प्रसार कम है

विदेशी आक्रांताओं के चलते आयुर्वेद का प्रसार रूक गया, लेकिन इसे फिर से मान्यता मिल रही:भागवत
नागपुर (महाराष्ट्र), 12 नवंबर (भाषा) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार को कहा कि विदेशियों के आक्रमण के कारण आयुर्वेद का प्रसार रूक गया था, लेकिन अब उपचार की इस प्राचीन पद्धति को फिर से मान्यता मिल रही है।
उन्होंने यह भी कहा कि आयुर्वेद को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए कदम उठाने की जरूरत है।
भागवत ने यह बात यहां आयुष मंत्रालय द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, आयुर्वेद पर्व में कही। आयुष में आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी शामिल हैं।
केंद्रीय आयुष मंत्री सर्वानंद सोनोवाल और गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
भागवत ने कहा, ‘‘लोगों के बीच आयुर्वेद का प्रसार विदेशियों के आक्रमण के चलते रूक गया था। लेकिन आयुर्वेद को फिर से मान्यता मिल रही है और समय आ गया है कि आयुर्वेद के ज्ञान का प्रसार किया जाए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, हमें आयुर्वेद को कैसे आगे ले जाना चाहिए? उपाय यह है कि हर किसी को वहनीय और सामान्य मेडिकल उपचार मिले और इसके लिए आयुर्वेद से बेहतर विकल्प नहीं है। ’’
भागवत ने कहा कि आयुर्वेद के शुद्धतम रूप का उपयोग किया जाना चाहिए ताकि इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिले।
सोनोवाल ने कहा कि पिछले सात वर्षों से आयुर्वेद को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिल रही है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘2014 तक आयुष उद्योग का बाजार तीन अरब डॉलर का था। लेकिन पिछले आठ वर्षों में वैश्विक स्तर पर बढ़ कर यह 18.1 अरब डॉलर का हो गया है और 2023 तक इसके बढ़ कर 23 अरब डॉलर का बाजार हो जाने की संभावना है।’’
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
प्रसार शिक्षा के चरण | stages of extension education in Hindi
प्रसार शिक्षा के चरण | stages of extension education in Hindi
प्रसार शिक्षा के चरण | stages of extension education in Hindi
प्रसार शिक्षा के प्रमुख चरण निम्नलिखित है-
1. ध्यानाकर्षण ( Attention ) – किसी परिणाम या प्रतिफल को देखकर ही लोगों का ध्यान उसकी ओर जाता है। दूसरे शब्दों में, इसे ध्यानाकर्षण कहते हैं। गेहूँ के पुष्ट दाने, टमाटर-बैंगन के बड़े आकार, भुट्टों के लहलहाते खेत, फलों से लदे पेड़-पौधे इत्यादि देखकर कोई भी कृषक उनके प्रति आकर्षित होगा। इसी प्रकार स्वेटर के अन्दर नमूने, नये-नये व्यंजन, हस्तकला से सुसज्जित घर महिलाओं को आकर्षित करते हैं। ग्रामीणों में अभिरुचि एवं आकांक्षा जगाने की पहली सीढ़ी ध्यानाकर्षण है। व्यक्ति समझता है कि उसकी समस्या का कोई हल है, तभी वह उस हल के प्रति आकर्षित होता है। प्रसार कार्यक्रम के अन्तर्गत कृषि-प्रदर्शनी, कृषि मेला, हस्तशिल्प प्रदर्शनी, पोस्टर, छायाचित्र प्रदर्शनी, रेडियो तथा दूरदर्शन के कृषि एवं महिलोपयोगी प्रसारण, सिनेमा आदि के माध्यम से लोगों का ध्यान आकर्षित किया जाता है। दूसरे कृषकों के खेत और फसल देखकर भी कृषकों को ध्यान आकर्षित होता है।
2. अभिरुचि ( Interest ) — कोई वस्तु या उपलब्धि जब किसी व्यक्ति का ध्यान आकर्षित करने में सक्षम हो जाती है तो आगे की क्रिया प्रसार कम है सहज हो जाती है। अभिरुचि एक प्रतिक्रिया है जो ध्यानाकर्षण के कारण होती है। किसी वस्तु या उपलब्धि पर जब ध्यान केन्द्रित होता है तो उस परिणाम के प्रति अभिरुचि जागना स्वाभाविक है। जब ग्रामीणों का ध्यान परिणाम पर आकर्षित हो गया हो तो प्रसार शिक्षक प्रसार कम है को उसके विषय में थोड़ी जानकारी देना प्रारम्भ करना चाहिए। प्रसार शिक्षक को अपनी बात आकर्षक ढंग से प्रस्तुत करनी चाहिए, जिससे प्रसार कम है लोगों को यह आभास न हो कि कोई बात उन पर थोपी जा रही है। ग्रामीणों के लिए इस स्थिति में इतना ही जानना पर्याप्त है कि नई पद्धति द्वारा ऐसा परिणाम प्राप्त किया जा सकता है और ये परिणाम लाभकारी हैं। पद्धति सम्बन्धी जानकारी आगे के चरणों में दी जायेगी।
3. आकांक्षा (Desire ) — प्रसार शिक्षक का यह कर्त्तव्य हो जाता है कि ग्रामीणों में नई जानकारियों को प्राप्त करने की जो अभिरुचि उसने जगाई है, उसे बनाए रखे क्योंकि जिस वस्तु के प्रति व्यक्ति की अभिरुचि जागती है, उसे प्राप्त करने की आकांक्षा भी उसके मन में जाग्रत होने लगती है। आकांक्षा एक आन्तरिक शक्ति है जो सीखना- क्रिया को गत्यात्मकता प्रदान करती है। आकांक्षा से प्रभावित व्यक्ति अधिक सक्रियता एवं उत्साह के साथ किसी भी काम को सीखना चाहता है। इससे वह कम समय और कम मेहनत द्वारा किसी भी पद्धति को सीख लेता है। प्रसार शिक्षक की चेष्टा यही होनी चाहिए कि वह अभिरुचिको आकांक्षा में परिवर्तित होने का वातावरण बनाए रखे। परिमाण-प्रदर्शन की पुनरावृत्ति करे, लोगों को उनके लाभ की बातें बताता रहे। अभिरुचि का आकांक्षा में परिवर्तित होना प्रसार-शिक्षक की अर्द्ध-सफलता का द्योतक है क्योंकि ‘आकांक्षा एक आन्तरिक प्रेरक शक्ति है जो व्यक्ति को कोई क्रिया करने को बाध्य करती है।
4. विश्वास (Conviction ) — आवश्यकता व्यक्ति को सीखने की प्रेरणा देती है। विषय के प्रति आस्था व्यक्ति को इस बात के लिए प्रेतिर एवं प्रोत्साहित करती है कि वह क्रियाशील होकर आगे बढ़े। ग्रामीणों के मन में नई पद्धतियों के प्रति विश्वास जगाने में प्रसार कार्यकर्ता की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। विभिन्न प्रसार माध्यमों की सहायता लेकर वह ग्रामीणों के समक्ष नई पद्धतियों एवं सूचनाओं को एक निर्विवाद सत्य की तरह प्रस्तुत कर सकता है। ग्रामीणों के मन में जब इनके प्रति आस्था जाग जाती है तो आगे की क्रियाएँ स्वतः स्वाभाविक एवं सहज हो जाती है।
5. जानकारी (Knowldege ) — किसी भी विषय के प्रति आस्था, व्यक्ति को इस बात के लिए बाध्य करती है कि वह तत्सम्बन्धी जानकारी प्राप्त करे। इसी प्रकार ग्रामीणों के मन में, जब किसी पद्धति के प्रति विश्वास घर कर लेता है तो वे विषय-सम्बन्धी विस्तृत जानकारी प्राप्त करने को उद्दीप्त हो जाते हैं। प्रसार कार्यकर्ता की भूमिका इस समय, ग्रामीणों को उन पद्धतियों से सम्बन्धित जानकारी देना है जिससे वे कार्य सम्पादन में जुटा सकें क्योंकि अगला चरण कार्य सम्पादन है। ग्रामीणों को जानना चाहिए कि उन्हें क्या करना है, कहाँ से प्रारम्भ करना है।
6. क्रिया (Action)– प्रसार शिक्षण के अन्तर्गत यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण चरण है क्योंकि इसका सम्बन्ध शिक्षण के व्यावहारिक पक्ष है। किसी भी कार्य से सम्बद्ध शिक्षण तभी सफल माना जाता है जब लोग उस प्रसार कम है कार्य को व्यवहार में लाते हैं। व्यावहारिक शिक्षण की लक्ष्य पूर्ति तभी होती है जब बताई गई बातों को क्रियात्मकता मिले। प्रसार शिक्षण के माध्यम से प्राप्त पद्धतियों एवं सूचनाओं का ग्रामीण समुदाय जब अनुसरण करता है, उसके करता है तो प्रसार शिक्षण सफल कहा प्रसार कम है जा सकता है। जानकारियों के पहुँचाने के बावजूद जब ग्रामीण पुरानी पद्धतियों के अनुसार काम करते रहते हैं तो प्रसार-शिक्षा विफल माना जाता है। अनुरूप कार्य इन पद्धतियों के प्रतिपालन में आने वाले या उपस्थित व्यवधानों के प्रति प्रसारकर्त्ता को विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए तथा प्रसार कम है ऐसा प्रयास करना चाहिए कि ये व्यवधान लोगों के कार्य सम्पादन को प्रभावित कर, उन्हें हतोत्साहित न करने पाएँ। ये व्यवधान भौतिक, आर्थिक, प्रसार कम है सामाजिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक, यहाँ तक कि मानवीय भी हो सकते हैं।
7. संतुष्टि (Satisfaction) – सीखने की क्रिया आवश्यकता से प्रारम्भ होती है तथा कई प्रेरक शक्तियों द्वारा प्रभावित होकर वांछित लक्ष्य तक पहुँचती है। कोई विद्यार्थी जब पड़ता है तो परीक्षा में अच्छा फल प्राप्त करना उसका वांछित लक्ष्य होता है। इसी प्रकार जब कृषक हल जोतता है तो अच्छी फसल की प्राप्ति उसका वांछित लक्ष्य होता है। इसका प्रकार हम कह सकते हैं कि व्यक्ति कोई भी कार्य किसी प्रलोभन या वांछित लक्ष्य की प्राप्ति के निमित्त करता है। अपने वांछित या प्रतिफल से वह पूरी तरह परिचित रहता है और उसे क्या चाहिए या उसकी क्या आकांक्षा है; वह भली-भाँति जानता है। यही कारण है कि वांछित लक्ष्य की प्राप्ति होने पर ही वह संतुष्ट हो पाता है। वांछित लक्ष्य के अन्तर्गत व्यक्ति की आवश्यकता की पूर्ति, उसकी समस्या के निदान, कार्य क्षमता में वृद्धि या इसी तरह की कोई और बात हो सकती है। प्रसारकर्त्ता को इस बात के प्रति सतर्क रहना चाहिए कि वह उन्हीं लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए ग्रामीणों को उत्प्रेरित करे, जिन लक्ष्यों की प्राप्ति की क्षमता एवं योग्यता उनके पास हो। ग्रामीणों की कार्य दक्षता एवं संसाधनों को ध्यान में रखकर ही किसी काम के निमित्त उन्हें प्रोत्साहित या प्रेरित करना बुद्धिमत्ता है।
8. मूल्यांकन (Evaluation ) – मूल्यांकन प्रसार शिक्षण का महत्वपूर्ण चरण है। मूल्यांकन द्वारा ही यह ज्ञात हो पाता है कि वांछित लक्ष्यों की प्राप्ति हुई है अथवा किस सीमा तक हुई है। मूल्यांकन एक विश्लेषणात्मक अध्ययन है जो कार्य सम्पादन की त्रुटियों या लाभों की जानकारी देता है। कार्य सम्पादन के क्रम में भी समय-समय पर कार्य प्रगति से सम्बन्धित सूचनाएँ मूल्यांकन द्वारा प्राप्त की जा सकती है। इससे सीखने वाले तथा सिखाने वाले दोनों को लाभ होता है। समय पर दोष निवारण होना अपने आप में महत्वपूर्ण है। प्रसार शिक्षण के अंतर्गत मूल्यांकन द्वारा ही इस त की जानकारी हो पाती है कि लोगों के व्यवहार में, उनकी आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति में, प्रसार शिक्षा के फलस्वरूप कौन-कौन से परिवर्तन आए।
प्रसारकर्ता को उपर्युक्त प्रसार शिक्षण के विभिन्न चरणों को ध्यान में रखकर शिक्षण योजना बनानी चाहिए। ग्रामीणों का बौद्धिक-शैक्षिक स्तर, उनकी आर्थिक-सामाजिक स्थिति, प्रसार माध्यमों की उपलब्धि, यातायात सुविधा जैसे तथ्य इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा प्रसार कार्यकर्त्ता की कार्य-योजना को प्रभावित करते हैं। जिन क्षेत्रों में लोग रेडियो तथा दूरदर्शन के कार्यक्रमों को सुनते-देखते हैं वहाँ प्रसार कार्यकर्ता का काम अपेक्षाकृत सहज होता है किन्तु ऐसे क्षेत्रों में, जहाँ शैक्षिक स्तर कम हो तथा दृश्य-श्रव्य प्रसारणों का लाभ भी नहीं पहुँचता हो, वहाँ कार्यकर्ता को अधिक परिश्रम करना पड़ता है तथा पोस्टर, छाया-चित्र, स्लाइडस, डॉक्यूमेंट्री फिल्म जैसे प्रसार साधन जुटाने पड़ते ये तत्व प्रसार-शिक्षण-पद्धति को प्रभावित करते हैं।
डब्ल्यूएचओ ने दी ये चेतावनी, कहा-प्रसार के लिहाज से डेल्टा से तेजी से आगे निकल रहा ओमिक्रोन
संयुक्त राष्ट्र/ जिनेवा। कोरोना वायरस का ओमिक्रोन स्वरूप, उसके डेल्टा स्वरूप से तेजी से आगे निकाल रहा है और पूरी दुनिया में इस स्वरूप से संक्रमण के मामले अब ज्यादा सामने आ रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस संबंध में आगाह किया है। वैश्विक स्वास्थ्य एजेंसी के अधिकारी ने …
संयुक्त राष्ट्र/ जिनेवा। कोरोना वायरस का ओमिक्रोन स्वरूप, उसके डेल्टा स्वरूप से तेजी से आगे निकाल रहा है और पूरी दुनिया में इस स्वरूप से संक्रमण के मामले अब ज्यादा सामने आ रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस संबंध में आगाह किया है। वैश्विक स्वास्थ्य एजेंसी के अधिकारी ने चेताया है कि इस बात के “साक्ष्य बढ़ रहे हैं” कि ओमिक्रोन प्रतिरक्षा शक्ति से बच निकल सकता है लेकिन अन्य स्वरूपों की तुलना में इससे बीमारी की गंभीरता कम है।
डब्ल्यूएचओ में संक्रामक रोग महामारी विज्ञानी एवं ”कोविड-19 टेक्निकल लीड” मारिया वान केरखोव ने मंगलवार को कहा कि कुछ देशों में ओमिक्रोन को डेल्टा पर हावी होने में समय लग सकता है क्योंकि यह उन देशों में डेल्टा स्वरूप के प्रसार के स्तर पर निर्भर करेगा। केरखोव ने ऑनलाइन प्रश्नोत्तर सत्र के दौरान कहा, “ओमिक्रोन उन सभी देशों में मिला है जहां जीनोम अनुक्रमण की तकनीक अच्छी है और संभवत: यह दुनिया के सभी देशों में मौजूद है।
यह फैलने के लिहाज से, बहुत तेजी से डेल्टा से आगे निकल रहा है। और इसलिए ओमिक्रोन हावी होने वाला स्वरूप बन रहा है जिसके मामले सामने आ रहे हैं।” उन्होंने इस बारे में भी आगाह किया कि डेल्टा स्वरूप की तुलना में भले ही ओमिक्रोन से बीमारी के कम गंभीर होने को लेकर कुछ जानकारियां हैं, लेकिन ”यह हल्की बीमारी नहीं है” क्योंकि “ओमिक्रोन के चलते भी लोगों को अस्पताल में भर्ती कराने की नौबत आ ही रही है।”
डब्ल्यूएचओ की तरफ से जारी कोविड-19 साप्ताहिक महामारी अद्यतन आंकड़ों के मुताबिक, तीन से नौ जनवरी वाले सप्ताह में विश्व भर में कोविड के 1.5 करोड़ नये मामले सामने आए जो उससे पहले के सप्ताह की तुलना में 55 प्रतिशत अधिक हैं जब करीब 95 लाख मामले आए थे। पिछले सप्ताह करीब 43,000 मरीजों की मौत के मामले सामने आए थे। नौ जनवरी तक, कोविड-19 के 30.40 करोड़ से अधिक मामले सामने आ चुके थे और 54 लाख से ज्यादा लोगों की संक्रमण से मौत हो चुकी थी।
विदेशी आक्रमणों से रुका आयुर्वेद का प्रसार ! – प. पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत
प.पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत
नागपुर – विदेशी आक्रमणों के कारण आयुर्वेद का प्रसार रुक गया था । अब आयुर्वेद को पुनः मान्यता मिल रही है । आयुर्वेद के प्रसार का समय आ गया है । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विचार है कि आयुर्वेद को वैश्विक मान्यता प्राप्त हो इसके लिए प्रयत्न करने की आवश्यकता है । प.पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने १२ नवंबर को यहां अपना मत व्यक्त किया ।
केंद्रीय आयुष मंत्रालय के सहयोग से पूर्वी नागपुर के सुरेश भट सभागृह में ३ दिवसीय ‘आयुर्वेद पर्व’ और अंतर्राष्ट्रीय परिषद का प्रसार कम है आयोजन किया गया । इस परिषद के उद्घाटन के अवसर पर वे अपना मत व्यक्त कर रहे थे ।
प्रसार कम है
गौरव द्विवेदी प्रसार भारती के नए सीईओ नियुक्त
नई दिल्ली, 14 नवंबर (आईएएनएस)। राष्ट्रपति ने सोमवार को छत्तीसगढ़ कैडर के 1995 बैच के आईएएस अधिकारी गौरव द्विवेदी को प्रसार भारती का मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) नियुक्त किया।
नई दिल्ली, 14 नवंबर (आईएएनएस)। राष्ट्रपति ने सोमवार को छत्तीसगढ़ कैडर के 1995 बैच के आईएएस अधिकारी गौरव द्विवेदी को प्रसार भारती का मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) नियुक्त किया।
चयन समिति की उचित सिफारिश के बाद नियुक्ति हुई। द्विवेदी अपने पदभार ग्रहण करने के पांच साल की अवधि के लिए सीईओ होंगे।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से सोमवार को जारी एक आदेश में कहा गया है, उनकी नियुक्ति के नियम और शर्ते प्रसार भारती (भारतीय प्रसारण प्रसार कम है निगम) अधिनियम, 1990 के प्रावधानों और समय-समय पर संशोधित उसके तहत बनाए गए नियमों द्वारा शासित होंगे।
द्विवेदी ने केरल, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विभिन्न पदों पर काम किया है।
वह वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत माईजीओवी के सीईओ के रूप में तैनात हैं।