कौन से दलाल सबसे भरोसेमंद हैं

बोफोर्स जैसा प्रभावी नहीं है राफेल मुद्दा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कठोरतम आलोचक भी यह नहीं मानेगा कि राफेल मामला उनके लिए बोफोर्स साबित हो रहा है। वे यह जरूर मानते हैं कि राफेल में यह क्षमता है कि वह कुछ महीने पहले तक अपराजेय लग रही मोदी सरकार की हार की वजह बन सके। हालांकि इसमें भी उन्हें कुछ तत्त्वों की कमी लगती है।
पहली बात, देश के दूरदराज हिस्सों में ज्यादातर लोग राफेल के बारे में नहीं जानते। इंडिया टुडे एक्सिस-माई इंडिया का सर्वेक्षण बताता है कि उत्तर प्रदेश में केवल 21 फीसदी लोग राफेल के बारे में जानते हैं। जाहिर है इसका दोष हम पत्रकारों पर ही आएगा।
दूसरा, ऐसा कोई नेता नहीं है जिसमें विश्वनाथ प्रताप सिंह जैसा नैतिक साहस हो और जो मामले को मतदाताओं तक पुरयकीन अंदाज में पहुंचा सके। कांग्रेस और राहुल गांधी तो इसलिए भी नहीं क्योंकि उन पर बोफोर्स समेत कई घोटालों की छाया है।
विपक्ष, खासतौर पर राहुल गांधी ने राफेल को 2019 के आम चुनाव का प्रमुख मुद्दा बनाने की ठानी। उन्होंने व्यापक भ्रष्टाचार और कारोबारियों से निकटता को मुद्दा बनाना शुरू किया। कहा गया कि अगर मोदी संकटग्रस्त कंपनियों के मालिक और एक विवादित कारोबारी के साथ करीबी रिश्ते रख सकते हैं, तो क्या उनसे यह अपेक्षा करना उचित है कि वे सफल और अमीर लोगों से दूरी दूरी रखेंगे? मोदी कौन से दलाल सबसे भरोसेमंद हैं सरकार को 'सूटबूट की सरकार' करार देने के पुराने फॉर्मूले पर काम करने के लिए उन्हें राफेल को केंद्र में रखना होगा।
विपक्ष को मीडिया की कमी खल रही है। उसके मुताबिक उसके पास रामनाथ गोयनका के दिनों के द इंडियन एक्सप्रेस जैसा कोई समाचार माध्यम नहीं है जिसने बोफोर्स के दिनों में जनता की राय बनाने में मदद की थी। विपक्ष के पास दो ऐसे लोग हैं जिनकी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा पर कोई दाग नहीं हैं। ये हैं अरुण शौरी और प्रशांत भूषण।
यह लड़ाई राहुल के नेतृत्व में नहीं लड़ी जा सकती है और न ही मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा में कोई कद्दावर बागी नजर आया है। याद करें तो इंदिरा गांधी के खिलाफ जगजीवन राम जैसे शीर्ष नेता की बगावत और राजीव गांधी के खिलाफ विश्वनाथ प्रताप सिंह की बगावत ने क्रमश: सन 1977 और सन 1988-89 में राजनीतिक समीकरण बदल दिए थे।
यह सोचना भी मुश्किल है कि भाजपा के भीतर से वीपी सिंह जैसा कोई नेता निकलेगा। वीपी सिंह के पास ईमानदार और बलिदानी होने का दोहरा तमगा था क्योंकि उन्होंने कैबिनेट का बड़ा पद छोड़ा था। दूसरा, वह भले कौन से दलाल सबसे भरोसेमंद हैं कौन से दलाल सबसे भरोसेमंद हैं ही मोदी या अटल बिहारी वाजपेयी जैसे वक्ता नहीं थे लेकिन उनमें इतनी चतुराई थी कि उन्होंने एक जटिल रक्षा सौदे को एक ऐसे रूपक में बदल दिया था जो 30 साल पहले हिंदी प्रदेश के मतदाताओं की समझ में आ गया था।
उन्होंने सन 1987 में कैबिनेट से त्यागपत्र दे दिया था। उस वक्त राजीव गांधी का पराभव शुरू ही हुआ था। वीपी सिंह ने संसद की अपनी सीट त्याग दी और इलाहाबाद से उपचुनाव लडऩा तय किया। अमिताभ बच्चन ने बोफोर्स घोटाले में रिश्वत की छाया के बीच यह सीट खाली की थी।
माहौल पूरी तरह अनुकूल था लेकिन उनके दोस्त और दुश्मन दोनों यह मान रहे थे कि सिंह बोफोर्स को मुद्दा नहीं बना पाएंगे। सवाल यह था कि गरीब ग्रामीण जनता इसे कैसे समझेगी? सिंह ने इसे बहुत कलात्मक अंदाज में अंजाम दिया। उन्होंने भारी गर्मियों में मोटर साइकिल के पीछे बैठकर प्रचार किया।
वह अपने गले में एक गमछा डाले रहते थे। ठीक वैसे ही जैसे इन दिनों कार्यकर्ता से राजनेता बने योगेंद्र यादव करते हैं। सिंह रास्ते में पडऩे वाले गांवों में लोगों से एक ही बात कहते थे कि कौन से दलाल सबसे भरोसेमंद हैं क्या वे जानते हैं कि राजीव गांधी ने उनके घरों में चोरी की है?
इसके बाद वह अपने कुर्ते की जेब से माचिस की एक डिब्बी निकालते और कहते, 'इस माचिस को देखिए। जब आप अपनी बीड़ी या हुक्का या फिर चूल्हा जलाने के लिए चार आने (25 पैसे) की माचिस खरीदते हैं तो इसका एक चौथाई सरकार को कर के रूप में जाता है।
इसी पैसे से सरकार आपके स्कूल, अस्पताल, सड़क, नहर आदि बनाती है और सेना के लिए हथियार खरीदती है। यह आपका पैसा है। अगर कोई इसमें से कुछ पैसे चुरा लेता है, वह भी हथियार खरीदते वक्त तो क्या यह आपके घर में सेंधमारी नहीं है?'
बोफोर्स मामले में तथ्य कम थे और सिंह की किस्सागोई अधिक। सिंह कहते कि राजीव गांधी कहते हैं उनके पास बोफोर्स का एक प्रमाणपत्र है कि रिश्वत का लेनदेन नहीं हुआ है। वह कहते कि यह वैसा ही है जैसे कोई पागल, पागलखाने का प्रमाणपत्र दिखाकर कहे कि वह अच्छी मानसिक स्थिति में है और चूंकि बाकियों के पास वह प्रमाणपत्र नहीं है इसलिए वे मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हैं।
बोफोर्स को लेकर वह एक किस्सा सुनाते थे कि एक सर्कस में एक शेर, एक घोड़ा, एक बैल और एक बिल्ली पास-पास रहते थे। एक रात किसी ने पिंजरों का दरवाजा खोल दिया। अगली सुबह मालिक ने देखा कि घोड़े और बैल के अवशेष पड़े हैं। शायद ही किसी को शक होगा कि शेर और बिल्ली में से इन्हें किसने खाया होगा?
जाहिर है शेर जैसे आकार वाले चोर राजीव ने। राजीव की मुस्कराती तस्वीर वाले होर्डिंग को देखकर वह कहते-पात नहीं वह किस पर हंस रहे हैं, अपनी चाल पर, हमारे हाल पर या स्विट्जरलैंड के माल पर। सिंह कहा करते कि वे नहर या ट्यूबवेल बनवाने का वादा नहीं करते लेकिन उस छेद को जरूर बंद करेंगे जहां से जनता का पैसा बाहर जा रहा है।
सिंह की बुद्धिमता पर कभी संदेह नहीं किया जा सकता, लेकिन वह इसलिए भी कारगर रहे क्योंकि उन्होंने मामले को मजबूती से सामने रखा। कांग्रेस के सामने भी बोफोर्स एक ऐसा मुद्दा बन गया था जिसे न उगलना संभव था, न निगलना। आज विपक्ष के पास वीपी सिंह जैसा नेता नहीं है। क्या राफेल मामला बोफोर्स जैसा मजबूत है?
बोफोर्स और राफेल मामले में एक बड़ा अंतर है। बोफोर्स के उलट राफेल मामले में सभी इस बात पर सहमत हैं कि यह सबसे बेहतर और खरीदने योग्य लड़ाकू विमान है। इस विमान का चयन कांग्रेस ने ही किया था। आरोप यह है कि मोदी सरकार 126 के स्थान पर केवल 36 विमान क्यों खरीद रही है। वीपी सिंह कह देते थे कि जब जवानों ने पहली बोफोर्स तोप चलाई तो यह पीछे की ओर दग गई और हमारे कई जवान घायल हो गए। यह बात राफेल के बारे में नहीं कही जा सकती।
दूसरा अंतर, जैसा कि टी एन नाइनन ने भी अपने स्तंभ में लिखा था कि बोफोर्स जैसा मामला अभी तक नहीं है। ओलांद का बयान स्वीडन के राष्ट्रीय अंकेक्षण ब्यूरो के निष्कर्ष जैसा भरोसेमंद नहीं है जिसने कहा था कि स्विट्जरलैंड में तीन संदिग्ध खातों को भुगतान किया गया जो भारत से संबंधित थे।
राफेल सौदे में इकलौता ठोस यह है कि ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट एक ऐसी निजी कंपनी को क्यों दिया गया जिसका रक्षा क्षेत्र का कोई अनुभव नहीं? लेकिन क्या यह वजह मोदी के मतदाताओं को उनके खिलाफ करने में सक्षम है? राफेल अभियान की यही सीमा है।
वीपी सिंह के पास एक जबरदस्त नारा था: वीपी सिंह का एक सवाल, पैसा खाया कौन दलाल? यह नारा सफल रहा क्योंकि लोगों को लगा कि पैसा खाया गया है। राफेल मामले में ऐसा नहीं है। आखिरी शिकायत मीडिया से है। राजीव गांधी पहले ताकतवर प्रधानमंत्री थे जिसके पतन में मीडिया ने अहम भूमिका निभाई थी। इन दिनों यह कहना आसान है कि पत्रकार समझौते कर रहे हैं या मोदी से भयभीत हैं। तो क्या उम्मीद की जाए?
परंतु हमें यह भी मानना होगा कि आज के मीडिया के पास बोफोर्स जैसी कहानी नहीं है। दूसरी बात मोदी का ग्राफ भले ही गिर रहा हो लेकिन वह उतने अलोकप्रिय नहीं हैं जितने राजीव गांधी सन 1988 में हो गए थे। तीसरी बात, भाजपा में कोई बागी नहीं है। यशवंत सिन्हा, कीर्ति आजाद या शत्रुघ्न सिन्हा, वीपी सिंह नहीं हैं। आखिरी बात, कौन से दलाल सबसे भरोसेमंद हैं पत्रकार भी बोफोर्स के बाद से थोड़े अनुशासित हैं क्योंकि तीन दशक बाद भी उस मामले में कोई दोषी नहीं नजर आया। अब रक्षा सौदों पर शंका करने के मानक ऊंचे हो चुके हैं।
इंदौर के इन दो डॉक्टरों पर तत्काल रासुका की कारवाई होनी चाहिए कलेक्टर साहब !
इंदौर। प्रायवेट अस्पताल प्रबंधन को धोखे में रखकर एक एमबीबीएस, एमडी डॉक्टर और दूसरा तथाकथित जो एमबीबीएस नहीं है? ने मिलकर कोरोना संक्रमित मरीज का फर्जी इलाज, फर्जी मेडिकल बिल के माध्यम से मरीज के परिजनों से दो लाख रुपए वसूले! एमबीबीएस और एमडी डॉक्टर वल्लभ गुप्ता, दूसरा तथाकथित डॉक्टर विजेंद्र वैष्णव ये दोनों हैं फर्जी इलाज के मास्टरमाइंड डॉक्टर।
आज के युग में किसी मरीज के लिए डॉक्टर भगवान के बाद इस धरती पर सबसे भरोसेमंद शख्स है! जिस पर मरीज और उसके परिजन आंख बंद कर विश्वास करते है! और यदि यही डॉक्टर पैसों की लालच में आपके साथ सीधे धोखाधड़ी कर आप का फर्जी ईलाज करे और आपको मौत की नीद सुला दे तो आप इसे क्या कहेंगे! पिशाच, जल्लाद, दलाल या अपराधिक धूर्त!?
ऐसी ही एक अपराधिक और इरादतन हत्या की साजिश को अंजाम दिया है इंदौर के एमबीबीएस और एमडी डॉक्टर वल्लभ गुप्ता (पता- अन्नपूर्णा डेंटल एंड मेडिकल सेंटर, नरेन्द्र तिवारी मार्ग उषा नगर एक्सटेंशन इंदौर) और तथाकथित दलाल डॉक्टर विजेंद्र वैष्णव जो मिली जानकारी के अनुसार एमबीबीएस भी नहीं है! जानिए इन्होंने एक कोरोना संक्रमित बुज़ुर्ग मरीज के साथ ईलाज के नाम पर ऐसा कमीना खेल किया है! कि पूरी मेडिकल इंडस्ट्री शर्मसार हो जाय!
66 वर्षीय सेवानिवृत सरकारी कर्मचारी राजेन्द्र निकम निवासी राजेन्द्र नगर को 17 मार्च को जांच में पता चला की वो कोरोना संक्रमित है! दुर्भाग्यवश उनके परिवार में कुछ और लोग भी शायद कोरोना संक्रमित थे। अत: पूरा परिवार घर में क्वारेंटाईन रहने के लिए मजबूर हो गया! इस दरमयान 66 वर्षीय राजेन्द्र निकम की तबियत को देखते हुए एक रिश्तेदार के माध्यम से तथाकथित डॉक्टर विजेंद्र वैष्णव से सलाह ली गयी! डॉक्टर विजेंद्र वैष्णव ने पूरे परिवार को विश्वास में लेते हुए राजेन्द्र निकम को अपनी देख-रेख में राजमोहल्ला स्थित प्रायवेट अस्पताल में भर्ती करने और सम्पूर्ण ईलाज की जिम्मेदारी ले ली! इस तरह उस तथाकथित डॉक्टर विजेंद्र वैष्णव के विश्वास में आकर दिनांक 18 मार्च को अस्पताल के आईसीयू में डॉक्टर विजेंद्र वैष्णव ने अपनी देख-रेख में भर्ती करवा दिया! चूंकि तथाकथित डॉ विजेंद्र वैष्णव प्रशिक्षित डॉक्टर नहीं था, तो इसने अन्नपूर्णा डेंटल एंड मेडिकल सेंटर के एमबीबीएस, एमडी डॉक्टर वल्लभ गुप्ता को कंसल्टेंट डॉक्टर के तौर पर उनकी सेवाएं कोरोना मरीज राजेंद्र निकम के ईलाज के लिए ली! 18 मार्च से लेकर 23 मार्च तक ये दोनों डॉक्टर फर्जी तरीके से कोरोना मरीज राजेंद्र निकम का ईलाज करते रहे! और तकरीबन 2 लाख 11 हजार का बिल राजेन्द्र निकम के पुत्र से ईलाज के नाम पर ले लिए! इन दोनों डॉक्टरों द्वारा किए गए फर्जी ईलाज की पूरी कहानी बयां करते है इनके द्वारा मरीज के कौन से दलाल सबसे भरोसेमंद हैं पुत्र को दिए गए मेडिकल बिल!
प्रायवेट अस्पताल जहां कोरोना मरीज आईसीयू में भर्ती था! उसकी 18 मार्च से 23 मार्च तक की सभी छोटी से लेकर बड़ी घंटे-घंटे, मिनटदर-मिनिट लगने दवाइयां, इंजेक्शन और अन्य जरुरी मेडिकल आवश्यकताएं राजमोहल्ला अस्पताल से तकरीबन 10 किलोमीटर दूर पंचम की फेल (सेल्बी हास्पिटल के सामने) के गोपी मेडिकल स्टोर से तकरीबन 72000 रुपए की मंगवाई जाना बताई जाती है! गौरतलब है की गोपी मेडिकल स्टोर पता 5/1 पंचम की फेल को खुले मात्र 1 महीना हुआ है! उसके पास जीएसटी टेक्स का रजिस्ट्रेशन नम्बर ही नहीं है! बिल पर GST नम्बर की जगह सिर्फ अप्लाई लिखा है!?
इन सारे बिलों के केस मेमो में डॉक्टर वल्लभ गुप्ता का नाम अंकित है। वहीं गोपी मेडिकल स्टोर के संचालक का कहना है कि डॉक्टर विजेन्द्र वैष्णव हमें वाट्सअप पर दवाइयों के नाम लिखकर बिल बनाने को कहता था।
और दूसरी सबसे आश्चर्यजनक कौन से दलाल सबसे भरोसेमंद हैं बात इन तथाकथित दोनों डॉक्टरों द्वारा 40 हजार रुपए कि कीमत का तथाकथित इंजेक्शन Sc temra Injction का बिल श्रीनाथ मेडिकोज पता शाप नं. 5 डायमंड अपार्टमेंट राजमहल कॉलोनी इंदौर मो. 8109193743, 9131241685 है। का तथाकथित फर्जी बिना किसी रजिस्ट्रेशन और जीएसटी नंबर के बिल से खरीदना बताया गया है। जब उपरोक्त मो. नंबरों पर बात हुई तो सामने वाले ने बताया कि मैंने तो अपना मेडिकल कब का ही बंद कर दिया है। इस तरह गोपी मेडिकल स्टोर पंचम की फेल और श्रीनाथ मेडिकोज के फर्जी बिल मरीज के पुत्र को देकर उससे 1 लाख 11 हजार रुपए उपरोक्त दोनों डॉक्टरों ने प्राप्त कर लिए। वहीं दूसरी तरफ प्रायवेट अस्पताल में पांच दिन भर्ती और अन्य सुविधाओं के नाम पर 90 हजार रुपए अलग से वसूल लिए। इस तरह बिना किसी इलाज के तकरीबन 2 लाख 11 हजार रुपए हड़प लिए।
जब मरीज की हालत बिगडऩे लगी तो इन्होंने राजेन्द्र निकम को स्पेशलिटी अस्पताल में भर्ती करने की सलाह दी जहां उनकी ईलाज के दौरान मृत्यु हो जाती है! जब अस्पताल प्रबंधन से इस अपराधिक कृत्य के बारे में जानकारी ली गई तो उन्होंने सारे इलाज से पल्ला झाड़ते हुए कहा कि दोनों डॉक्टरों ने मरीज के साथ धोखाधड़ी की है, क्योंकि मरीज उन्हीं का पेंशट था और वो ही इलाज कर रहे थे। दवाइयां हम रखते नहीं है और दवाइयां और इंजेक्शन उन्हीं के द्वारा बुलवाए गए थे। हमने तो सिर्फ अस्पताल में भर्ती होने और अन्य सुविधाओं की पैसे लिए हैं।
टूरिस्ट प्लेस पर ठगी के 8 नायाब तरीक़े, जान लीजिए कहीं आप भी न हो जाएं इसके शिकार
भारत में पर्यटन स्थलों की कमी नहीं है. यहां रेगिस्तान से लेकर बर्फ़ीले पहाड़ सब मौजूद हैं. यही वजह कि यहां दूर दराज से लोग घूमने के लिए आते हैं. वहीं, किसी भी स्थल की सैर के साथ एक शब्द ‘सावधानी’ भी जुड़ जाता है, क्योंकि अगले पल आपके साथ क्या हो जाए, कोई नहीं जानता. कई बार आपने देखा या सुना होगा कि लोग घूमने के लिए गए और वहां ‘ठगी’ का शिकार हो गए.
वहीं, बदलते वक्त के साथ ‘ठगी’ का तरीक़ा भी बदल गया है. कई बार पर्यटकों को पता ही नहीं चल पाता कि सामने वाला उनके साथ ठगी कर रहा है. ऐसे में हम आपको ठगी के 8 नायाब तरीक़ों के बारे में बता रहे हैं, ताकि आप हमेशा सावधान रहें.
1. किराये पर गाड़ी
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जानकर हैरानी होगी कि पर्यटकों को लूटने का ठगों ने किस लेवल का तरीक़ा ईजाद कर लिया है. कई बार होता है कि आप किसी टूरिस्ट प्लेस की सैर पर निकले और वहां आपने किराये पर बाइक या कार ले ली. वहीं, किराये पर गाड़ियां देने वाले कुछ ऐसे भी कौन से दलाल सबसे भरोसेमंद हैं लोग होते हैं, जो आपको पहले से ही डेंट गाड़ी पकड़ा देते हैं और जब आप घूमकर आते हैं, तो आपसे अतिरिक्त पैसों की मांग करने लग जाते हैं.
इसलिए, इनसे बचने का सबसे अच्छा तरीक़ा यही है कि आप गाड़ी लेते समय दुकानदार के साथ ही गाड़ी का फ़ोटो या वीडियो बना लें, ताकि आप सबूत के तौर पर गाड़ी की हालत दिखा सकें.
2. ड्रग्स के नाम पर
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ऐसा ज़्यादातर विदेशी सैलानियों के साथ होता है, लेकिन ये आपके साथ भी हो सकता है. कई बार ऐसा होता है कि आप जिस ग्रुप के साथ घूमने के लिए निकले हों, उनमें से कोई चरसी या अन्य नशीले पदार्थ का आदी हो. वहीं, शाम होते ही नशीले पदार्थ बेचने वाले आपको टारगेट कर सकते हैं और आपका वो चरसी दोस्त या साथी उसकी बातों में आ सकता है.
इन नशीले पदार्थ वालों का क्या बैकग्राउंड है कौन से दलाल सबसे भरोसेमंद हैं आपको नहीं पता. ये अधिक दाम पर नशीले पदार्थ बेचने के साथ-साथ आपको कई तरीक़े से चूना लगा सकते हैं या किसी दूसरी मुसीबत में डाल सकते हैं.
3. यौन सुख के नाम पर
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यौन सूख का लालच देकर भी कई पर्यटकों को ठग अपना शिकार बना लेते हैं. ऐसे ठग आपसे भारी पैसा वसूल सकते हैं या लूटपाट कर सकते हैं. ख़ासकर ऐसी चीज़ों के लिए लड़कों के ग्रुप को टारगेट किया जाता है. इसलिए, हमेशा सावधान रहें और इन चीज़ों के चक्कर में बिल्कुल न पड़ें.
4. पूजा पाठ के नाम पर ठगी
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ऐसे ठग आपको अमूमन हर धार्मिक स्थलों पर दिख जाएंगे. ये कौन से दलाल सबसे भरोसेमंद हैं पुजारियों के वेश में वैसा लूटने वाले ठग होते हैं. ये आपको पूजा का पूरी सामग्री मुहैया कराने के साथ-साथ पूरे अनुष्ठान की जिम्मेदारी लेते हैं, लेकिन ये आपको पहले नहीं बताएंगे कि कितने पैसे लगेंगे. जब अनुष्ठान हो जाता है, तब ये अपनी मोटी रक़म आपको बताते हैं. मजबूरन आपको पूरे पैसे देने होते हैं. इसलिए, अगली बार आप किसी धार्मिक स्थल पर जाएं, तो वहां पूजा करवाने से पहले लेन-देन की बात पहले ही कर लें.
5. गाइड कर सकता है धोखा
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कुछ गाइड को छोड़कर ठगी करने वाले गाइड की कमी नहीं है. ये अक्सर विदेशी सैलानियों को अपना शिकार बनाते हैं. इनके चक्कर में आप भी आ सकते हैं, अगर आप किसी पर्यटन स्थल में जाकर किसी गाइड को हायर करते हैं. ऐसे ठग गाइड कम पैकेज का लालच देकर कुछ ही स्थलों की सैर कराकर आपको चूना लगा सकते हैं. इसलिए, किसी भी गाइड को हायर करने से पहले अच्छी तरह लेने-देने और नंबर ऑफ टूरिस्ट स्पॉट की बात जरूर कर लें.
Nita Ambani : अनदेखी तस्वीर में नीता अंबानी सबसे प्रभावशाली महिलाओं में से एक हैं
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Nita Ambani : नीता अंबानी हर काम बखूबी करती हैं। पति के बिजनेस (Business) में मदद करना हो, नए आइडियाज प्लान (new ideas plan) करना हो या कोई एनजीओ (NGO) चलाना हो। इतना ही नहीं, हम सभी ने नीता अंबानी को आईपीएल मैचों (ipl matches) के दौरान अपनी टीम को चीयर (cheers team) करते देखा है।
बेटे आकाश और ईशा अंबानी की शादी में नीता अंबानी का अलग ही अंदाज देखने को मिला। जिसमें नीता अंबानी साबित करती हैं
कि वह एक प्रभावशाली महिला होने के साथ-साथ एक आदर्श मां भी हैं।क्या आप दुनिया की सबसे प्रभावशाली महिलाओं में से एक नीता अंबानी के सफर के बारे में जानना चाहते हैं?
Nita Ambani : एक गुजराती परिवार में जन्म
नीता अंबानी का जन्म 1 नवंबर 1964 को मुंबई में एक मध्यमवर्गीय गुजराती परिवार में हुआ था। उनके पिता रवींद्रभाई दलाल बिड़ला (Vindrabhai Dalal Birla) कंपनी में उच्च पद पर थे। नीता अंबानी की मां का नाम पूर्णिमा दलाल और बहन का नाम ममता दलाल है।
Nita Ambani : शास्त्रीय नृत्य में रुचि
नीता अंबानी एक गुजराती परिवार से ताल्लुक रखती हैं। नीता के परिवार में संगीत और शास्त्रीय नृत्य को प्यार किया जाता है और उनके परिवार में संगीत और नृत्य का बहुत महत्व है।
नीता की मां एक प्रमुख गुजराती लोक नृत्यांगना थीं। नीता जब महज आठ साल की थीं तभी से उनकी मां ने उन्हें डांस सिखाना शुरू कर दिया था।
नीता ने बचपन से ही नृत्य में अपनी गहरी रुचि दिखानी शुरू कर दी थी और कुछ ही समय में वह एक कुशल भरतनाट्यम नर्तकी बन गईं। वह दूसरा करियर बनाना चाहते थे जबकि उनकी मां चाहती थीं कि वे चार्टर्ड एकाउंटेंट (Chartered accountant) बनें।
Nita Ambani : शिक्षा
नीता ने अपनी प्राथमिक शिक्षा रोज मैनर गार्डन स्कूल से की, बाद में नरसी मांजी कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स (commerce and economics) से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। नीता अंबानी ने इंटीरियर डिजाइनर का कोर्स भी किया था।
Nita Ambani : भरतनाट्यम ने बदल दी किस्मत
एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी नीता अंबानी ने एक दिन एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में नृत्य किया, जिसने शास्त्रीय रूप से प्रशिक्षित भरतनाट्यम नर्तकी की किस्मत बदल दी।
इस मौके पर बिजनेस टाइकून और रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन धीरूभाई अंबानी और उनकी पत्नी कोकिलाबेन भी मौजूद थीं। वे दोनों नीता के डांस से इतने प्रभावित हुए कि तुरंत ही उन्हें अपनी बहू के रूप में ढूंढने लगे।
Nita Ambani : धीरू भाई आयोजक से नीता के बारे में जानकारी लेते हैं
नीता अंबानी अपने भरतनाट्यम डांस के लिए पूरे गुजरात में काफी मशहूर थीं। उनका एक कौन से दलाल सबसे भरोसेमंद हैं डांस परफॉर्मेंस धीरू भाई ने भी देखा था। वह नीता के उत्कृष्ट प्रदर्शन से प्रभावित हुए।
धीरू भाई को अपने नृत्य में भारतीय परम्परा के अनुरूप एक अद्भुत सौन्दर्य दिखाई दिया। कार्यक्रम बिरला मातोश्री परिसर में आयोजित किया गया था।
धीरूभाई ने मेजबान से उसके बारे में पूछा और नीता से संबंधित सभी जानकारी ली, जिसमें उसका टेलीफोन नंबर भी शामिल था।
Nita Ambani : जब धीरू भाई अंबानी ने नीता को फोन किया
अगले दिन धीरू भाई अंबानी ने नीता के घर का टेलीफोन नंबर डायल किया और दिलचस्प बात यह थी कि नीता ने खुद फोन उठाया।
जब नीता कॉलर को धीरू भाई अंबानी के रूप में अपना परिचय देते हुए सुनती है और उनसे बात करना चाहती है, तो बिना समय बर्बाद किए वह जवाब देती है
कि वह एलिजाबेथ टेलर के अलावा किसी और से नहीं बोल रही है। तभी नीता फोन काट देती है कि यह किसी का मजाक है।
आखिर कैसे भारत के मशहूर बिजनेसमैन धीरू भाई उन्हें फोन करते हैं और उनसे बात करना चाहते हैं।
धीरू भाई ने फिर फोन किया लेकिन इस बार नीता के पिता ने फोन उठाया और उन्होंने धीरू भाई की आवाज पहचान ली।
नीता के पिता ने उसे धीरू भाई से मिलने के लिए कहा। अपने पिता के कुछ समझाने के बाद, नीता धीरू भाई से मिलने के लिए तैयार हो जाती है।
Nita Ambani : ऑफिस में धीरू भाई से मिले
जब नीता धीरू भाई से उनके कार्यालय में मिलने जाती है, तो धीरू भाई नीता से शिक्षा, शौक और खाना पकाने के कौशल सहित कई विषयों पर सवाल करते हैं।
फिर, वह नीता को अपने घर आने के लिए आमंत्रित करता है। फिर वह नीता से साफ कहता है कि वह उसे मुकेश की पत्नी के रूप में देखता है, और इसलिए उसे घर आना चाहिए और कहता है कि मुकेश भी उसे देखना चाहता है।
Nita Ambani : जब मुकेश अंबानी और नीता पहली बार मिले थे
धीरू भाई से मिलने और परिवार से चर्चा करने के बाद जब नीता धीरू भाई अंबानी के घर गईं तो मुकेश अंबानी ने दरवाजा खोला. उन्हें नीता के बारे में पता चला क्योंकि धीरू भाई नीता के बारे में बात करते रहते थे।
घरवालों से बात करने के बाद नीता और मुकेश ने कहीं बाहर मिलने का फैसला किया और कुछ ही देर में मुलाकात शुरू हो गई.
Nita Ambani : रिश्ते को लेकर नीता काफी कन्फ्यूज थीं
मुकेश अंबानी से बार-बार मिलने के बावजूद नीता रिश्ते को लेकर काफी सशंकित थीं। क्योंकि वह अपनी पढ़ाई जल्दी खत्म करना चाहता था। उन्हें धीरू भाई के फैसले की जानकारी थी, लेकिन वो इस रिश्ते को कुछ समय देना चाहते थे.
Nita Ambani : रेड सिग्नल पर शादी के लिए हां
एक दिन जब मुकेश और नीता पोद्दार रोड से गुजर रहे थे तो मुकेश ने रेड सिग्नल पर अपनी कार रोक दी। हालांकि, सिग्नल ग्रीन होने के बावजूद उन्होंने गाड़ी नहीं चलाई। यह देखकर नीता उसे कार हटाने के लिए कहती है क्योंकि इससे ट्रैफिक जाम हो जाएगा।