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विदेशी मुद्रा व्यापार में एक स्वैप क्या है?

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अस्वीकरण :
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सरकार की नहीं सुन रहा रुपया, अब क्या करेंगे सरदार?

weak rupee create tension for upa government

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने घरेलू सोने के मौद्रीकरण (मोनेटाइजेशन) का सुझाव दिया है। लेकिन ज्यादातर सोना रिजर्व बैंक के बजाय पब्लिक के पास है। इसे बाजार में लाने की कोई कारगर योजना नहीं है।

सरकार की ओर से सोने को गिरवी रख रुपए की साख बचाने के कयास भी लगाए जा रहे हैं। मंदिरों, ट्रस्टों और लॉकरों में करीब 31 हजार टन सोना जमा है, जिसकी जानकारी सरकार के पास है। सोने पर आनंद शर्मा के बयान ने खलबली मचा दी है।

रुपए में आयात-निर्यात
महंगे डॉलर की मार से बचने के लिए सरकार कुछ देशों के साथ करेंसी स्वैप कर स्थानीय मुद्राओं में आयात-निर्यात को बढ़ावा दे सकती है। जापान और भूटान के साथ इस तरह की पहल हो चुकी है।

चीन भी डॉलर के बजाय अपनी मुद्रा में कारोबार का इच्छुक है। विदेश व्यापार के विशेषज्ञ अजय सहाय का कहना है कि करेंसी स्वैप से चालू खाते के घाटे को बढ़ने से रोका जा सकता है।

आईएमएफ से कर्ज
राजकोषीय और चालू खाते के घाटे से दबी सरकार डॉलर की कमी दूर करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज ले सकती है। अभी देश के विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 7-8 महीने के आयात लायक डॉलर जमा है।

अर्थशास्त्री डीएच पाई पुलंदीकर का मानना है कि आईएमएफ से 50 अरब डॉलर का कर्ज लेकर सरकार रुपए को संभाल सकती है। वर्ष 1991 के संकट में भी भारत ने आईएमएफ से 5 अरब डॉलर का कर्ज लिया था।

एनआरआई से डॉलर जुटाए
सरकार ज्यादा ब्याज का ऑफर देकर एनआरआई और विदेशी निवेशकों से डॉलर जुटा सकती है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेतों को भांपते हुए विदेशी निवेशक भारत से निवेश निकाल रहे हैं।

अमेरिकी बाजारों और डॉलर में सुधार की वजह से वहां निवेशकों को अच्छे रिटर्न की आस है, इसलिए वह उभरती अर्थव्यवस्थाओं से धन निकाल रहे हैं। सरकार को एनआरआई व सॉवरेन बॉन्ड जैसे विकल्पों को आजमाना चाहिए।

लौह अयस्क व कोयले पर पाबंदियां हटें
रुपए की कमजोरी अर्थव्यवस्था की सुस्ती से जुड़ी है। सरकार लौह अयस्क के निर्यात का रास्ता खोलकर व्यापार घाटा कम कर सकती है। इसी तरह कोयले के खनन पर लगी पाबंदियां हटाकर इसके आयात को घटाया जा सकता है। अटकी परियोजनाओं की बाधाएं दूर कर आर्थिक विकास की रफ्तार बढ़ाई जा सकती है।

शेयर बाजार में हाहाकार, गिरता रुपया और सोने की बढ़ती कीमतों ने यूपीए सरकार के सामने मुश्किलों का पहाड़ खड़ा कर दिया है।

सरकार के सिपहसलारों को यह नहीं सूझ रहा है कि इस परिस्थिति से कैसे जूझा जाए। हालांकि अब भी कुछ ऐसे विकल्प हैं जिससे इन हालातों से काफी हद तक निजात मिल सकती है।

घरेलू सोने का मौद्रीकरण
लॉकरों में बेकार पड़े सोने को बाजार में लाकर सरकार इसके आयात पर खर्च होने वाले डॉलर बचा सकती है।

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने घरेलू सोने के मौद्रीकरण (मोनेटाइजेशन) का सुझाव दिया है। लेकिन ज्यादातर सोना रिजर्व बैंक के बजाय पब्लिक के पास है। इसे बाजार में लाने की कोई कारगर योजना नहीं है।

सरकार की ओर से सोने को गिरवी रख रुपए की साख बचाने के कयास भी लगाए जा रहे हैं। मंदिरों, ट्रस्टों और लॉकरों में करीब 31 हजार टन सोना जमा है, जिसकी जानकारी सरकार के पास है। सोने पर आनंद शर्मा के बयान ने खलबली मचा दी है।

रुपए में आयात-निर्यात
महंगे डॉलर की मार से बचने के लिए सरकार कुछ देशों के साथ करेंसी स्वैप कर स्थानीय मुद्राओं में आयात-निर्यात को बढ़ावा दे सकती है। जापान और भूटान के साथ इस तरह की पहल हो चुकी है।

चीन भी डॉलर के बजाय अपनी मुद्रा में कारोबार का इच्छुक है। विदेश व्यापार के विशेषज्ञ अजय सहाय का कहना है कि करेंसी स्वैप से चालू खाते के घाटे को बढ़ने से रोका जा सकता है।

आईएमएफ से कर्ज
राजकोषीय और चालू खाते के घाटे से दबी सरकार डॉलर की कमी दूर करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज ले सकती है। अभी देश के विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 7-8 महीने के आयात लायक डॉलर जमा है।

अर्थशास्त्री डीएच पाई पुलंदीकर का मानना है कि आईएमएफ से 50 अरब डॉलर का कर्ज लेकर सरकार रुपए को संभाल सकती है। वर्ष 1991 के संकट में भी भारत ने आईएमएफ से 5 अरब डॉलर का कर्ज लिया था।

एनआरआई से डॉलर जुटाए
सरकार ज्यादा ब्याज का ऑफर देकर एनआरआई और विदेशी निवेशकों से डॉलर जुटा सकती है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेतों को भांपते हुए विदेशी निवेशक भारत से निवेश निकाल रहे हैं।

अमेरिकी बाजारों और डॉलर में सुधार की वजह से वहां निवेशकों को अच्छे रिटर्न की आस है, इसलिए वह उभरती अर्थव्यवस्थाओं से धन निकाल रहे हैं। सरकार को एनआरआई व सॉवरेन बॉन्ड जैसे विकल्पों को आजमाना चाहिए।

लौह अयस्क व कोयले पर पाबंदियां हटें
रुपए की कमजोरी अर्थव्यवस्था की सुस्ती से जुड़ी है। सरकार लौह अयस्क के निर्यात का रास्ता खोलकर व्यापार घाटा कम कर सकती है। इसी तरह कोयले के खनन पर लगी पाबंदियां हटाकर इसके आयात को घटाया जा सकता है। अटकी परियोजनाओं की बाधाएं दूर कर आर्थिक विकास की रफ्तार बढ़ाई जा सकती है।

अमेरिकी डॉलर को रौंद रही रूस-चीन की स्ट्रैटजी: पुतिन ने सस्ता तेल बेचा, जिनपिंग ने सस्ता कर्ज बांटा; भारत भी अहम किरदार

24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला करते ही रूस पर प्रतिबंधों की बाढ़ आ गई। अमेरिकी डॉलर में कारोबार न कर पाने का संकट खड़ा हो गया। रूसी करेंसी रूबल की वैल्यू धड़ाम हो गई। रूस की इकोनॉमी तबाह होने की भविष्यवाणियां होने लगीं, लेकिन पुतिन तो जैसे इसी मौके के इंतजार में थे। उन्होंने जिनपिंग के साथ एक ऐसी स्ट्रैटजी को एक्टिवेट कर दिया, जिसकी तैयारी दोनों पिछले कई सालों से कर रहे थे। ये स्ट्रैटजी दुनिया से अमेरिका डॉलर के दबदबे को खत्म कर सकती है।

भास्कर एक्सप्लेनर में हम रूस-चीन की उसी स्ट्रैटजी को आसान भाषा में जानेंगे, लेकिन उससे पहले 2 सवालों के जवाब जान लेना जरूरी है.

सवाल- 1: अमेरिकी डॉलर दुनिया की सबसे मजबूत करेंसी कैसे बन गई?

जवाबः 1944 से पहले तक ज्यादातर देश अपनी मुद्रा को सोने के मूल्य के आधार पर तय करते थे। यानी उस देश की सरकार के पास सोने का जितना भंडार है, बस उतनी ही मूल्य की करेंसी जारी करते थे।

1944 में न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स में दुनिया के विकसित देश मिले और उन्होंने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सभी मुद्राओं की विनिमय दर यानी करेंसी एक्सचेंज रेट को तय किया, क्योंकि उस वक्त अमेरिका के पास सबसे ज्यादा सोने का भंडार था।

1944 से ही अमेरिकी डॉलर दुनिया के विदेशी मुद्रा भंडार पर राज कर रहा है। (फाइल फोटो)

इसका असर एक छोटे से उदाहरण से समझिए। मान लीजिए भारत को पाकिस्तान की करेंसी पर भरोसा नहीं है। वो उससे डॉलर में कारोबार कर सकता था, क्योंकि उसे पता था कि अमेरिकी डॉलर डूबेगा नहीं और जरूरत पड़ने पर अमेरिका डॉलर के बदले सोना दे देगा।

ये व्यवस्था करीब 3 दशक चली। 1970 की शुरुआत में कई देशों ने डॉलर के बदले सोने की मांग शुरू कर दी। ये देश अमेरिका को डॉलर देते और उसके बदले में सोना लेते थे। इससे अमेरिका का स्वर्ण भंडार खत्म होने लगा।

1971 में अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने डॉलर को सोने से अलग कर दिया। इसके बावजूद देशों ने डॉलर में लेन-देन जारी रखा, क्योंकि तब तक डॉलर दुनिया की सबसे सुरक्षित मुद्रा बन चुका था।

1971 में अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने डॉलर को सोने से अलग कर दिया। इसके बावजूद देशों ने डॉलर में लेन-देन जारी रखा, क्योंकि तब तक डॉलर दुनिया की सबसे सुरक्षित मुद्रा बन चुका था।

डॉलर की मजबूती की एक बड़ी वजह थी। दरअसल 1945 में अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने सऊदी के साथ एक करार किया। करार की शर्त ये थी कि उसकी सुरक्षा अमेरिका करेगा और बदले में सऊदी सिर्फ डॉलर में तेल बेचेगा। यानी अगर देशों को तेल खरीदना है, तो उनके पास डॉलर होना जरूरी है।

फिलहाल दुनिया का 80% व्यापार डॉलर में होता है और दुनिया का करीब 60% विदेशी मुद्रा भंडार डॉलर में है।

सवाल- 2: डॉलर की पावर के दम पर अमेरिका बैठे-बिठाए कैसे अरबों कमाता है?

जवाबः SWIFT नेटवर्क के विदेशी मुद्रा व्यापार में एक स्वैप क्या है? दम पर अमेरिका बैठे-बिठाए अरबों कमाता है। मान लीजिए अडाणी ग्रुप को पाकिस्तान के किसी कारोबारी से 10 हजार डॉलर की सूरजमुखी खरीदना है। SWIFT नेटवर्क के जरिए ये ट्रांजैक्शन 5 स्टेप में होगा…

स्टेप-1: सबसे पहले अडाणी ग्रुप अपने भारतीय बैंक को 10 हजार डॉलर के बराबर भारतीय रुपए भेजेगा।

स्टेप-2: भारतीय बैंकों का अमेरिकी बैंक में खाता होता है। वहां से वो डॉलर में एक्सचेंज करके पेमेंट करने को कहेंगे।

स्टेप-3: भारतीय खाते वाला अमेरिकी बैंक दूसरे पाकिस्तानी खाते वाले अमेरिकी बैंक में पैसा ट्रांसफर करेगा।

स्टेप-4: दूसरा अमेरिकी बैंक पाकिस्तानी बैंक में पैसे ट्रांसफर कर देगा।

स्टेप-5: पाकिस्तानी बैंक से कारोबारी 10 हजार डॉलर के बराबर पाकिस्तानी रुपए निकाल सकता है।

SWIFT नेटवर्क में फिलहाल 200 से ज्यादा देशों के 11,000 बैंक शामिल हैं। जो अमेरिकी बैंकों में अपना विदेशी मुद्रा भंडार रखते हैं। अब सारा पैसा तो व्यापार में लगा नहीं होता, इसलिए देश अपने एक्स्ट्रा पैसे को अमेरिकी बॉन्ड में लगा देते हैं, जिससे कुछ ब्याज मिलता रहे। सभी देशों को मिलाकर ये पैसा करीब 7 ट्रिलियन डॉलर है। यानी भारत की इकोनॉमी से भी दोगुना ज्यादा। इस पैसे का इस्तेमाल अमेरिका अपनी ग्रोथ में करता है।

अब आते हैं अपने प्रमुख सवाल पर। यानी डॉलर के दबदबे को कम करने के लिए चीन-रूस की स्ट्रैटजी क्या है? सबसे पहले बात रूस की.

रूस के राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग ब्रासीलिया की एक बैठक में साथ-साथ मौजूद।

रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल और गैस का उत्पादन करने वाला देश है और उसके सबसे बड़े खरीदार यूरोपीय देश हैं। रूस ने प्राकृतिक गैस खरीदने वाले यूरोपीय संघ के देशों से कहा कि वो डॉलर या यूरो के बजाय बिल का भुगतान रूबल में करें।

यानी जो देश पहले रूस से गैस खरीदने के लिए अमेरिकी बैंक में डॉलर रिजर्व रखते थे, उन्हें अब रूसी सेंट्रल बैंक में रूबल रिजर्व रखना पड़ रहा है। इसी तरह बाकी चीजों के निर्यात के लिए भी रूस अनफ्रेंडली देशों से रूबल में पेमेंट करने की मांग कर रहा है।

जून 2022 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने BRICS देशों की करेंसी का एक नया इंटरनेशनल रिजर्व बनाने की बात कही थी। पुतिन के इस प्रपोजल पर फिलहाल विचार किया जा रहा है। BRICS देशों में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका हैं।

डॉलर को युआन से रिप्लेस करने के लिए चीन की कोशिशें

SWIFT की ही तरह चीन के सेंट्रल बैंक पीपल्स बैंक ऑफ चाइना ने CIPS नाम का सिस्टम बनाया है। इस पेमेंट सिस्टम से करीब 103 देशों के 1300 बैंक जुड़ चुके हैं। पिछले साल इस सिस्टम के विदेशी मुद्रा व्यापार में एक स्वैप क्या है? जरिए 80 ट्रिलियन युआन (चीन की करेंसी) से ज्यादा का ट्रांजैक्शन हुआ। जनवरी 2022 में युआन दुनिया में चौथी सबसे ज्यादा ट्रांजैक्शन वाली करेंसी बन गई। उससे आगे सिर्फ US डॉलर, यूरो और ब्रिटिश पाउंड थे।

युआन रिजर्व को बढ़ावा देने के लिए चीन ने 40 से ज्यादा देशों के साथ करेंसी स्वैप एग्रीमेंट किया है। इस एग्रीमेंट के तहत 2 देशों को व्यापार करने कि लिए हर बार SWIFT सिस्टम की जरूरत नहीं। एक फिक्स अमाउंट का ट्रेड वो देश अपनी करेंसी में कर सकते हैं।

इसके अलावा सऊदी अरब से भी युआन में तेल बेचने की बात हो रही है। यानी जो देश तेल खरीदने के लिए अभी डॉलर रिजर्व रखते हैं, वो युआन में रिजर्व रखेंगे। इससे डॉलर का दबदबा कम होगा।

रूस-चीन की इस कोशिश में भारत का किरदार

डॉलर के दबदबे को कम करने की चीन-रूस की कोशिश में भारत भी एक किरदार निभा रहा है। यूक्रेन जंग शुरू होने के बाद भारत और रूस ने डॉलर को दरकिनार करते हुए रुपए और रूबल में आपसी कारोबार शुरू किया।

14 सितंबर को फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन के प्रेसिडेंट ए. शक्तिवेल ने कहा है कि भारत ने रूस के साथ रुपए में कारोबार के लिए SBI को आथोराइज किया है। 7 सितंबर को रिजर्व बैंक और फाइनेंस मिनिस्ट्री ने बैंक से इंपोर्ट और एक्सपोर्ट ट्रांजैक्शन को रुपए में करने का बढ़ावा देने की बात कही थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक इससे रुपए को मजबूती मिलेगी।

आर्टिकल में आगे बढ़ने से पहले एक पोल पर हम आपकी राय जानना चाहते हैं.

आगे का रास्ता.

एक्सपर्ट्स का मानना है कि डॉलर के दबदबे को कम करने के लिए चीन और रूस की कोशिशें नुकसान तो पहुंचा रहीं, लेकिन बड़ा इम्पैक्ट आने में काफी वक्त लगेगा। डॉलर के खिलाफ इस अभियान में रूस और चीन को दूसरे देशों के साथ की दरकार है।

हालांकि, एक्सपर्ट्स युआन को डॉलर की जगह फिट नहीं पाते। इसकी सबसे बड़ी वजह चीन की सरकार है। यहां लोकतंत्र नहीं है, जिस वजह से इंस्टीट्यूशन में ट्रांसपेरेंसी भी नहीं है। कोई भी देश ऐसी किसी करेंसी को रिजर्व नहीं रखना चाहेगा, जिसके डूबने का खतरा ज्यादा हो।

References…

ऐसे ही नॉलेज बढ़ाने वाले एक्सप्लेनर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं.

भारतीय रुपया (INR) और थाई बात (THB) मुद्रा विनिमय दर रूपांतरण कैलक्यूलेटर

कृपया मदद इस साइट पर पाठ में सुधार . यह अंग्रेजी से किया गया है मशीन अनुवाद और अक्सर कुछ मानव ध्यान देने की जरूरत है.

थाई तटवर्ती बात (THB) हर रोज मुद्रा थाईलैंड में माल और सेवाओं की खरीद करने के लिए इस्तेमाल किया है. थाई सरकार मुद्रा व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया है, अन्य देशों के साथ मुद्रा अटकलें को सीमित करने के लिए. अपतटीय बैंक (थाईलैंड के बाहर बैंकों) THB विदेशी मुद्रा के साथ आदान - प्रदान नहीं कर सकते हैं. वे बजाय थाई अपतटीय बात (यद्यपि) के लिए आदान - प्रदान करना चाहिए. अपतटीय बात थाई सरकार ने लगाया है.

यह भारतीय रुपया और थाई बात कनवर्टर तिथि करने के लिए निर्भर है विनिमय दर जा के साथ 22 नवंबर 2022.

के बाईं ओर बॉक्स में परिवर्तित किया जा राशि दर्ज करें भारतीय रुपया. "स्वैप मुद्राओं" बनाने का प्रयोग करें थाई बात डिफ़ॉल्ट मुद्रा. पर क्लिक करें थाई बात या भारतीय रूपया कि मुद्रा और सभी अन्य मुद्राओं के बीच कनवर्ट.

भारतीय रुपया मुद्रा में भारत (में, इंडस्ट्रीज़). थाई बात मुद्रा में थाईलैंड (वें, था). थाई बात के रूप में भी जाना जाता है Bahts, और तटवर्ती बात. के लिए प्रतीक INR लिखा जा सकता है Rs, और IRs. के लिए प्रतीक THB लिखा जा सकता है Bht, और Bt. भारतीय रुपया में विभाजित है 100 paise. थाई बात में विभाजित है 100 stang. एक्सचेंज के लिए दर भारतीय रुपया अंतिम बार पर अद्यतन 21 नवंबर 2022 से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष. एक्सचेंज के लिए दर थाई बात अंतिम बार पर अद्यतन 21 नवंबर 2022 से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष. INR रूपांतरण कारक है 6 महत्वपूर्ण अंक. THB रूपांतरण कारक है 6 महत्वपूर्ण अंक. रुपए की बड़ी मात्रा लाख रुपए या करोड़ रुपए में व्यक्त कर रहे हैं. एक लाख रुपया एक लाख रुपए और एक करोड़ रुपए के दस लाख रुपये है.

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[Sansar Editorial] भारत और जापान के बीच करेंसी स्वैप करार – समझौते का महत्त्व


भारत और जापान ने 29 अक्टूबर, 2018 के बीच 75 अरब डॉलर के बराबर विदेशी मुद्रा की अदला-बदली (currency swap) की व्यवस्था पर समझौता हुआ. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि यह करार भारतीय रुपये की विनिमय दर और पूँजी बाजार में स्थिरता बनाए रखने में सहायक सिद्ध होगा.

sansar_editorial

The Indian Express Editorial – “Explained: Where India, Japan ties stand now and what is planned for the future.”

समझौते का आर्थिक महत्त्व

  • विदित हो कि भारत ने जापान के साथ 75 अरब डॉलर का मुद्रा अदला-बदली (currency swap) समझौता किया है. इस समझौते के अनुसार दोनों देश अब 75 अरब डॉलर तक के बराबर राशि का भुगतान आपसी मुद्रा में, यानी भारतीय रुपये या जापानी येन में कर सकेंगे. कहा जा रहा है कि इस समझौते के द्वारा भारत में गिरते रुपये के मूल्य और पूंजी बाज़ार की अस्थिरता को में सँभालने में मदद मिलेगी. भारत और जापान के मध्य टु-प्लस-टु संवाद को लेकर भी सहमति बन गई है.
  • इस महत्त्वपूर्ण भेंट में दोनों देशों ने एशिया-प्रशांत में साझी रणनीति और चीन के विस्तार नीति पर खुल कर चर्चा की.
  • 5-G लैब निर्मित करने के लिए टेक महिंद्रा और रॉकटेन के बीच करार हुआ.
  • दोनों देशों ने योग और आयुर्वेद में सहयोग करने का वादा किया.

इस समझौते का रणनीतिक महत्त्व

  • एशिया-प्रशांत में चीन की बढ़ती ताकत और सैन्य हस्तक्षेप को लेकर भारत और जापान दोनों देश चिंतित हैं. उधर अमेरिका भी चीन की विस्तारवादी नीति को लेकर अत्यंत सजग है.
  • भारत सरकार भी Act East Policy के अंतर्गत दक्षिणी-पूर्वी एशिया और पूर्वी एशिया से संबंधों को दृढ़ बनाना चाहती है. जापान के सन्दर्भ में भारत के भरोसे का अनुमान सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि केवल जापान को ही भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में निवेश करने की अनुमति प्राप्त है.
  • वर्तमान में जापान की दो अवसंरचनात्मक परियोजनाएँ, मेघालय और मिजोरम में चल रही हैं. इस समझौते से आपस रिश्ते मजबूत होने के बाद इस सूची में और अधिक परियोजनाओं के जोड़े जाने की संभावना है.
  • भारतीय और जापानी सेनाओं के मध्य पहला सैन्य अभ्यास ‘धर्मा गार्डियन‘ अगले मास ही आरम्भ होने जा रहा है. यह अभ्यास पू्र्वोत्तर भारत में सम्पन्न होगा.
  • वित्तीय वर्ष 2016-17 में भारत और जापान के मध्य केवल 13.61 अरब डॉलर का व्यापार हुआ इसलिए यह कहा जा सकता है कि इन दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्तों में अभी भी बहुत कुछ किया जाना शेष है.

जापान Vs चीन

  • जापान और चीन के बीच रिश्ते अच्छे नहीं रहे हैं. हालिया सर्वेक्षण के अनुसार केवल 11% जापानी चीन के लिए सकारात्मक मत रखते हैं और दूसरी तरफ मात्र 14% चीनी जापान देश के बारे में अच्छे राय रखते हैं.
  • 1931 में जापान ने चीन के मंचूरिया पर आक्रमण किया था. यह आक्रमण उस विस्फोट का बदला था जो जापानी नियंत्रण वाले रेलवे लाइन के निकट हुआ था. इसी बीच जापानी सैनिकों के विरुद्ध चीनी सैनिक टिक नहीं पाए और अंततः जापान ने चीन के कई इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया.
  • उसके बाद से जापान चीन पर अपनी पकड़ मजबूत बनाता रहा. दूसरी तरफ चीन कम्युनिस्टों एवं राष्ट्रवादियों के गृह युद्ध से स्वयं परेशान था.
  • कई जापानियों को यह आपत्ति है कि चीन में जापान के इस आक्रमण को वहाँ की स्कूली टेक्स्ट बुक में बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है.
  • दूसरे विश्व युद्ध के बाद सब शांत पड़ गया और चीन अब सैन्य ताकत के मामले में काफी तीव्र गति से आगे निकल रहा है.

जापान-भारत-चीन

  • जापान और भारत दोनों देशों का चीन से रिश्ता कभी भी अच्छा नहीं रहा है. जापान और भारत का विदेशी मुद्रा व्यापार में एक स्वैप क्या है? चीन से व्यापारिक हित ही वह कारक मात्र है जिसके चलते ये दोनों देश और खुद चीन भी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. पर दोनों देश समान रूप से चीन की महत्वाकांक्षी योजना One Belt One Road का पुरजोर विरोध करते आये हैं
  • भारत का चीन के साथ सीमा-विवाद तो जगजाहिर है. दूसरी तरफ जापान का भी चीन के साथ समुद्री विवाद है. दक्षिण चीन सागर में जापान द्वारा युद्धपोत और हेलिकॉप्टर कैरियर JS Kaga तैनात किया गया है जो अमरीकी सैन्य बेड़े का सहयोग देता है.
  • जापान का अफ़्रीकी देश जिबूती में अपना नौसैनिक बेस है. यह पश्चिमी देशों और भारत के लिए महत्त्वपूर्ण है. भारतीय प्रधानमंत्री ने इस दौरे में जापान के सामने एक दूसरे की सैन्य सुविधाओं के प्रयोग पर भी समझौता करने का प्रस्ताव रखा है.
  • भारत का अनुमान है कि जापान से मित्रता विपरीत स्थिति में काम आ सकती है. रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद तीन बार जापान जा चुके हैं और जापानी प्रधानमंत्री भी 2014, 2015 एवं 2017 में भारत आ चुके हैं. 2005 के बाद से दोनों देशों के प्रमुख लगभग प्रत्येक वर्ष मिलते रहे हैं.

विश्लेषण

आज भारत-जापान के बीच करीब 13 से 15 अरब डॉलर का व्यापार होता है जो चीन के साथ होने वाले व्यापार का एक चौथाई हिस्सा है. जबकि जापान-चीन का व्यापार लगभग 300 अरब डॉलर का है. जापान, भारत के लिए सबसे बड़ा दानकर्ता देश है और FDI प्रदान करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश भी है. हालाँकि 2013 से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में लगातार गिरावट आई है.

दोनों देशों ने उत्तर कोरिया के परमाणु परीक्षण और दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती गतिविधि के चलते इस क्षेत्र में बढ़ते तनाव को देखते हुए रक्षा संबंधों को मजबूत करने का निर्णय लिया है.

हाल ही में कनेक्टिविटी निर्माण के लिए एक अन्य प्रमुख पहल के तौर पर एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर का अनावरण किया गया. इस पहल के तहत जापान ने 30 बिलियन डॉलर और भारत ने 10 बिलियन डॉलर का योगदान दिया है. इसे लाभप्रद बनाने के लिए भारत को विदेशों में परियोजनाओं को लागू करने की अपनी शैली में बदलाव लाने की आवश्यकता है. भारत इस प्रकार की अधिकांश परियोजनाएँ लागत और पूरा करने में अधिक समय लेने जैसी समस्याओं से ग्रस्त है.

Tags: भारत और जापान के बीच क्या समझौते हुए? 2018 meeting Modi highlights. Japan and India currency swap explained. समझौते agreement का सामरिक, रणनीतिक महत्त्व in Hindi.

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