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अमरीकी डालर के व्यापार

अमरीकी डालर के व्यापार
वित्त मंत्रालय ने अपनी नवीनतम मासिक आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में रेखांकित किया कि, अमरीकी डालर के व्यापार भारत का CAD (जिसका अर्थ है आयात और निर्यात के बीच कमी) 2022-23 में बिगड़ने की उम्मीद है अगर परिस्थिति ऐसी ही बनी रहती है तो। जुलाई को सोने पर आयात शुल्क 10.75 प्रतिशत से बढ़ाकर 15.0 प्रतिशत कर दिया, क्योंकि भारत सोने का बड़ा आयातक है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI) विभिन्न कारणों से पिछले नौ से दस महीनों से भारतीय बाजारों में इक्विटी बेच रहे हैं, जिसमें उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीति का कड़ा होना और अमेरिका में डॉलर और बॉन्ड यील्ड में बढ़ोतरी शामिल है। एनएसडीएल के आंकड़ों से पता चलता है कि उन्होंने 2022 में अब तक 237,540 करोड़ रुपये निकाले हैं।

अमरीका से निर्यात की चिंताएं

इस समय देश और दुनिया के अर्थविशेषज्ञ यह कहते हुए दिखाई दे रहे हैं कि पांच जून से अमरीका द्वारा भारत को सामान्य तरजीही व्यवस्था (जनरलाइज सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस-जीएसपी) के तहत दी जा रही आयात शुल्क रियायतें खत्म कर दिए जाने का कदम अमरीका के विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के तहत स्वीकार दायित्वों के खिलाफ है। वैश्विक कारोबार विशेषज्ञों का कहना है कि अमरीका का भारतीय निर्यात को उपलब्ध प्रोत्साहनों को वापस लेने का फैसला वैश्विक व्यापार नियमों का उल्लंघन है। पांच जून से भारत का जीएसपी दर्जा वापस लेते समय डोनाल्ड ट्रंप ने अमरीकी कांग्रेस (अमरीका की संसद) के 25 सांसदों के उस अनुरोध को भी नजरअंदाज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि भारत को व्यापार में जीएसपी के तहत दी जा रही शुल्क मुक्त आयात की सुविधा को समाप्त न करते हुए आगे भी जारी रखा जाना चाहिए। इन सांसदों ने कहा था कि जीएसपी भारत के साथ-साथ अमरीका के लिए भी लाभप्रद है। इस व्यवस्था से अमरीका में निर्यात और आयात पर निर्भर नौकरियां सुरक्षित बनी रहेंगी। इस व्यवस्था के खत्म होने से वे अमरीकी कंपनियां प्रभावित होंगी, जो भारत में अपना निर्यात बढ़ाना चाहती हैं। अमरीकी सांसदों के इस आग्रह को न मानते हुए ट्रंप ने कहा कि पांच जून से भारत को प्राप्त लाभार्थी विकासशील देश का दर्जा समाप्त करना बिलकुल सही है। ज्ञातव्य है कि जीएसपी व्यवस्था के तहत अमरीका विकासशील लाभार्थी देश के उत्पादों को अमरीका में बिना आयात शुल्क प्रवेश की अनुमति देकर उसके आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है। इसी परिप्रेक्ष्य में भारत को वर्ष 1976 से जीएसपी व्यवस्था के तहत करीब 2000 उत्पादों को शुल्क मुक्त रूप से अमरीका में भेजने की अनुमति मिली हुई थी। अमरीका से मिली व्यापार छूट के तहत भारत से किए जाने वाले करीब 5.6 अरब डालर यानी 40 हजार करोड़ रुपए के निर्यात पर कोई शुल्क नहीं लगता था। आंकड़े बता रहे हैं कि जीएसपी के तहत तरजीही के कारण अमरीका को जितने राजस्व का नुकसान होता है, उसका एक-चौथाई भारतीय निर्यातकों को प्राप्त होता था। गौरतलब है कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बार-बार कहा कि भारत के साथ आयात शुल्क रियायतों पर व्यापार एक मूर्खतापूर्ण कारोबार है। इसी परिप्रेक्ष्य में पिछले मई माह में अमरीका के वाणिज्य मंत्री विल्बर रॉस अमरीका की 100 कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ भारत आए और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वाणिज्य व उद्योगमंत्री सुरेश प्रभु सहित व्यापार संगठनों से उच्च स्तरीय बातचीत करके भारत द्वारा अमरीकी उत्पादों पर लगाए जा रहे अधिक आयात शुल्क पर जोरदार आपत्ति प्रस्तुत की। रॉस ने कहा कि भारत का औसत आयात शुल्क 13.8 फीसदी है। यह बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ज्यादा है। आयात शुल्क बाधाओं के कारण ही भारत अभी अमरीका का 13वां बड़ा एक्सपोर्ट मार्केट है, जबकि भारत का सबसे ज्यादा निर्यात अमरीका को होता है। स्थिति यह है कि 2018 में अमरीका का कुल व्यापार घाटा 621 अरब डालर रहा, जिसमें से भारत के साथ उसका व्यापार घाटा 21 अरब डालर रहा। ऐसे में अमरीका भारत सहित उन विभिन्न देशों में अमरीकी सामान के निर्यातों में आ रही नियामकीय रुकावटों को दूर करना चाहता है, ताकि अमरीका के व्यापार घाटे में कमी आ सके। उल्लेखनीय है कि पांच जून से भारत के लिए जीएसपी के तहत आयात शुल्क खत्म करने से पहले अमरीका ने भारत से कई कारोबार रियायतें प्राप्त करना चाही थीं। अमरीका द्वारा भारत से व्यापार में मांगी जा रही छूट उसके द्वारा जीएसपी वापस लिए जाने से भारत को होने वाले राजस्व नुकसान की तुलना में काफी ज्यादा थी। अमरीका भारत से कई और कारणों से भी नाराज था। अमरीकी सरकार ने अपने चिकित्सा उपकरण निर्माताओं एवं डेयरी उद्योग की ओर से भारत के खिलाफ की गई इस शिकायत पर भी ध्यान दिया कि भारत उनके उत्पादों को भारत में आने से तरह-तरह से प्रतिबंधित कर रहा है। अमरीका ने भारत द्वारा चिकित्सा उपकरणों पर निर्धारित की गई कीमत सीमा का भी विरोध किया था। इसके साथ ही भारत द्वारा रूस के साथ पिछले दिनों किए गए रक्षा सौदों पर अमरीका ने भारी नाराजगी जाहिर की थी। निस्संदेह अमरीका द्वारा भारत का तरजीही प्राप्त दर्जा खत्म किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। भारत का कहना है कि उसके राष्ट्रीय हित व्यापार के मामले में सर्वोच्चता रखते हैं।

अमरीकी डालर के व्यापार

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अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 80 पर… चलो देखते है कमजोर मुद्रा के कुछ फायदे और नुकसान …

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नई दिल्ली : इस सप्ताह भारतीय रुपया पहली बार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 80 के स्तर से नीचे फिसल गया, यहां तक कि कड़े वैश्विक आपूर्ति के बीच उच्च कच्चे तेल की कीमतों ने अमेरिकी मुद्रा की मांग को बढ़ावा दिया। भले ही गिरते रुपये से पूरी अर्थव्यवस्था को फायदा न हो, लेकिन यह घरेलू उत्पादकों को अपने निर्यात को बढ़ाने में सहायता करता है, जिससे व्यापार को बढ़ावा मिलता है। आर्थिक परिदृश्य को बढ़ावा देने के लिए कई देश अपनी मुद्राओं के अवमूल्यन को प्राथमिकता देते हैं। ऐसे कुछ उदाहरण हैं जब देशों ने अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ हासिल करने के लिए कथित तौर पर अवमूल्यन की रणनीति अपनाई।

नए साल अमरीकी डालर के व्यापार के पहले दिन रुपये में शुरुआती कारोबार में मजबूती

नए साल के पहले दिन रुपये में शुरुआती कारोबार में मजबूती

नए साल के पहले दिन रुपया बढ़त के साथ खुला और बुधवार को शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डालर के मुकाबले सात पैसे चढ़कर 71.29 रुपये प्रति डॉलर पर पहुंच गया। अमेरिका - चीन व्यापार अमरीकी डालर के व्यापार समझौते को लेकर सकारात्मक रुख से निवेशकों की धारणा मजबूत हुई। मुद्रा कारोबारियों ने कहा कि कच्चे तेल की कीमतों में नरमी और घरेलू शेयर बाजार की अच्छी शुरुआत से भी रुपये को समर्थन मिला।

अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में , रुपया अमेरिकी मुद्रा की तुलना में बढ़त के साथ 71.30 रुपये प्रति डॉलर पर खुला और शुरुआती कारोबार में बढ़कर 71.29 रुपये पर पहुंच गया। यह पिछले कारोबार दिन के बंद से सात पैसे बढ़कर चल रहा था। रुपया मंगलवार को 71.36 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ था।

अमरीकी डालर के व्यापार

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भारतीय उद्यमी, व्यापार मालिकों और निवेशकों के लिए संयुक्तराज्य अमेरिका आव्रजन समाधान

हमारे ग्राहकों में कई भारतीय व्यापार मालिक, निवेशक और अधिकारि हैं जो अमेरिकी बाजार तक पहुँच प्राप्त करना चाहते है, हम उनके लिए दोनों, संयुक्त राज्य अमेरिका में अपने मौजूदा कारोबार के विस्तार और नए व्यवसायों की स्थापना कीयोजना में सहायता करते हैं.

मैं भारत में एक व्यापारी हुं, गैर-आप्रवासी वीजा के लिए मेरे विकल्प क्या हैं ?

यदि आप भारत में किसी व्यवसाय के मालिक है जिसमें एक वर्ष से अधिक काम कर चुके हैं, तो आप संयुक्त राज्य अमेरिका में नए व्यापार कार्यालय खोल कर,L -1 गैर-आप्रवासी वीजा प्राप्त करने में सक्षम है. L -1 गैर-आप्रवासी वीजा के एक वर्ष बाद आप "ग्रीनकार्ड" के लिए सक्षम है.

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