्षेप में, तरलता इस बारे में है कि बाजार में कितनी आसानी से संपत्ति बेची जा सकती है और नकदी में परिवर्तित हो सकती है। फंडिंग या कैश फ्लो लिक्विडिटी रिस्क उन लोगों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है, जो इस बात की जांच कर रहे हैं कि क्या बिजनेस अपने दायित्वों को पूरा कर सकता है। तरलता का सबसे सरल उपाय प्रस्ताव / मांग का प्रसार है।

हमारे संगठन द्वारा रणनीतिक जोखिम प्रबंधन सेवाओं के दायरे में व्यवसायों को तरलता जोखिम सेवाएं भी प्रदान की जाती हैं।

Liquidity Risk- लिक्विडिटी रिस्क

क्या होता है लिक्विडिटी रिस्क?
तरलता (Liquidity) किसी फर्म, कंपनी या किसी व्यक्ति विशेष का बिना विनाशकारी नुकसान उठाये अपने ऋणों को भुगतान करने की क्षमता है। इसके विपरीत, लिक्विडिटी रिस्क (Liquidity तरलता क्या है Risk) किसी निवेश की मार्केटिबिलिटी की कमी से उत्पन्न होता है जिसकी खरीद या बिक्री बिना नुकसान को रोके या उसे कम किये हुए नहीं की जा सकती है। आम तौर पर यह असामान्य रूप से व्यापक बिड-आस्क स्प्रेड्स या लार्ज प्राइस मूवमेंट में प्रदर्शित होता है। निवेशक, मैनेजर या क्रेडिटर लिक्विडिटी माप अनुपात का तरलता क्या है उपयोग तब करते हैं जब उन्हें किसी संगठन के भीतर जोखिम के स्तर के बारे में निर्णय करना होता है। अगर कोई इंडीविजुअल निवेशक, कंपनी या वित्तीय संस्थान अपनी अल्प अवधि ऋण देनदारियों को पूरा नहीं कर सकता तो इसका अर्थ है वह लिक्विडिटी रिस्क से गुजर रहा है।

लिक्विडिटी रिस्क को समझना
यह एक सामान्य सी तरलता क्या है बात है कि सिक्योरिटी या इसके इश्युअर का आकार जितना छोटा होगा, लिक्विडिटी रिस्क उतना ही अधिक होगा। 9/11 के हमलों के बाद या 2007 से 2008 के ग्लोबल क्रेडिट संकट के दौरान स्टाॅक्स एवं अन्य सिक्योरिटीज की वैल्यू में गिरावट ने कई निवेशकों को किसी भी कीमत पर अपनी होल्डिंग्स बेचने को प्रेरित किया। एक्जिट करने की इस होड़ के कारण बिड-आस्क स्प्रेड्स और कीमतों में बड़ी गिरावट हुई जिसने मार्केट लिक्विडिटी में और योगदान दिया। खरीदारों की कमी या किसी अक्षम बाजार के कारण निवेशक या एंटिटी बिना पूंजी और आय को छोड़े किसी एसेट को कैश में परिवर्तित करने में अक्षम हो सकते हैं।

वित्तीय संस्थानों में लिक्विडिटी तरलता क्या है रिस्क
वित्तीय संस्थान उल्लेखनीय मात्रा तक उधार लिए गए धन पर निर्भर करते हैं। इसलिए आम तौर पर यह निर्धारित करने के लिए उनकी जांच की जाती है कि क्या वे बड़ा नुकसान, जो विनाशकारी साबित हो सकता है, उठाए बिना अपनी ऋण देनदारियों को पूरा कर सकते हैं। इसलिए, संस्थानों को अपनी वित्तीय स्थिरता की माप करने के लिए सख्त अनुपालन आवश्यकताओं और स्ट्रेस परीक्षणों का सामना करना पड़ता है। 2008 के आर्थिक संकट के दौरान कई बड़े बैंकों को लिक्विडिटी समस्याओं के तरलता क्या है कारण दिवालियापन मुद्दों का सामना करना पड़ा या वे इसमें विफल रहे।

म्यूचुअल फंड किस तरह से जोखिम प्रबंधन में सहायता करते हैं?

म्यूचुअल फंड किस तरह से जोखिम प्रबंधन में सहायता करते हैं?

जोखिम कई रूपों में दिखते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आपके पास किसी कंपनी के शेयर हैं तो मूल्य जोखिम या बाज़ार जोखिम या कंपनी विशिष्ट जोखिम होते हैं। उपरोक्त कारणों में से किसी एक या उनके मिश्रण से केवल उसी कंपनी के शेयर मूल्य गिर सकते हैं या बरबाद हो सकते हैं।

हालांकि किसी म्यूचुअल फंड में एक आम पोर्टफोलियो में अनेक प्रतिभूतियां होती हैं, जिससे “डाइवर्सिफिकेशन” मिलता है। वास्तव में डाइवर्सिफिकेशन म्यूचुअल फंड में निवेश का सबसे बड़ा लाभ है। यह इस बात को सुनिश्चित करता है कि किसी एक या कुछ प्रतिभूतियों के मूल्य में किसी प्रकार की गिरावट प्रोर्टफोलियो के प्रदर्शन में बहुत खतरनाक प्रभाव न डालें।

तरलता जोखिम, ध्यान में रखने योग्य एक और महत्वपूर्ण जोखिम है। तरलता क्या है? यह किसी एसेट को नगद में बदलने की स्थिति है। मान लीजिए, किसी निवेशक के पास 10 वर्षों के लिए लॉक किया हुए एक निवेश है, और उसे तीसरे वर्ष में पैसों की जरूरत है। इससे एक तरलता वाली समस्या पैदा होती है। इस समय उसकी प्राथमिकता नगद है ना कि लाभ। अपने विनियमों और संरचना के आधार पर म्यूचुअल फंड बेहतर तरलता पेश करते हैं। पोर्टफोलियो को, निवेशक को निवेश और रिडंप्शन की सहजता प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया जाता है।

Liquidity Meaning in Hindi

Liquidity meaning in Hindi लिक्विडिटी क्या है अर्थव्यावस्था और बाजार के संदर्भ में लिक्विडिटी का क्या मतलब होता है? बाजार में लिक्विडिटी की जानकारी। किन परिसंपत्तियों की लिक्विडिटी अधिक होती है और किन में कम। साथ ही समझेंगे शेयर मार्केट कैसे शेयरों तथा अन्य प्रतिभूतियों के लिये तरलता प्रदान करते है। साथ ही समझेंगे लिक्विडिटी का उस परिसंपत्ती की बाजार की कीमतों पर क्या असर होता है। अलग अलग परिसंपत्ती में कैसे अलग होता है लिक्विडिटी का स्तर और कैसे यह किसी के निवेश करने के निर्णय को प्रभावित कर सकता है। RBI कैसे Liquidity को नियंत्रित करता है। शेयरों में लिक्विडिटी प्रदान करने के लिये शेयर बाजार का महत्व होता है।

लिक्विडिटी क्या है Liquidity Meaning in Hindi.

लिक्विडिटी क्या है Liquidity in Hindi.

Liquidity meaning in Hindi and its importance in share market and other markets.

Liquidity Meaning in Hindi

इसे साधारण हिंदी में चल निधी कहते है मगर यहां सुविधा के लिये हम लिक्विडिटी शब्द का ही प्रयोग करेंगे। Liquidity तरलता क्या है का शाब्दिक अर्थ है तरलता। तो आसानी से समझने के लिये हम कह सकते हैं कि यदि बाजार में किसी चीज को जब हम खरीदने जाते हैं और उसकी उपलब्धता निरंतर बनी रहती है तो उस वस्तू में पर्याप्त तरलता है यह हम मान सकते हैं।

Liquidity Meaning in Hindi नकदी

Liquidity in Hindi तरलता उस स्तर का वर्णन करती है जिस पर परिसंपत्ति की कीमत को प्रभावित किए बिना बाजार में संपत्ति या शेयर को तुरंत खरीदा या बेचा जा सकता है। बाजार की Liquidity उस स्तर को इंगित करती है जिस पर बाजार जैसे कि शेयर बाजार या शहर के प्रॉपर्टी बाजार में संपत्तियों को स्थिर कीमतों पर खरीदा या बेचा जा सकता है। नकदी को सबसे अधिक लिक्विड माना जाता है जबकि प्रॉपर्टी, बढ़िया कला और अन्य सभी संग्रहणीय वस्तुएं अपेक्षाकृत कम लिक्विड होतीं हैं।

Liquidity के मानक

नकदी को तरलता के लिए मानक माना जाता है क्योंकि यह अन्य संपत्तियों में सबसे तेज़ी से और आसानी से परिवर्तित की जा सकती है। यदि कोई व्यक्ति ₹25000 का टीवी खरीदना चाहता है तो नकदी वह संपत्ति है जिसके बदले में इसे आसानी से खरीदा जा सकता है। अब यदि उसके पास ₹25000 के गहने हैं तो उसे इन गहनों को दे कर टीवी खरीदने में थोड़ी कठिनाई हो सकती है। उसे पहले गहने बेच कर नकदी जुटानी होगी जिसमें थोड़ा समय लग सकता है। फिर उस नकदी से वह टीवी खरीद सकता है। तो हम कह सकते हैं कि नकदी की लिक्विडिटी गहनों से अधिक है।

बाजार में Liquidity

ऊपर के उदाहरण में आपने देखा कि गहनों के बदले टीवी खरीदना लगभग असंभव है क्योंकि इस तरह का कोई बाजार नहीं है जहां गहने और टीवी की अदला बदली होती हो। शेयर बाजार में शेयरों की इतनी तरलता उपलब्ध रहती है कि लगभग तुरंत ही किसी भी शेयर के लिये खरीददार और बेचने वाला मिल जाते तरलता क्या है हैं और तेज गति से सौदों का निपटान हो जाता है। रियल एस्टेट बाजार में शेयर बाजार के मुकाबले बहुत कम लिक्विडिटी होती है।

निवेश में कारक

ऐसा कई बार होता है कि बाजार में खरीददार ना मिलने के कारण प्रॉपर्टी को उसकी बाजार कीमतों से कम कीमतों पर बेचना पड़ सकता है। जब भी आप किसी परिसंपत्ती में निवेश करें तो इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि उस परिसंपत्ती में कितनी तरलता है और उसे बेचने में कोई कठिनायी तो नहीं आयेगी।

RBI कैसे Liquidity को नियंत्रित करता है

RBI बैंकों में फंड़स की Liquidity को नियंत्रित करता है। यहां लिक्विडिटी का मतलब है फ्लो ऑफ फंड यानी पैसों की उपलब्धता. बैंक और फाइनेंशियल संस्थान बिजनेस लोन और उपभोक्ता लोन द्वारा आम लोगों को फंड मुहैया कराते हैं. यह लोन आमतौर पर वस्तुओं की मांग बढाने वाले होते हैं. यह बढ़ी मांग मुद्रास्फीति के बढ़ने का कारण बनती है. इसी लिए RBI समय समय पर ब्याज दरों और CRR में बदलाव कर इस लिक्विडिटी पर नियंत्रण रखता है.

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