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राशन गाड़ी से उतारा जा रहा है | प्रतीकात्मक तस्वीर | प्रभाकर मणि तिवारी

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14 फसलें और भगवान पर भरोसा- मोदी सरकार की तरफ से MSP में ताजा वृद्धि क्यों पूरी तरह उम्मीदों पर टिकी है

सरकार ने बुधवार को 14 फसलों के समर्थन मूल्य में औसतन 6 फीसदी की बढ़ोतरी की है, जो चार साल में सबसे अधिक है.

राशन गाड़ी से उतारा जा रहा है | प्रतीकात्मक तस्वीर | प्रभाकर मणि तिवारी

नई दिल्ली: किसानों के लिए भारत की ताजा मूल्य समर्थन नीति के संदर्भ में आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि इसमें यूक्रेन युद्ध के बाद बढ़ती कृषि लागत और बढ़ती खाद्य कीमतों को प्रतिबिंबित करने की तुलना में उपभोक्ता मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने पर अधिक जोर दिया गया है.

नरेंद्र मोदी सरकार ने बुधवार को जून से अक्टूबर खरीफ सीजन के दौरान बुआई वाली अनाज, दलहन, तिलहन और कपास सहित 14 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा की है. औसतन, समर्थन मूल्य 6 प्रतिशत तक बढ़ाया गया है, जो चार वर्षों में सबसे अधिक है. लेकिन चुनाव पूर्व वर्ष 2018 के दौरान घोषित बढ़ोतरी (लगभग 13-20 प्रतिशत) की तुलना में काफी कम है.

इस वर्ष एमएसपी में औसत वृद्धि बीज, खाद, श्रम और ऊर्जा की उच्च लागत के कारण अनुमानित उत्पादन लागत में 6.8 प्रतिशत की वृद्धि के लिहाज से कम है. इसके अलावा, तिलहन और कपास की कई किस्मों के लिए घोषित एमएसपी मौजूदा बाजार मूल्यों की तुलना में काफी कम है, जिससे समर्थन मूल्य बेमानी हो गया है.

दिप्रिंट ने जिन विशेषज्ञों से बातचीत की उनके मुताबिक, नई एमएसपी व्यवस्था में किसानों को मुख्य अनाज वाली फसल चावल अधिक उगाने को प्रोत्साहित करने के उपाय भी कम ही किए गए हैं, खासकर ऐसे समय पर जब गेहूं की खरीद प्रभावित हुई है. तिलहन के मामले में, जिसमें भारत काफी हद तक आयात पर निर्भर है, किसानों से बाजार को समझने और उपज बढ़ाने की अपेक्षा की गई है.

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अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के नई दिल्ली स्थित कार्यालय के रिसर्च फेलो अविनाश किशोर ने कहा कि धान के एमएसपी में 5.2 फीसदी की मामूली वृद्धि चिंताजनक रूप से अपर्याप्त है. किशोर ने कहा, ‘किसानों को अधिक धान की बुआई और चावल उत्पादन बढ़ाने के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं दिया है, जबकि गेहूं की आपूर्ति घटने के आसार हैं और मानसून को लेकर कुछ अनिश्चितता बनी हुई है.’

उन्होंने कहा, ‘याद रखें कि चावल की एक अलग ही अहमियत है. चावल के लिए दुनिया भारत पर निर्भर है.’

मार्च में रिकॉर्ड तोड़ हीटवेव के बाद 2022 में भारत की गेहूं की फसल कई सालों के निचले स्तर पर होने का अनुमान है, जिसने सरकार को पिछले महीने निर्यात पर प्रतिबंध लगाने और खाद्य सब्सिडी योजनाओं के तहत वितरित किए जाने वाले गेहूं के एक हिस्से को चावल से बदलने के लिए प्रेरित किया है. गेहूं के विपरीत, जहां मुकाबला बराबरी का होता है, भारत वैश्विक स्तर पर चावल के व्यापार में मात्रा के संदर्भ में करीब 40 प्रतिशत का योगदान देता है.

उपभोक्ता खाद्य मुद्रास्फीति अप्रैल में बढ़कर 8.4 प्रतिशत के उच्च स्तर पर पहुंच गई थी, जबकि थोक कीमतों में मुद्रास्फीति 27 साल के उच्च स्तर 15 प्रतिशत पर आ गई. लेकिन एमएसपी में यह मामूली वृद्धि खाद्य मुद्रास्फीति को काबू में लाने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकती. ऐसा इसलिए क्योंकि मुद्रास्फीति का एक पहलू घरेलू कारणों से परे है. खाद्य तेलों, ईंधन और प्राकृतिक गैस के आयात पर उच्च निर्भरता उपभोक्ता मूल्यों को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाती है.

‘बदलता ग्राफ बना मूल्य नीति एमएसपी तय करने का आधार’

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, दिल्ली में अर्थशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर हिमांशु ने कहा कि जिंसों की कीमतें बढ़ने के बावजूद समर्थन मूल्यों में मामूली वृद्धि बस उम्मीद और भगवान के भरोसे पर टिकी हुई है.

हिमांशु ने कहा, ‘उम्मीद है कि समर्थन मूल्य कम रखने से खाद्य महंगाई पर काबू पाया जा सकता है. और भगवान से प्रार्थना यही कि मानसून मददगार साबित हो. समस्या यह है कि सरकार को कहीं गेहूं जैसी स्थिति का सामना न करना पड़ जाए, जिसमें एमएसपी बाजार मूल्य से कम होने की वजह से खरीद में तेज गिरावट के आसार हैं..’

हिमांशु के अनुसार, ताजा समर्थन मूल्य नीति घोषणा यह साबित करती है कि एमएसपी के फैसले असरकारक नहीं हैं और ‘महंगाई का बदलता ग्राफ’ इसका आधार है.

उदाहरण के तौर, पर कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) की तरफ से खरीफ मूल्य नीति रिपोर्ट—जो एमएसपी घोषित करने का आधार होती है, को 31 मार्च को अंतिम रूप दिया गया था यानी रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला किए जाने के एक महीने से अधिक समय बाद. इस जंग ने वैश्विक स्तर खाद्य बाजारों को प्रभावित किया है और सभी जगह कीमतों में वृद्धि की वजह बनी है. फिर मूल्य नीति भी अक्टूबर में खरीफ फसलों की कटाई के बाद प्रभावी होने वाली सीएसीपी रिपोर्ट में इस युद्ध के प्रभाव और इसकी वजह से वैश्विक स्तर पर खाद्य और ऊर्जा की कीमतों में हुई वृदधि पर गौर नहीं किया गया है.

रेटिंग और शोध फर्म क्रिसिल लिमिटेड के निदेशक पूषन शर्मा ने कहा कि खरीफ मूल्य नीति का 14 में से दो फसलों को छोड़कर बाकी किसी पर कोई असर नहीं पड़ता है. उन्होंने कहा, ‘पिछले तीन सालों में केवल धान और कपास की ही कुछ सार्थक खरीद दिखी है (कुल उत्पादन का क्रमशः 45 प्रतिशत और 27 प्रतिशत). चूंकि कपास के लिए मौजूदा बाजार मूल्य समर्थन मूल्य से मूल्य नीति काफी अधिक है, इसलिए किसान केवल धान के एमएसपी से प्राइस सिग्नल लेंगे.

एक दशक में एमएसपी में वार्षिक बढ़ोतरी के आंकड़ों से पता चलता है कि 2018 में धान के समर्थन मूल्य में 13 प्रतिशत की सबसे तेज वृद्धि हुई है. उस समय किसानों—जो भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा हैं—के लिए 2019 के आम चुनावों के लिए मतदान से पहले यह आखिरी खरीफ फसल थी.

बहुत संभावना है कि सरकार 2024 में आम चुनाव से कुछ महीने पहले 2023 में समर्थन मूल्यों में एक मूल्य नीति और तेज वृद्धि की घोषणा करेगी.

हिमांशु ने आगाह किया, ‘यह खाद्य नीति पर चुनावी राजनीति के भारी पड़ने का मामला है. और अनाज के मामले में किसी तरह की देरी भारत के लिए महंगी साबित हो सकती है.’

प्रवर्तन निदेशालय

Swachh Bharat

भारत सरकार के एक प्रमुख वित्तीय जांच एजेंसी के रूप में, प्रवर्तन निदेशालय, भारत के संविधान और विधियों के कठोर अनुपालन के साथ कार्य करता है और सभी विधिक प्राधिकारियों के मार्ग दर्शन का सम्मान करता है। हम उच्च व्यावसायिक मानक एवं विश्वसनीयता को स्थापित करने एवं उसे बनाये रखने का प्रयत्न करते है। इन मानको के लिए निम्नलिखित प्रकार से हमारे आधारभूत मूल्यों के प्रति निष्ठा आवश्यक हैः-

सत्यनिष्ठा : निम्नलिखित द्वारा प्रदर्शित सत्य‍निष्ठा हमारी आधारभूत आवश्यकता है

नैतिक सिद्धांत, इमानदारी एवं सच्चाई की मजबूती

व्यक्तिगत आचरण एवं चरित्र के उच्च मानक

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  • उन सभी कार्यों के लिए हमारा उपयोग करने की मांग करता है जिनके लिए हमारा उत्तरदायित्व है
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Niti Aayog on MSP: एमएसपी जारी रखी जाए या नहीं, नीति आयोग के सदस्य ने दिया सुझाव, डीपीपी को लेकर आगाह भी किया

MSP issue in India कृषि फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को जारी रखा जाए या नहीं इस बार बहसें होती रहती है। इस मसले पर विशेषज्ञों के विचार भी सामने आते रहते हैं। नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने भी इस पर अपनी राय साझा की है।

नई दिल्ली, पीटीआइ। नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा है कि कृषि फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तब तक जारी रहना चाहिए जब तक कि बाजार प्रतिस्पर्धी ना हो जाए। हालांकि उन्होंने इसे फसल खरीद के तौर पर देने के बजाए अन्य माध्यमों से देने की वकालत की। नेशनल स्टाक एक्सचेंज (एनएसई) और आइसीआरआइईआर द्वारा कृषि बाजारों के संदर्भ में संयुक्त रूप से आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए रमेश चंद ने कहा कि डेफिसिएंसी प्राइसिंग पेमेंट (डीपीपी) किसानों को एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य नीति मूल्य) देने का एक साधन हो सकता है।

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डीपीपी को लेकर किया आगाह

हालांकि उन्होंने आगाह किया कि एक बार डीपीपी लागू होने के बाद इसे रोका नहीं जा सकता है। डीपीपी के तहत खुले बाजार मूल्य और एमएसपी के बीच का अंतर किसानों को मूल्य नीति दिया जाता है। मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में इसे लागू किया गया है। एमएसपी न्यूनतम समर्थन मूल्य है, जिस पर सरकार खरीद करती है। 22-23 फसलों के लिए एमएसपी तय है। चावल और गेहूं बड़े पैमाने पर सरकार द्वारा खरीदी जाने वाली फसलें हैं।

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कुछ मामलों में एमएसपी ठीक

सरकारी थिंक टैंक के सदस्य ने कहा कि कुछ मामलों में एमएसपी ठीक है। महत्वपूर्ण यह है कि हम इसे देते कैसे हैं। उन्होंने कहा कि एमएसपी को डीपीपी पद्धति के माध्यम से दिया जा सकता है और इस पर उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक प्रस्तुति दी है। उनके मुताबिक खुले बाजार और एमएसपी के बीच का अंतर लगभग 12 से 15 प्रतिशत है।

मत्स्य पालन, डेयरी और पशुधन में बढ़ रही किसानों की दिलचस्‍पी

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नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने यह भी कहा कि न्यूनतम सरकारी हस्तक्षेप वाले कृषि के संबद्ध क्षेत्र मत्स्य पालन, डेयरी और पशुधन सबसे तेज गति से बढ़ रहे हैं। पिछले आठ वषरें में मत्स्य पालन में 10 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। इसी तरह डेयरी और पशुधन क्षेत्र ने भी बेहतर प्रदर्शन किया है। गैर एमएसपी फसलें और बागवानी फसलें दूसरों की तुलना में बहुत तेजी से बढ़ हैं।

उत्पादन बाद की चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार उठा रही कई कदम

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समाचार एजेंसी पीटीआइ के मुताबिक कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा है कि कृषि क्षेत्र में उत्पादन बाद की चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। तोमर ने कहा कि सरकार ने अब तक लगभग 1,000 थोक मंडियों को इलेक्ट्रानिक राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-एनएएम) से जोड़ा है। इतना ही नहीं कृषि इन्फ्रा फंड के तहत 13,000 परियोजनाओं के लिए 9,500 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं और इनकी स्थापना के लिए प्रोत्साहित किया है।

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