मुद्रा विनिमय पर व्यापार

नि:संदेह कमजोर होते रुपए की स्थिति से सरकार और रिजर्व बैंक दोनों चिंतित हैं और इस चिंता को दूर करने के लिए यथोचित कदम भी उठा रहे हैं। रिजर्व बैंक ने रुपए में तेज उतार-चढ़ाव और अस्थिरता को कम करने के लिए यथोचित कदम उठाए हैं और आरबीआई द्वारा उठाए गए ऐसे कदमों से रुपए की तेज गिरावट को थामने में मदद मिली है। आरबीआई ने कहा है कि अब वह रुपए की विनिमय दर में तेज उतार-चढ़ाव की अनुमति नहीं देगा। आरबीआई का कहना है कि विदेशी मुद्रा भंडार का उपयुक्त उपयोग रुपए की गिरावट को थामने में किया जाएगा। अब आरबीआई ने विदेशों से विदेशी मुद्रा का प्रवाह देश की मुद्रा विनिमय पर व्यापार ओर बढ़ाने और रुपए में गिरावट को थामने, सरकारी बांड में विदेशी निवेश के मानदंड को उदार बनाने और कंपनियों के लिए विदेशी उधार सीमा में वृद्धि सहित कई उपायों की घोषणा की है। ऐसे उपायों से एफआईआई पर अनुकूल कुछ असर पड़ा है। इस समय रुपए की कीमत में गिरावट को रोकने के लिए और अधिक उपायों की जरूरत है। इस समय डॉलर के खर्च में कमी और डॉलर की आवक बढ़ाने के रणनीतिक उपाय जरूरी हैं। अब रुपए में वैश्विक कारोबार बढ़ाने के मौके को मुठ्ठियों में लेना होगा। भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा भारत और अन्य देशों के बीच व्यापारिक सौदों का निपटान रुपए में किए जाने संबंधी महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है। विगत 11 जुलाई को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के द्वारा मुद्रा विनिमय पर व्यापार भारत व अन्य देशों के बीच व्यापारिक सौदों का निपटान रुपए में किए जाने संबंधी निर्णय के बाद इस समय डॉलर संकट का सामना कर रहे रूस, इंडोनेशिया, श्रीलंका, ईरान, एशिया और अफ्रीका के साथ विदेशी व्यापार के लिए डॉलर के बजाय रुपए में भुगतान को बढ़ावा देने की नई संभावनाएं सामने खड़ी हुई दिखाई दे रही हैं।
रुपया 35 पैसे टूटकर 81.26 प्रति डॉलर पर
विदेशी मुद्रा कारोबारियों के अनुसार, वैश्विक बाजारों में जोखिम लेने की धारणा कमजोर होने से रुपये की विनियम दर में गिरावट आई।
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 81.41 पर खुला। कारोबार के दौरान रुपया 81.23 के दिन के उच्चस्तर तक गया और 81.58 के निचले स्तर तक आया।
अंत में अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया 35 पैसे की गिरावट के साथ 81.26 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। यह पिछले कारोबारी सत्र में 37 पैसों की तेजी के साथ 80.91 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था।
शेयरखान बाय बीएनपी पारिबा में शोध विश्लेषक अनुज चौधरी ने कहा, ‘‘वैश्विक बाजारों में जोखिम से बचने की धारणा और कमजोर एशियाई मुद्राओं के कारण भारतीय रुपये में गिरावट आई है। एफआईआई की निकासी से भी रुपया प्रभावित हुआ।’’
मुद्रा का दबाव: डॉलर के मुकाबले रुपये का अवमूल्यन
दुनिया के अन्य प्रमुख मुद्राओं के साथ रुपया एक फिर से एक नए दबाव का सामना कर रहा है। फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर में भारी - भरकम 75 आधार अंकों की ताजा वृद्धि और अमेरिकी केंद्रीय बैंक द्वारा अपना ध्यान पूरी तरह से मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने पर केंद्रित रखने के स्पष्ट संदेश के मद्देनजर डॉलर में मजबूती जारी है। सप्ताह के अंत में एक नए रिकॉर्ड स्तर पर लुढ़क कर बंद होने से पहले, भारतीय मुद्रा शुक्रवार को दिन – भर के व्यापार (इंट्राडे ट्रेड) के दौरान पहली बार डॉलर के मुकाबले 81 अंक के पार जाकर कमजोर हुई। अस्थिरता को कम करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप से रुपये में गिरावट की रफ्तार को नरम किया गया। लेकिन 16 सितंबर से 12 महीनों में इस तरह के हस्तक्षेपों का कुल नतीजा यह हुआ कि भारतीय रिजर्व बैंक के विदेशी मुद्रा भंडार के आपातकालीन कोष में लगभग 94 बिलियन डॉलर की कमी आई और यह कोष अब घटकर 545.65 बिलियन डॉलर का रह गया है। डॉलर के मुकाबले अकेले रुपये में ही गिरावट नहीं होने का तथ्य अपने कारोबार के सुचारू संचालन के लिए कच्चे माल या सेवाओं के आयात पर निर्भर रहने वाली भारतीय कंपनियों के लिए थोड़ा सा भी सुकून भरा नहीं हो सकता है। ये कंपनियां एक ऐसे समय में बढ़ती लागत की समस्या से मुद्रा विनिमय पर व्यापार जूझ रहीं हैं, जब महामारी के बाद की स्थिति में घरेलू मांग का एक टिकाऊ स्तर पर पहुंचना अभी भी बाकी है। आयात का बढ़ता खर्च भी पहले से ही लगातार बढ़ती मुद्रास्फीति से घिरी अर्थव्यवस्था पर मुद्रास्फीति के दबाव में और इजाफा करेगा तथा चढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के मौद्रिक नीति निर्माताओं के प्रयासों को और अधिक जटिल बनाएगा।
लुढक़ते रुपए को बचाने की चुनौती
इस समय डॉलर के खर्च में कमी और डॉलर की आवक बढ़ाने के रणनीतिक उपाय मुद्रा विनिमय पर व्यापार जरूरी हैं। अब रुपए में वैश्विक कारोबार बढ़ाने के मौके को मुठ्ठियों में लेना होगा। भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा भारत और अन्य देशों के बीच व्यापारिक सौदों का निपटान रुपए में किए जाने संबंधी महत्त्वपूर्ण निर्णय लिया गया है…
हाल ही में अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर में इजाफा किए जाने और मौद्रिक नीति मुद्रा विनिमय पर व्यापार को आगे और भी सख्त बनाए जाने के संकेत के साथ-साथ 5 अक्टूबर को तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक के द्वारा तेल उत्पादन में भारी कटौती पर जिस तरह सहमति व्यक्त की गई है, उससे 7 अक्टूबर को डॉलर के मुकाबले रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर लुढक़कर 82.33 पर पहुंच गया। रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से रुपए में यह सबसे बड़ी गिरावट है। स्थिति यह है कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए की ऐतिहासिक गिरावट के बाद कई भारतीय कंपनियां इससे बचने के लिए फॉरवर्ड कवर की कवायद में हैं, क्योंकि उन्हें चिंता है कि फेडरल रिजर्व के ताजा संकेत से इसी वर्ष 2022 में ब्याज दर में और इजाफा मुद्रा विनिमय पर व्यापार हो सकता है, जिससे डॉलर और मजबूत होगा। निश्चित रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अब चीन-ताइवान के बीच तनाव और वैश्विक आर्थिक मंदी की आशंकाओं के बीच जिस तरह उससे डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत में बड़ी फिसलन से जहां इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था की मुश्किलें बढ़ रही हैं, वहीं आर्थिक विकास योजनाएं प्रभावित हो रही हैं। विदेशी मुद्रा भंडार 30 सितंबर को दो साल के निचले स्तर पर घटकर 533 अरब डॉलर रह गया है। इतना ही नहीं महंगाई से जूझ रहे आम आदमी की चिंताएं और बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं। उर्वरक एवं कच्चे तेल के आयात बिल में बढ़ोतरी होगी। अधिकांश आयातित सामान महंगे हो जाएंगे। यद्यपि रुपए की कमजोरी से आईटी, फार्मा, टेक्सटाइल जैसे विभिन्न उत्पादों के निर्यात की संभावनाएं बढ़ी हैं, लेकिन अधिकांश देशों में मंदी की लहर के कारण निर्यात की चुनौती दिखाई दे रही है।
बांग्लादेश द्वारा श्रीलंका के साथ ‘मुद्रा विनिमय समझौता’
हाल ही में बांग्लादेश ने श्रीलंका के साथ 200 मिलियन डॉलर की एक ‘मुद्रा विनिमय’ (currency swap) सुविधा को मंजूरी प्रदान कर दी है। इस समझौते के बाद से बांग्लादेश इस वर्ष श्रीलंकाको महत्वपूर्ण वित्तीय सहायता देने वाला दक्षिण एशिया का पहला देश बन गया है।
श्रीलंका में विदेशी मुद्रा मुख्य रूप सेपर्यटन, वस्त्र और चाय निर्यात के माध्यम से अर्जित की जाती है, लेकिनमहामारी के कारण यह मुद्रा विनिमय पर व्यापार व्यापार बुरी तरह प्रभावित हुए है।
मुद्रा विनिमय समझौता(Currency Swap Arrangement- CSA)