शुरुआती के लिए रणनीतियाँ

परिचय और नियम व्यापार

परिचय और नियम व्यापार
  • कुछ संशोधन संविधान (छठे संशोधन) अधिनियम, 1956 के माध्यम से जिससे संविधान में किए गए थे -
  • क) व्यापार या वाणिज्य संसद के विधायी अधिकार क्षेत्र के दायरे में स्पष्ट रूप से लाया गया अंतर-राज्य के पाठ्यक्रम में माल की बिक्री या खरीद पर करों;

हमारा अनितिवाला व्यव्हार होते हुए भी हम किस तरह से निति से व्यवसाय कर सकते है? अप्रामाणिक परिचय और नियम व्यापार होते हुए भी हम किस प्रकार प्रामाणिक बन सकते है?

व्यवसाय में अणहक्क का कुछ भी नहीं घुसना चाहिए और जिस दिन बिना हक़ का लोगे, उस दिन से व्यवसाय में बरकत नहीं रहेगी। भगवान हाथ डालते ही नहीं। व्यवसाय में तो आपकी कुशलता और आपकी नीतिमत्ता, ये दो ही काम आएँगे। अनीति से साल-दो साल ठीक मिलेगा पर फिर नुकसान होगा। गलत हो जाए, तब यदि पछतावा करोगे तो भी छूट जाओगे। व्यवहार का सार यदि कुछ है, तो वह नीति ही है। पैसे कम होंगे लेकिन नीति होगी तो भी आपको शांति रहेगी और यदि नीति नहीं होगी तो, पैसे ज़्यादा होने पर भी अशांति रहेगी। नैतिकता के बिना धर्म ही नहीं। धर्म की नींव ही नैतिकता है।

इसमें ऐसा कहते हैं कि संपूर्ण नीति का पालन कर सके तो करना और पालन नहीं हो सके तो निश्चय करना कि दिन में तीन बार तो मुझे नीति का पालन करना ही है, वर्ना फिर नियम में रहकर अनीति करेगा तो वह भी नीति है। जो व्यक्ति नियम में रहकर अनीति करता है उसे मैं नीति कहता हूँ। भगवान के प्रतिनिधि के तौर पर, वीतरागों के प्रतिनिधि के तौर पर मैं कहता हूँ कि अनीति भी नियम में रहकर कर, वह नियम ही तुझे मोक्ष में ले जाएगा। अनीति करे कि नीति करे, उसका मेरे लिए महत्व नहीं है, लेकिन नियम में रहकर कर। पूरी दुनिया ने जहाँ पर बहुत सख्ती से मना किया है, वहाँ हमने कहा है कि इसमें हर्ज नहीं है, तू नियम में रहकर कर।

हमने तो ऐसा कहा है कि अनीति कर लेकिन नियम से करना। एक नियम बना कि मुझे इतनी ही अनीति करनी है, इससे ज़्यादा नहीं। दुकान पर रोज़ दस रुपये अधिक लेने हैं, उससे अधिक पाँच सौ रुपये आएँ, फिर भी मुझे नहीं लेने हैं।

यह हमारा गूढ़ वाक्य है। यह वाक्य यदि समझ में आ जाए तो काम हो जाए। भगवान भी खुश हो जाएँगे कि पराए चरागाह में खाना है, फिर भी हिसाब से खाता है! वर्ना यदि पराई चरागाह में खाना हो, तो वहाँ तो फिर सीमा होती ही नहीं न?!

आपकी समझ में आता है न? कि ‘अनीति का भी नियम रख’। मैं क्या कहता हूँ कि, ‘तुझे रिश्वत नहीं लेनी और तुझे पाँच सौ की कमी है, तो तू कब तक क्लेश करेगा?’ लोगों से-मित्रों से रुपये उधार लेता है, उससे और ज़्यादा जोखिम उठाता है। अत: मैं उसे समझाता हूँ कि ‘भाई तू अनीति कर, लेकिन नियम से कर।’ अब नियम से अनीति करनेवाला नीतिमान से भी श्रेष्ठ है। क्योंकि नीतिमान के मन में ऐसा परिचय और नियम व्यापार रोग घुस जाता है कि ‘मैं कुछ हूँ’। जब कि इसके मन में ऐसा कोई रोग नहीं घुसता?

ऐसा कोई सिखाएगा ही नहीं न? नियम से अनीति करना बहुत बड़ा कार्य है।

अनीति भी यदि नियम से हैं तो उसका मोक्ष होगा, लेकिन जो अनीति नहीं करता, जो रिश्वत नहीं लेता उसका मोक्ष कैसे होगा? क्योंकि जो रिश्वत नहीं लेता उसे, ‘मैं रिश्वत नहीं लेता’ यह कैफ़ चढ़ जाता है। भगवान भी उसे निकाल बाहर करेंगे कि, ‘चल जा, तेरा चेहरा खराब दिखता है।’ इसका यह अर्थ नहीं है कि हम रिश्वत लेने को कह रहे हैं, लेकिन यदि तुझे अनीति ही करनी हो तो तू नियम से करना। नियम बना कि भाई मैं रिश्वत में पाँच सौ रुपये ही लूँगा। पाँच सौ से ज़्यादा कोई कुछ भी दे, अरे पाँच हज़ार रुपये दे, तो वे भी वापस कर दूँगा। घर खर्च में जितने कम पड़ते हों उतने ही, पाँच सौ रुपये ही रिश्वत के लेना। बाकी, ऐसा जोखिम तो हम ही लेते हैं। क्योंकि ऐसे काल में लोग रिश्वत नहीं लें तो क्या करें बेचारे? तेल-घी के दाम कितने बढ़ गए हैं। शक्कर के दाम कितने ज़्यादा हैं? तब क्या बच्चों की फ़ीस के पैसे दिए बिना चलेगा? देखो न! तेल का भाव सत्रह रुपये बताते हैं न!

प्रश्नकर्ता: हाँ।

दादाश्री: जो व्यापारी काला बाज़ार करते हैं, उनका गुज़ारा होता है जब कि नौकरों का रक्षण करनेवाला कोई रहा ही नहीं?! इसीलिए हम कहते हैं कि रिश्वत भी नियम से लेना, तो वह नियम तुझे मोक्ष में ले जाएगा। रिश्वत बाधक नहीं है, अनियम बाधक है।

प्रश्नकर्ता: अनीति करना तो गलत ही कहलाएगा न?

दादाश्री: वैसे तो उसे गलत ही कहते हैं न! लेकिन भगवान के घर तो अलग ही तरह की परिभाषा है। भगवान के यहाँ तो नीति या अनीति, इसका झगड़ा ही नहीं है। वहाँ पर तो अहंकार की ही तकलीफ़ है। नीति पालनेवालों में अहंकार बहुत होता है। उसे तो बगैर मदिरा के कैफ़ चढ़ा हुआ होता है।

प्रश्नकर्ता: अब रिश्वत में पाँच सौ लेने की छूट दी तो फिर जैसे-जैसे ज़रूरत बढ़ती जाए तो फिर वह रकम भी अधिक ले तो?

दादाश्री: नहीं, वह तो एक ही नियम, पाँच सौ यानी पाँच सौ ही, फिर उस नियम में ही रहना होगा।

इस समय में कोई इन सब मुश्किलों में कैसे दिन गुज़ारे? और फिर उसकी रुपयों की कमी पूरी नहीं होगी तो क्या होगा? उलझन पैदा होगी कि रुपये कम पड़ रहे हैं, वे कहाँ से लाएँ? यह तो उसे जितनी कमी थी उतने आ गए। उसकी भी पज़ल फिर सोल्व हो गई न? वर्ना इसमें से इन्सान उल्टा रास्ता चुनकर उस पर चलने लगेगा और फिर पूरी रिश्वत लेने लेगागा। उसके बजाय यह बीच का रास्ता निकाला है। वह अनीति करे फिर भी नीति कहलाए और उसे भी सरलता हो गई कि यह नीति कहलाती है और उसका घर भी चले।

मूलत: वास्तव में मैं क्या कहना चाहता हूँ, वह यदि समझ में आ जाए तो कल्याण हो जाए। प्रत्येक वाक्य में मैं क्या कहना चाहता हूँ, वह पूरी बात यदि समझी जाए तो कल्याण हो जाए। लेकिन यदि वह वह बात को खुद की भाषा में ले जाए तो क्या होगा? प्रत्येक की अपनी स्वतंत्र भाषा होती ही है, वह ले जाकर खुद की भाषा में फिट कर देता है, लेकिन यह उसकी समझ में नहीं आएगा कि ‘नियम से अनीति कर।’

श्रेष्ठ प्रकार का व्यापार वह है की जिसमें मन, वचन, काया से किसी भी प्रकार की जीव हिंसा न हो। आगे जानने के लिए यहाँ पढ़िए।

Book Name: पैसो का व्यव्हार (Page #57 - Paragraph #4, Entire Page #58 & #59, Page #60 - Paragraph #1 to #3)

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परिचय (केन्द्रीय बिक्री कर)

  • कुछ संशोधन संविधान (छठे संशोधन) परिचय और नियम व्यापार अधिनियम, 1956 के माध्यम से जिससे संविधान में किए गए थे -
  • क) व्यापार या वाणिज्य संसद के विधायी अधिकार क्षेत्र के दायरे में स्पष्ट रूप से लाया गया अंतर-राज्य के पाठ्यक्रम में माल की बिक्री या खरीद पर करों;

ख) प्रतिबंध माल अंतर-राज्य में विशेष महत्व का व्यापार या वाणिज्य कर रहे हैं, जहां राज्य के भीतर माल की बिक्री या खरीद पर करों की वसूली के संबंध में राज्य विधायिकाओं की शक्तियों पर लगाया जा सकता है।

यह संशोधन भी एक बिक्री या खरीद के अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान या निर्यात या आयात के पाठ्यक्रम में या राज्य के बाहर जगह लेता है जब निर्धारित करने के लिए सिद्धांतों तैयार करने के लिए संसद के लिए अधिकृत किया।

तदनुसार केन्द्रीय बिक्री कर (सीएसटी) अधिनियम, 1956 1957/01/05 को अस्तित्व में आया जो अधिनियमित किया गया था। मूल रूप से, सीएसटी की दर 3% और प्रभावी करने के लिए तो, 2% के लिए पहली बार वृद्धि की गई थी, जो 1% थी, 1 जुलाई 1975 से 4%। कुछ माल की घोषणा अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य में विशेष महत्व का हो सकता है और इस तरह के आइटम के कराधान पर प्रतिबंध नीचे रखना करने के लिए सीएसटी अधिनियम, 1956 के अधिनियम प्रदान करता है। सीएसटी की लेवी के तहत एकत्रित पूरे राजस्व एकत्र की है और बिक्री निकलती है, जिसमें राज्य द्वारा रखा जाता है। अधिनियम के आयात और निर्यात के कराधान शामिल नहीं है।

सीएसटी एक मूल आधार कर किया जा रहा है, निहित इनपुट टैक्स क्रेडिट वापसी के साथ एक गंतव्य आधारित कर है जो वैल्यू एडेड टैक्स के साथ असंगत है। केन्द्रीय बिक्री कर अधिनियम में संशोधन 3% से प्रभावी करने के लिए 4% से पंजीकृत डीलरों के बीच अंतर राज्यीय बिक्री के लिए केन्द्रीय बिक्री कर की दर में कमी लाने के लिए प्रदान करने के लिए 1 अप्रैल 2007 में की गई थी। इस संशोधन के माध्यम से, फार्म-डी के खिलाफ रियायती सीएसटी दर पर सरकारी विभागों द्वारा अंतर-राज्य खरीद की सुविधा वापस ले लिया गया। इस संशोधन के बाद सरकार के लिए अंतर-राज्य बिक्री पर सीएसटी की दर वैट / बिक्री कर की दर के रूप में ही किया जाएगा।

केंद्रीय बिक्री कर की दर आगे 1 जून से प्रभावी 2% से 3% से कम हो गया है, पहले 4% से 3% तक सीएसटी की दर से 2008 न्यूनीकरण एवं तो 3% से 2% से शुरूआत करने के लिए एक अग्रदूत के रूप में किया गया है माल एवं सेवा कर (जीएसटी) की, सीएसटी के रूप में जीएसटी की अवधारणा और डिजाइन के साथ असंगत परिचय और नियम व्यापार होगा।

डेली अपडेट्स

सीमा शुल्क (व्यापार समझौतों के तहत मूल नियमों का प्रशासन) नियम, 2020 | 20 Aug 2022 | शासन व्यवस्था

प्रिलिम्स के लिये:

मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए), मूल के नियम, सीबीआईसी।

मेन्स के लिये:

CAROTAR, 2020 के प्रावधान।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) ने एक परिपत्र जारी किया जिसमें कहा गया है कि सीमा शुल्क अधिकारियों को सीमा शुल्क (व्यापार समझौतों के तहत मूल नियमों का प्रशासन) नियम (CAROTAR), 2020 को लागू करने में संवेदनशील होना चाहिये और प्रासंगिक व्यापार समझौतों या मूल नियमों के प्रशासन के प्रावधानों के साथ सामंजस्य बनाए रखना चाहिये।

  • राजस्व विभाग और आयातक के बीच संघर्ष के मामले में मूल/ओरिजिन देश के संबंध में एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) में निर्दिष्ट छूट लागू होगी।

CAROTAR नियम:

  • परिचय:
    • CAROTAR, 2020 ने मुक्त व्यापार समझौतों के तहत आयात पर प्राथमिकता दर की अनुमति के लिये 'मूल/ओरिजिन के नियमों' को लागू करने के लिये दिशा-निर्देश निर्धारित किये हैं।
    • वे विभिन्न व्यापार समझौतों के तहत निर्धारित मौजूदा परिचालन प्रमाणन प्रक्रियाओं के पूरक हैं।
    • इसे वित्त मंत्रालय द्वारा अगस्त, 2020 में अधिसूचित किया गया था।
    • एक आयातक को यह सुनिश्चित परिचय और नियम व्यापार करने के लिये कि वे निर्धारित मूल मानदंडों को पूरा करते हैं इसकी उचित जाँच करना माल आयात करने से पहल आवश्यक है।
    • एक आयातक को बिल ऑफ एंट्री में मूल से संबंधित कुछ जानकारी दर्ज करनी होगी, जैसा कि मूल प्रमाण पत्र में उपलब्ध है।
    • आयातकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि आयातित माल मुक्त व्यापार संधियाँ (FTA) के तहत सीमा शुल्क की रियायती दर का लाभ उठाने के लिये निर्धारित 'मूल के नियम' प्रावधानों को पूरा करता है।
      • आयातकों को यह साबित करना होगा कि आयातित उत्पादों का मूल देशों में कम से कम 35% मूल्यवर्धन हुआ है।
      • इससे पहले, निर्यात के देश में एक अधिसूचित एजेंसी द्वारा जारी किया गया मूल देश का प्रमाण पत्र ही FTA का लाभ उठाने के लिये पर्याप्त था।
      • इसका कई मामलों में फायदा उठाया गया था, यानी FTA भागीदार देश ज़रूरी मूल्यवर्धन के लिये आवश्यक तकनीकी क्षमता के बिना प्रश्नगत माल का उत्पादन करने का दावा करते रहे हैं।
      • वे आयातक को मूल देश का सही ढंग से पता लगाने, रियायती शुल्क का उचित दावा करने और FTAs के तहत वैध आयात की सुचारू निकासी में सीमा शुल्क अधिकारियों की सहायता करने के लिये मज़बूर करेंगे।
      • उन्हें आयातक से मूल देश का सही ढंग से निर्धारण करने, रियायती शुल्क का सही दावा करने और FTAs के तहत वैध आयातों की सुचारू निकासी में सीमा शुल्क अधिकारियों की सहायता करने की आवश्यकता होगी।
      • घरेलू उद्योग को FTAs के दुरुपयोग से बचाया जाएगा।
      • इन नियमों के तहत जिस देश ने भारत के साथ FTA किया है, वह किसी तीसरे देश के सामान को सिर्फ लेबल लगाकर भारतीय बाज़ार में डंप नहीं कर सकता है।

      मुक्त व्यापार समझौता:

      • परिचय:
        • यह दो या दो से अधिक देशों के बीच आयात और निर्यात में बाधाओं को कम करने हेतु किया गया एक समझौता है। इसके तहत दो देशों के बीच आयात-निर्यात के तहत उत्पादों पर सीमा शुल्क, नियामक कानून, सब्सिडी और कोटा आदि को सरल बनाया जाता है जिसके तहत दोनों देशों के मध्य उत्पादन लागत बाकी देशों के मुकाबले सस्ता हो जाता है।
        • इसमें वस्तुओं का व्यापार (जैसे कृषि या औद्योगिक उत्पाद) या सेवाओं में व्यापार (जैसे बैंकिंग, निर्माण, व्यापार आदि) शामिल हैं।
          • इसमें बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर), निवेश, सरकारी खरीद और प्रतिस्पर्द्धा नीति आदि जैसे अन्य क्षेत्र भी शामिल हैं।
          • टैरिफ और कुछ गैर-टैरिफ बाधाओं को समाप्त करके एफटीए भागीदारों को एक दूसरे देशों में बाज़ार तक आसान पहुँच प्राप्त होती है।
          • निर्यातक बहुपक्षीय व्यापार उदारीकरण के बजाय एफटीए को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि उन्हें गैर-एफटीए सदस्य देश के प्रतिस्पर्धियों पर तरजीही उपचार मिलता है।

          प्रश्न. 'क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी' शब्द अक्सर किन देशों के समूह के संदर्भ में समाचारों में आता है? (2016)

          भारत में व्यापार शुरू करना

          एक बिलियन से भी अधिक जनसंख्या वाला भारतीय बाजार उचित उत्पादों, सेवाओं और प्रतिबद्धताओं वाले अमेरिकी निर्यातकों के लिए आकर्षक और विविध अवसर मुहैया कराता है। भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण और विस्तार होने से मध्यावधि में भारत की ऊर्जा, पर्यावरण, स्वास्थ्य देखरेख, उच्च-प्रौद्योगिकी, बुनियादी ढांचे, परिवहन और रक्षा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में उपकरणों और सेवाओं की आवश्यकताएं दसियों बिलियन डॉलर से भी अधिक होगी। उपलब्ध नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान भारत का सकल घरेलू उत्पाद विकास दर 7.6 प्रतिशत थी। सरकार द्वारा नीतियों का उदारीकरण जारी रखने की संभावना के साथ, भारत के पास आगामी कुछ वर्षों तक सतत उच्च विकास दर कायम रखने की क्षमता है और अमेरिकी कंपनियों को विकसित होते भारतीय बाजार में प्रवेश के अवसर को अवश्य प्राप्त करना चाहिए।

          अमेरिका-भारत व्यापार

          कैलेंडर वर्ष 2015 में भारत के लिए अमेरिकी निर्यातः 39.7 बिलियन डॉलर
          कैलेंडर वर्ष 2015 में भारत से आयातः 69.6 बिलियन डॉलर
          कैलेंडर वर्ष 2015 में कुल द्विपक्षीय व्यापार (माल और सेवाएं) 109.3 बिलियन डॉलर
          कुल व्यापारः कैलेंडर वर्ष 2015 में कुल द्विपक्षीय व्यापार 109.3 बिलियन डॉलर, 2014 से 3.6 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हुई।
          कैलेंडर वर्ष 2015 में भारत को अमेरिकी निर्यात बढ़कर 39.7 बिलियन डॉलर, पहले के साल के मुकाबले 5.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
          कैलेंडर वर्ष में भारत से आयात बढ़कर 69.6 बिलियन डॉलर हो गया, पहले के साल के मुकाबले 2.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

          अमेरिकी बिजनेस के लिए सीधे लाइनः अमेरिकी बिजनेस कार्यक्रम के लिए सीधे लाइन आपको हमारी ‘‘कंट्री टीम’’ का हिस्सा बनाते हुए, अमेरिकी उद्यमियों को विदेशों में अमेरिकी राजदूतों और अमेरिकी मिशन के कर्मचारियों से जोड़ती है। इससे आपको अपने बिजनेस के लिए बाजार की नवीनतम जानकारी प्राप्त होगी। अधिक जानकारी के लिए और नई कॉल्स के लिए यहां क्लिक करें।

          बिजनेस जानकारी की डाटाबेस प्रणाली (द बिजनेस इन्फोर्मेशन डाटाबेस सिस्टम) अमेरिकी उद्यमियों को विदेशी सरकार और बहुपक्षीय विकास बैंक खरीदारियों के बारे में नवीनतम जानकारी प्रदान करता है। एक संवादात्मक मैप इंटरफेस द्वारा उद्यमी विदेशों में अमेरिकी सरकार के आर्थिक व वाणिज्यिक विशेषज्ञों द्वारा नए निर्यात अवसरों, का पता कर सकते हैं। सरकारी व निजी हिस्सेदार मैचमेकिंग, विश्लेषण और अन्य उद्देश्यों के लिए बीआईडीएस डेटा से लिंक या डाउनलोड कर सकते हैं।

          Business USA.gov

          कंट्री कमर्शियल गाइड

          भारत की कंट्री कमर्शियल गाइड (सीसीजी) अमेरिकी उद्यमियों के लिए भारत में निर्यात और निवेश अवसरों की खोज करके एक उपयोगी आरंभिक जानकारी प्रदान करता है। सीसीजी भारत में अमेरिकी दूतावास के विस्तृत दस्तावेज के में तैयार है जो वार्षिक रूप से प्रकाशित होता है। यह भारत के परिचय और नियम व्यापार आर्थिक रुझानों और रूपरेखा, राजनीतिक वातावरण; व्यापार लिनयम, परंपराओं और मानकों; बिजनेस ट्रैवल; और आर्थिक व व्यापार आंकड़ों की जानकारी प्रदान करता है। यह भारत में अमेरिकी उत्पादों और सेवाओं की मार्केटिंग, अमेरिकी निर्यात व निवेश के लिए प्रमुख भारतीय औद्योगिक क्षेत्रों; अमेरिकी निर्यातकों के लिए व्यापार और परियोजना की वित्तीय सहायता और अमेरिकी व भारतीय उद्यमियों के संपर्क की जानकारी भी प्रदान करता है।

          भारत की कंट्री कमर्शियल गाइड (सीसीजी) भारत में निर्यात और निवेश अवसरों की खोज अमेरिकी उद्यमियों के लिए उपयोगी आरंभिक जानकारी प्रदान करता है। सीसीजी भारत में अमेरिकी दूतावास के विस्तृत दस्तावेज के रूप में तैयार है जो वार्षिक रूप से प्रकाशित होता है। यह भारत के आर्थिक रुझानों और रूपरेखा, राजनीतिक वातावरण; व्यापार नियम, शुल्क और मानकों; बिजनेस ट्रैवल; और आर्थिक व व्यापार आंकड़ों की जानकारी प्रदान करता है। यह भारत में अमेरिकी उत्पादों और सेवाओं की मार्केटिंग, अमेरिकी निर्यात व निवेश के लिए प्रमुख भारतीय औद्योगिक क्षेत्रों; अमेरिकी निर्यातकों के लिए व्यापार और परियोजना के वित्तपोषण और अमेरिकी व भारतीय उद्यमियों के संपर्क की जानकारी भी प्रदान करता है।

          उद्योग विशेष की अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए कृपया हमसे संपर्क करें।

          भारत में व्यापार किस प्रकार करें

          तेजी से बढ़ते मध्य वर्ग, आय बढ़ने और महंगे कृषि उत्पादों के उपभोग का तरीका बदलने से अमेरिकी कृषि के बड़े स्तर पर भारत में निर्यात बढ़ने की संभावनाएं हैं। भारत में आधुनिक फुटकर क्षेत्र का विस्तार हो रहा है, खाद्य प्रसंस्करणकर्ता वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में प्रवेश चाहते हैं, और खाद्य सेवा के सेफ नए प्रयोग करना चाहते हैं एवं नए उत्पादों और वैश्विक व्यंजनों को चखने के इच्छुक युवाओं व उच्च आय वाले उपभोक्ताओं को आकर्षित करना चाहते है। भारतीय बाजार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के इच्छुक निर्यातकों को पहले यह पता लगाना चाहिए कि क्या उस उत्पाद की बाजार तक पहुंच हैं और छोटे स्तार शुरुआत करने तथा विशिष्ट लेबलिंग एवं पैकेजिंग आवश्यकताओं को पूरा करने लिए तैयार रहना चाहिए।

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          अमेरिका से कर रहे हैं
          सबसे पहले 011-91-11- डायल करें
          भारत के अंदर से लेकिन दिल्ली के
          बाहर से फोन कर रहे हैं तो
          पहले 011- डायल करें

          रॉबर्ट जे. गारवेरिक, आर्थिक, पर्यावरण, विज्ञान व प्रौद्योगिकी मामलों के मिनिस्टर काउंसिलर

          स्कॉट एस सिंडलर, कृषि मामलों के मिनिस्टर काउंसिलर

          जॉन मैक्कैसलिन, वरिष्ठ वाणिज्यिक अधिकारी व वाणिज्यिक मामलों के मिनिस्टर काउंसिलर

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